Wednesday, June 8, 2011

गंगाजमुनी तहजीब ?

गंगाजमुनी तहजीब ?: "

भारत सदा से एक शांतिप्रिय देश रहा है .यहाँ जितने भी धर्म और सम्प्रदाय पैदा हुए ,उन सबके मानने वाले मिलजुल कर रहते ए हैं ,और सब एक दूसरे के विचारों का आदर करते आये है .क्योंकि भारत के सभी धर्मों में ,प्रेम ,करुणा,मैत्री ,परस्पर सद्भावना और अहिंसा को धर्म का प्रमुख अंग कहा गया है .भारत की इसी विशेषता को भारतीय संस्कृति कहा जाता है .इसको कोई दूसरा नाम देने की जरुरत नहीं है .क्योंकि यह संस्कृति ही भारत की पहिचान है .
लेकिन जैसे ही भारत में मुस्लिम हमलावर आये तो उन्होंने लूट के साथ भारत की संस्कृति को नष्ट करने की और हिन्दुओं को मुसलमान बनाने के हर तरह के प्रयत्न किये ,जो आज भी चल रहे हैं .मुसलमानों ने कभी हिन्दुओं को अपने बराबर नहीं समझा और उनको सदा काफ़िर कहकर अपमानित किया .लेकिन आज यही मुसलमान सेकुलरों के साथ मिलकर फिर हिन्दुओं को गुमराह कर रहे हैं .इन मक्कारों ने मुसलमानों के गुनाहों पर पर्दा डालने ,और वोटों की खातिर "गंगाजमुनी तहजीब "के नाम से एक ऎसी कल्पित संस्कृति को जन्म दे दिया है .जिसका कभी कोई वजूद ही नहीं था .लेकिन भोले भाले हिन्दू इसे हिन्दू -मुस्लिम एकता का प्रतिक मान रहे हैं .कोई नहीं जनता कि यह गंगाजमुनी तहजीब कहाँ से आयी ,देश में किस क्षेत्र में पायी जाती है ,या इसका क्या स्वरूप है .मुसलमान इसे मुगलकाल की पैदायश कहते हैं .लेकिन मुगलों का हिन्दुओं के प्रति कैसा व्यावहार था ,इसके नमूने देखिये -
1 -मुगलों का हिन्दुओं के प्रति व्यवहार
बाबर से लेकर औरंगजेब तक सभी मुग़ल शासक हिन्दू विरोधी थे .और हिन्दुओं के प्रति उग्र ,असहिष्णु थे .सभी ने हिन्दुओं पर अत्याचार किये .
शिवाजी के कवि भूषण ने अपने ग्रन्थ 'शिवा बावनी 'में लिखा है -
'देवल गिराउते फिराउते निशान अली ,राम नाम छूटो बात रही रब की .
बब्बर अकब्बर हुमायूं हद्द बांध गए ,एक नाहिं मानों कुरआन वेद ढब की
चारों बरन धरम छोड़ कलमा नमाज पढ़ें ,शिवाजी न होते तो सुनत होती सब की .'कवि भूषण -शिवा बावनी.
2 -महाराजा छत्रसाल के विचार
बुंदलखंड में छत्रसाल ने मुगलों को कई बार हराया था .शिवाजी उनको अपना पुत्र मानते थे .छत्रसाल ने मुसलमानों के बारे में जो कहा है वह ,उनके एक कवि 'गोरेलाल 'ने सन 1707 में 'छत्र प्रकाश 'लिखा है -
हिन्दू तुरक धरम दो गाए ,तिन सें बैर सदा चलि आये
जानों सुर असुरन को जैसो ,केहरि करिन बखान्यो तैसो
जब तें साह तखत पर बैठे ,तब तें हिन्दुन सों उर ऐठे
मंहगे कर तीरथन लगवाये ,देव दिवाले निदर ढहाए
घर घर बाँध जन्जिया लीनी ,अपने मन भये सो कीनी " कवि गोरेलाल -छत्र प्रकाश .प्रष्ट 78
3 -शिवाजी का छत्रसाल को उपदेश
जब शिवाजी को लगा की मुग़ल हिन्दू धर्म और संस्कृति को मिटाने पर उतारू हैं ,और जब छत्रसाल शिवाजी से मिलने गये थे तो शिवाजी ने यह उपदेश दिया था .और छत्रसाल को मुसलमानों से सावधान रहने को कहा था -
'तुरकन की परतीत न मानौ ,तुम केहरि तरकन गज जानौ
दौरि दौरि तुरकन को मारौ,दबट दिली के दल संहारौ
तुरकन में न विवेक बिलोक्यो ,जहाँ पाओ तुम उनको रोक्यो .' छत्र प्रकाश -प्रथम अध्याय
(भारत का इतिहास -डा ० ईश्वरी प्रसाद .पेज 542 )

