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सनातन संस्कृ्ति और धर्म | धर्म यात्रा
- धर्म से क्या नहीं प्राप्त हो सकता? महाभारत के स्वर्गारोहण पर्व में महर्षि वेद व्यास जी ने बडे जोरदार शब्दों में अपनी अन्तर्पुकार समाज के हित में कही है। वे कहते हैं कि " मैं दोनों हाथ ऊपर उठा कर पुकार-पुकार कर कह रहा हूं,परन्तु मेरी बात कोई नहीं सुन रहा कि धर्म से केवल मोक्ष ही नहीं अपितु अर्थ और काम की भी प्राप्ति होती है। फिर भी लोग उसे ग्रहण क्यों नहीं करते ?
न जातु कामान्न भयान्न लोभाद ।
धर्म त्यजेज्जिवितस्यापि हेतो:
नित्यो धर्म: सुख दुखे स्वनित्ये
जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्य: ।।अर्थात कामना से,भय से,लोभ से अथवा जीवन के लिए भी धर्म का त्याग न करें। धर्म ही एक नित्य है,सुख दुख तो अनित्य है। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति धर्म का पालन करता है तो धर्म ही उसकी रक्षा करता है तथा नष्ट हुआ धर्म ही उसके पतन का कारण बनता है। अतैव जीवन में सदैव धर्म का पालन करना चाहिए।
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