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- यह विचित्र बात है कि जो लोग समलैंगिकों के लिए समान अधिकार की वकालत करते दोहरे हो रहे हैं वही लोग मुस्लिम महिलाओं को हिंदू या ईसाई महिलाओं के समान अधिकार देने के प्रश्न पर होंठ सी लेते हैं।
- यहां प्रश्न आधारभूत सिद्धातों का भी है। यदि कोई मुस्लिम बुरका पहनना चाहती है तो कोई बात नहीं, किंतु किसी गैर-मुस्लिम व्यक्ति को भी अधिकार है कि वह किसी के साथ संवाद करे या न करे। बुरके में बंद काया से संवाद मानो किसी क्लोज सर्किट कैमरे के साथ बात करने जैसी स्थिति है, जो आपको देख रहा है, पर आप उसे नहीं देख सकते। अत: दूसरे को भी इस असहज स्थिति से बचने का अधिकार है।
- अत: बुरका मुस्लिम महिलाओं की पसंद नहीं है। यह इससे भी स्पष्ट है कि अफगानिस्तान में तालिबान शासकों ने मुस्लिम महिलाओं को जबर्दस्ती क्रूरता और हिंसा के द्वारा ही बुरके में बंद किया था।
- अत: बुरके को मुस्लिम महिलाओं का अधिकार बताना इस्लामी प्रवक्ताओं की चालाकी है, जिससे वे गैर-मुस्लिमों को बरगलाना चाहते हैं। जो मुस्लिम महिलाएं इसकी वकालत करती भी हैं वे पिंजड़े में बंद प्रशिक्षित पखेरू सी हैं।
- [एस. शंकर: लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]
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Sunday, July 12, 2009
समानता पर दोहरापन
समानता पर दोहरापन
2009-07-12T11:25:00+05:30
Common Hindu