Saturday, January 30, 2010

Jagran - Yahoo! India - गोडसे की चौथी कोशिश में हुई गांधीजी की हत्या

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    • राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के लिए प्रयास केवल 30 जनवरी 1948 को ही नहीं हुआ था बल्कि उससे पहले छह बार उन्हें मारने की कोशिश हुई थी। पांच बार के प्रयासों की जानकारी तो दस्तावेजों में दर्ज है लेकिन बिहार में हुए छठी कोशिश के बारे में कम लोग ही जानते हैं। यह प्रयास तब प्रकाश में आया है जब गांधीजी को बचाने वाले बत्तक मियां का परिवार मुश्किलों में घिरा है और बिहार सरकार उसे बचाने के लिए आगे आई है।
    • हत्या के छह प्रयासों में से पांच इन्हीं स्वदेशियों द्वारा रचित थे, जबकि एक का षडयंत्र अंग्रेजों का था। पांच प्रचलित षडयंत्रों में से तीन में नाथूराम गोडसे शामिल था। हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता के रूप में गोडसे का गांधी विरोध काफी दिनों से था। उसने मई सन् 1944 में गांधी के समक्ष पहला उग्र प्रदर्शन किया था। तब गांधीजी पंचगनी के दिलकुश बंगले में स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे। उस समय नाथूराम गोडसे ने दो दर्जन युवकों के साथ वहां पहुंचकर पहले पूरे दिन विरोध प्रदर्शन किया, शाम को प्रार्थना सभा के मौके पर नारे लगाते हुए गांधीजी के पास पहुंचने की कोशिश की। वहां मौजूद लोगों द्वारा पकड़ लिए जाने से गोडसे की यह कोशिश सफल नहीं हो सकी। गोडसे का दूसरा प्रयास गांधीजी और जिन्ना की वार्ता के विरोध में था। सितंबर 1944 में जिन्ना से वार्ता के लिए मुंबई जा रहे गांधीजी को रोकने के लिए हिन्दू महासभा के कार्यकर्ता सेवाग्राम आश्रम पहुंचे थे, वहां पर उनकी कोशिश सफल नहीं हुई। इसी दौरान नारेबाजी करते गोडसे को आश्रम के लोगों ने पकड़ लिया, तब उसके पास एक बड़ा चाकू बरामद किया गया था। तीसरा प्रयास गांधीजी की हत्या से मात्र दस दिन पहले किया गया था। 20 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिरला भवन में बम विस्फोट करके पहले अफरा-तफरी पैदा करने और उसके बाद गांधीजी को गोली मारने की योजना अंतिम क्षणों में रद दी गई। उस षडयंत्र में गोडसे सहित सात लोग शामिल थे।

      25 जून 1934 को सबसे पहले पुणे में गांधीजी के कार काफिले पर तब बम फेंका गया, जब वह एक बैठक को संबोधित करने जा रहे थे। इसके अतिरिक्त 29 जून 1946 को गांधी स्पेशल ट्रेन को दुर्घटनाग्रस्त करके गांधीजी की हत्या का प्रयास किया गया। अल्पज्ञात ताजा प्रकरण बिहार के चंपारण का है। तब चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी को नीलहे कोठी के अंग्रेज प्रबंधक ने दूध में जहर देकर मारने की कोशिश की थी। अंग्रेज अधिकारी के यहां रसोईए का काम करने वाले बत्तक मियां ने इस बारे में राष्ट्रपिता को इस बारे में सावधान कर दिया था। जबकि दूध में जहर मिलाने की जिम्मेदारी बत्तक मियां को ही सौंपी गई थी। मियां का निधन सन् 1957 में हो गया। अब उनके परिवारीजन बिहार में रहते हैं।


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