Saturday, May 9, 2009

Daily Posts, News, Views Collection by a Common Hindu

मोदी पर एसिड़ टेस्ट का वक्त आ गया है

जिस वक्त लोहिया गैर कांग्रेसवाद का नारा लगा रहे थे, उस वक्त जनसंघ में दीनदयाल उपाध्याय ऐसा ही चेहरा थे। इसलिये 1963 के उपचुनाव में लोहिया ने जनसंघ के दीनदयाल जी को जौनपुर से लड़वाया उस दौर में बलराज मधोक कट्टर चेहरा थे। लेकिन जब मधोक सॉफ्ट हुये तो उस समय वाजपेयी का चेहरा कट्टर हो चुका था लेकिन जेपी के दौर में वाजपेयी ने राष्ट्रीय राजनीति की लकीर को पकड़ा और सॉफ्ट होते गये तो आडवाणी कट्टर चेहरे के तौर पर उभरे। लेकिन वाजपेयी काल खत्म होते ही आडवाणी को मोदी सरीखा चेहरा मिल गया तो श्रीमान का मुखौटा खुद--खुद आडवाणी के चेहरे पर लग गया।

बड़ा सवाल यही है कि इस सवाल का जबाब बीजेपी और कांग्रेस को एक सरीखा चाहिये जो पहली बार मोदीत्व तले नहीं मिल रहा इसलिये नयी लडाई बीजेपी को कांग्रेस से भी लड़नी है और आरएसएस से भी यह नयी लड़ाई क्या गुल खिलायेगी....कुछ इंतजार करना होगा


प्रतिभा पाटील के काम आने का समय नजदीक है!


सोनिया ने दूर की सोची थी

श्रीमती पाटील ने इमरजेंसी के समय इंदिरा गाँधी की बहुत सेवा की थी, उनके जेल जाने के दौरान उनका घर (या कहें किचन) संभाला था और सोनिया भी उनको कई दशकों से जानती हैं। तो अब उनको उनकी सेवा का रिवार्ड मिला। अब इस एहसान को वो १६ मई के बाद चुकाएँगी जब राष्ट्रपति के हाथ सत्ता जाती है और वो जिसे चाहे सरकार बनाने के लिए बुला सकता है। निश्चित ही वो सोनिया से उस दौरान पूछेंगी कि मैडम मैं आपको कब बुलावा भेंजू..मुझसे मिलने के लिए..या मैडम आपके पास कब समय है मुझसे मिलने का...मैं आपको सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना चाहती हूँ......!!!!!!!!!


निस्संतान हिन्दू विधवाएँ अपनी वसीयत आज ही करें : हिन्दू उत्तराधिकार कानून तुरंत बदलने की आवश्यकता

दिनेश राय द्विवेदी जी के ब्लॉग पर आज की पोस्ट मेरी दृष्टी मे बेहद महत्तवपूर्ण है, की स्त्री की सम्पति का उत्तराधिकार किस तरह बिना किसी सर-पैर के पुरूष के पक्ष मे झुका हुया है। ये फैसला एक निसंतान, विधवा स्त्री नारायणी देवी के संपत्ति मे उत्तराधिकार से जुडा है. नारायणी देवी विवाह के सिर्फ़ तीन महीने के भीतर विधवा हो गयी थी। उन्हें ससुराल की संपत्ति मे कोई हिस्सा नही मिला, और निकाल दिया गया. नारायणी देवी ने अपने मायके मे आकर पढाई लिखाई की, और नौकरी की। उनकी मौत के बाद नारायणी देवी की माँ और उनके ससुराल वालो ने उत्तराधिकार के लिए एक लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी। लगभग ५० साल बाद फैसला आया है और नारायणी देवी की सम्पत्ति का उत्तराधिकार उनके भाई को नही मिला बल्कि उनकी ननद के बेटों को मिला है.



क्या अंग प्रदर्शन नारी का जन्मसिद्ध अधिकार है?


पत्रकार दिलीप मंडल का एक लेख अख़बार में पढ़ा था ! लेख था... हवा में उड़ गया दुपट्टा ! बदलते वक्त के साथ महिलाओ ने दुपट्टे को छोड़ दिया ! दिलीप मंडल ने इसे नारी सशक्तिकरण से जोड़ा था! उनके मुताबिक शहरों में महिलाओ ने दुपट्टे को छोड़ कर नारी सशक्तिकरण की मिसाल कायम की है ! क्योंकि ये फिजूल का झंझट है ! लेकिन शहरी महिलाए तो इससे कही आगे निकल चुकी है ! आज कथित खुले विचारो की इन महिलाओ ने सिर्फ़ दुपट्टा ही नही छोड़ा है बल्कि वो खुल कर अंग प्रदर्शन भी कर रही है ! वो ये अच्छी तरह जानती है कि किस जगह किस तरह का प्रदर्शन करना है? पिछली पोस्ट के जवाब में एक महिला ब्लोगर की प्रतिक्रिया चोकने वाली है ... उन्होंने लिखा...अब तक पुरूष नारी को बेच कर पैसा कमाता रहा है अब नारी ख़ुद को बेच कर पैसा कम रही है तो इसमे बुरा क्या है!

लेकिन आज लज्जाशील नारी आप धुन्द्ते रह जायेंगे ! तो क्या लज्जा का त्याग ही नारी स्वतंत्रता कि पहचान है? क्योंकि आज बिना दुपट्टे के अंग प्रदर्शन करती बेटी पिता के सामने खड़ी होती है ! उसे इसमे ज़रा भी असहज महसूस नही होता ! भड़काऊ कपडे पहने महिलाए मंदिरों में देखी जा सकती हैं ! तो क्या नारी स्वंत्रता के नाम पर महिलाओ को कुछ भी करने कि आज़ादी दे दी चाहिए?


तंबाखू मेरेआपके लिये उपयोगी हो सकता है!!