रक्षा मन्त्रालय ने केन्द्रीय सूचना आयोग के उस आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें उसने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के `आज़ाद हिन्द फौज´ के इतिहास पर आधारित 60 साल पुरानी पुस्तक की पाण्डुलिपि उपलब्ध् कराने का आदेश दिया था। 23 जनवरी को जब देश नेताजी का 115 वां जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रहा था, उसी सप्ताह में रक्षा मन्त्रालय ने तर्क दिया कि वह इस किताब को प्रकाशित करना चाहता है और इसे सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध् कराने से `राज्य के आर्थिक हित को नुकसान पहुंचेगा। अत: यह सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध् नहीं कराई जा सकती।
मामला आरटीआई आवेदक अनुज धर और चन्द्रचूढ़ घोष की ओर से दायर आरटीआई आवेदन से संबिन्ध्त है जिन्होंने पी.सी. गुप्ता की ओर से आज़ाद हिन्द फौज के इतिहास पर सरकार की ओर से लिखवाई पुस्तक की पाण्डुलिपि की प्रति की मांग की थी।
आवेदकों ने सूचना आयोग में शपथ पत्र दिया था कि वे इस पाण्डुलिपि का कोई कमर्शियल उपयोग नहीं करेंगे। इसके बाद केन्द्रीय सूचना आयुक्त एम.एल. शर्मा ने रक्षा मन्त्रालय को पुस्तक की पाण्डुलिपि की प्रति उपलब्ध् कराने का आदेश दिया था। लेकिन यह आदेश मिलते ही अचानक 60 साल बाद रक्षा मन्त्रालय का इस पुस्तक से आर्थिक प्रेम जाग गया है और उससे अदालत में गुहार लगाई है कि उसे बचाया जाए।