बाबा रामदेव एक ठग है ,अन्ना हजारे धोखेबाज है .यह लोग आर एस एस के लोग है .और देश में अशांति फैलाना चाहते हैं .जब दिग्विजय सिंह ने यह कहा तो सब कांग्रेसी सुर में सुर मिलाने लगे.इन सबका उदेश्य देशभक्तों को अपमानित करना है .इस से हमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए .या तो कांग्रेस की पुराणी परंपरा है ,जो नेहरू के ज़माने से चली आ रही है.नेहरू ने भी भगत सिंह और आजाद जैसे देशभक्तों को आतंकवादी कहा था .आजाद के साथी और क्रांतिकारी यशपाल ने अपनी पुस्तक 'सिंहावलोकन 'में यह बात लिखी है .यशपाल का जन्म 1903 में हुआ था और सन 1976 में देहांत हुआ था यह पुस्तक तीन खण्डों में प्रकाशित हुई है .इसके मुख्य अंशों को 1969 में हिंद पॉकेट बुक ने 'वे तूफानी दिन 'के नाम से छापा था .
यशपाल आजाद के दल 'हिन्दुतान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी 'के सदस्य थे .और गिरफ्तार भी हो चुके थे .यशपाल को साहित्य एकादिमी पुरस्कार भी मिल चूका है .यहांपर उसी पुस्तक सेबताया जा रहा है कि नेहरू की देशभक्तों के प्रति क्या राय थी .और चंद्रशेखर आजाद का सुराग देने वाला कौन हो सकता था .सब यशपाल के शब्दों में दिया गया है.
यह सन 1931 फरवरी की बात है ,जब आजाद को पता चला कि कांग्रेस सरकार के साथ गोलमेज कांफ्रेंस में कोई समझौता कर रही है तो .आजाद अपनी शंकाओं के सम्बन्ध में नेहरू से मिलने आनंद भवन गए ,उस समय हम लोग इलाहबाद में अल्फ्रेड पार्क के पास कटरे में किराये कमरे में ठहरे थे .उस समय मोतीलाल गुजर चुके था .एक बार आजाद उन से भी मिल चुके थे .आजाद ने मोतीलाल से काकोरी केस के अभियुक्तों कि कानूनी मदद करने की गुजारिश की थी .लेकिन मोतीलाल ने क्रांतिकारियों को आतंकी बताकर उनकी मदद को नैतिकता के विरुद्ध बता दिया और मदद से इंकार कर दिया .
लेकिन जब आजाद नेहरू के पास गए तो बोले .सुना है कि कांग्रेस और सरकार में कोई समझौता हो रहा है ,मैं यह जानना चाहता हूँ कि ,जब यह समझौता हो जायेगा तो ,हमारे साथियों के साथ कैसा वर्ताव किया जायेगा ?क्या तब भी हमारा पीछा किया जायेगा ,?क्या तब भी हमारे ऊपर इनाम घोषित किये जायेंगे ?और हमारे सामने फंसी का फंदा लटकता रहेगा ?
फिर नेहरू ने आजाद को समझाया ,तुम लोगों का आतंकवादी तरीका बेकार है. इसमे कोई लाभ नहीं है .आज अधिकांश कांग्रेसी अहिंसावादी बन कर सरकार के भक्त बन गए हैं ( वे तूफानी दिन .पेज 155 -156 )
नेहरू ने यह भी कहा कि मुझे लगता है ,तुम लोगों की सोच फासिस्ट हो गयी है .यही बात नेहरू ने अपनी जीवनी 'मेरी कहानी 'में लिखी है देखिये .( मेरी कहानी -आठवां संसकरण पेज 269 )
जब आजाद ने नेहरू के साथ हुई इस मुलाकात की घटना कटरे में हमें बताई ,तो उसके होंठ खिन्नता से औए गुसे से फड़क रहे थे .आजाद ने कहा .
'साला नेहरू हमें फासिस्ट कहता है ' ( वे तूफानी दिन .पेज 157 )
आजाद सिर्फ हिन्दी जानते थे .उन्होंने नेहरू से कहा कि अप गाँधी जी से सरकार के साथ होने वाले समझौते में लाहौर केस के अभियुक्त भगत सिंह .राजगुरु और सुखदेव की रिहाई की शर्त जरुर रखवाएं .यह मेरी ,नहीं बल्कि जनता की मांग है .लेकिन्नेहरू ने साफ कह दिया कि मई गांधी को किसी भी दशा में ऐसी शर्त नहीं एअखाने दूंगा .(वे तूफानी दिन .पेज 158 )
आजाद को बड़ा बुरा लगा कि नेहरु उसे फासिस्ट कह रहा था ,आजाद ने कहा हम लोग सरकार के दमन और अत्याचार का मुकाबला कर रहे हैं और हमारा उद्देश्य देश को मुक्त कराना है.हम आतंकवादी नहीं ,हम समाजवादी हैं .
फिर आजाद ने नेहरू से कुछ आर्थिक मदद करने को कहा .नेहरू ने कहा कि पिता कि मौत के बाद मैं खुद तंगी में हूँ .अगर तुम रूस जाना चाहो तो मैं कुछ कर सकता हूँ .तुम रूस में समाजवाद का प्रशिक्षण ले सकते हो .तब तक माहौल भी शांत हो जायेगा.आजाद राजी हो गए .और तीन लोगों के लिए तीन हजार रुपयों की मांग की .आजाद,यशपाल और सुरेन्द्र नाथ पाण्डे. लेकिन नेहरू ने आजाद को एक हजार रूपया दे कर कहा ,तुम अपना ठिकाना बता दो .परसों शिव मूर्ति सिंह बाकी रूपया पहुंचा देगा .( वे तूफानी दिन .पेज 159 )
नेहरू से यह बात 25 फरवरी 1931 को हुई थी. हम लोग रूस जाने के लिए गर्म कपड़ों का इंतजाम करने लगे ,और बाकी दो हजार की राह .देखने लगे
यह 27 फरवरी 1931 की बात हम लोग अपने घर में थे .तभी आजाद ने कहा मुझे अल्फ्रेड पार्क में किसी से जरुरी काम के लिए जाना है .तुम लोग चौक से कुछ स्वेटर खरीद लाओ .हम दो लोग साईकिल से चौक की तरफ निकले ही थे की लोग चिल्लाने लगे पार्क में गोली चल रही है .हम सन्न रह गए .और फ़ौरन समझ गए की दूसरी तरफ कौन हो सकता है ,सिवाय आजाद के .हमारे और नेहरू के आलावा किसी को पता नहीं था की आजाद कहाँ हैं .
आजाद की पहली गोली नॉट वाबर को लगी ,वह ढेर हो गया .फिर जब आजाद के पास एक ही गोली बची तो उसने अपनी कनपटी पर खुद गोली चला दी .और शहीद हो गया .यह सारी घटना उस समय के उतर प्रदेश के इन्स्पेक्टर जनरल होर्लिस ने एक अंगरेजी पत्रिका Man only में लिखी थी .जो बाद में अक्तूबर 1956 में सार्वजनिक की गई थी.( वे तूफानी दिन ,पेज 161 )
अज की कांग्रेस भी नेहरू की तरह देशभक्तों को फासिस्ट कह रही है.
जहांतक दिग्विजय सिंह की बात है हमने 16 मार्च 2009 को एक लेख पोस्ट किया था .उसकी लिंक दी जा रही है.
http://bhandafodu.blogspot.com/2009/03/blog-post_16.html