4 -मुसलमान कैसी एकता चाहते हैं
मुसममान सभी संस्कृतियों को नष्ट करके सिर्फ इस्लाम को बाकी रहना चाहते हैं .औरवह इसी को एकता का आधार मानते हैं .इकबाल ने यही विचार इस तरह प्रकट किये है -
"हम मुवाहिद हैं ,हमारा कैस है तर्के रसूम ,
मिल्लतें जब मिट गयीं अज जाए ईमां हो गयीं "
(अर्थात -हम ऐसी एकता चाहते हैं ,जब सारी संस्कृतियाँ मिट जाएँ ,और इस्लाम का हिस्सा बन जाएँ )
इकबाल चाहता था कि तलवार के जोर पर हरेक संस्कृति को मिटा दिया जाये ,और इस्लाम को फैलाया जाये .वह लिखता है -
"नक्श तौहीद का हर दिल में बिठाया हमने ,जेरे खंजर भी यह पैगाम सुनाया हमने ,
तोड़े मखलूक खुदावंदों के पैकर हमने ,काट कर रखदिये कुफ्फार के लश्कर हमने "
हम अब कैसे मानें कि ,मुसलमान शांति और समन्वय के पक्षधर हैं.
5 -मुसलमान युद्ध चाहते हैं
मुसलमान इकबाल को अपना आदर्श मानते हैं .लेकिन इकबाल हमेशा मुसलमानों शांति कि जगह लड़ाई करने पर उकसाता था .उसने कभी आपसी भाई चारे की बात नहीं कही .इकबाल कहता है -
'तुझ को मालूम है ,लेता था कोई नाम तेरा ,कुव्वते बाजुए मुस्लिम ने किया नाम तेरा ,
फिर तेरे नाम से तलवार उठाई किसने ,बात जो बिगड़ी हुई थी ,बनाई किसने " शिकवा
(अर्थात -दुनिया में कोई अल्लाह को नहीं जनता था ,लेकिन मुसलमानों ने अपने हाथों की ताकत से ,और तलवार के जोर से अल्लाह को प्रसिद्द कर दिया .और बिगड़ी हुई बात को बना दिया )
6 -देशभक्त और ब्राहमण होना कुफ्र है
इकबाल देश को मूर्ति (बुत )देशभक्तों की बिरहमन (ब्राहमण ) कहता है ,और मुसलमानों से इनसे दूर रहने को कहता है -
'मिस्ले अंजुम उफ़के कौम पै रोशन भी हुए ,
बुते हिन्दी की मुहब्बत में बिरहमन भी हुए '
(अर्थात -इकबाल मुसलमानों से कहता है कि तुम्हारा स्थान तो अकास के तारों कि तरह ऊँचा है ,लेकिन तुम हिंद के बुत (देश )के प्रेम में इतने गिर गए कि एक ब्राहमण कि तरह उसकी पूजा करने लगे )
- 7-इस्लाम का बेडा गंगा में डूबा
इकबाल आरोप लगता है कि जैसे ही इस्लाम का संपर्क गंगा से हुआ ,इसलाम की प्रगति रुक गयी ,यानी हिन्दुओं का साथ लेने सी इस्लाम डूब जायेगा .-
वो बहरे हिजाजी का बेबाक बेडा ,न असवद में झिझका न कुलजम में अटका
किये पय सपर जिसने सातों समंदर ,वो डूबा दिहाने में गंगा के आकर '
8 -सर्व धर्म समभाव पागलपन है
अकबर इलाहाबादी ने सभी धर्मों का आदर करने को व्यंग्य से पागलपन तक कह दिया है -
"आता है वज्द मुझको हर दीन की अदा पर
मस्जिद में नाचता हूँ नाकूस की सिदा पर '
(अर्थात -मुझे हर धर्म की अदा पर मस्ती चढ़ जाती है ,जब भी मंदिर में शंख बजता है ,मैं मस्जिद में नाचने लगता हूँ )
9 -मुसलमानों का उद्देश्य
"चीनो अरब हमारा ,हिन्दोस्तां हमारा ,मुस्लिम हैं हमवतन हैं सारा जहां हमारा
तेगों के साए में हम पल कर जवां हुए हैं ,खंजर हिलाल का है कौमी निशां हमारा " इकबाल -तराना

10 -पाकिस्तान क्यों बना
मुसलमान हिन्दुओं से नफ़रत रखते थे ,और उनके साथ नहीं रहना चाहते थे .मुहमद अली जिन्ना ने अपने एक भाषण में कहा था कि-
"कुफ्र और इस्लाम के बीच में कोई समझौता नहीं हो सकता .उसी तरह हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच दोस्ती और भाईचारे की कोई गुंजायश नहीं है .क्योंकि हमारी और हिन्दुओं की जुबाने अलग ,रिवायत अलग ,खानपान अलग ,अकायद अलग ,तहजीब अलग ,मजहब अलग हैं यहाँ तक हमारा खुदा भी अलग है .इसलिए हम मुसलमानों के लिए अलग मुल्क चाहते हैं " नवाए आजादी -पेज 207
11 -सर्वधर्म समभाव कुरान के विरुद्ध है

कुरआन धार्मिक एकता और गंगाजमुनी विचारों के विरुद्ध है .और मुस्लिमों और गैर मुस्लिमों के मेलजोल के खिलाफ है .कुरान कहता है -
'(हे मुहम्मद ) कहदो हे काफ़िरो मैं उसकी इबादत नहीं करता ,तुम जिसकी इबादत करते हो .और न तुम उसकी इबादत करते हो ,जिसकी मैं इबादत करता हूँ .और न मैं उसकी इबादत करूँगा ,जिसकी इबादत तुम करते आये हो .और न तुम उसकी इबादत करोगे ,जिसकी इबादत मैं करता हूँ .तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म ,हमारे लिए हमारा धर्म " सूरा अल काफिरून 109 :1 से 6 तक
12 -तहजीब या तखरीब
एक मुस्लिम पत्रकार अलीम बज्मी ने गंगाजमुनी तहजीब की मिसाल देते हुए भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह के ज़माने की होली का वर्णन इस प्रकार किया है .और इसे एक आदर्श तहजीब और हिन्दू मुस्लिम एकता का उदहारण बताया है ,अलीम लिखता है कि -
'होली के समय मस्जिदों के आसपास की सभी दुकाने बंद करा दी जाती थीं .कोई हिन्दू किसी मुसलमान को रंग लगाने कि हिमत नहीं कर सकता था .इसे बदतमीजी माना जाता था .नमाजियों को देखकर हुरियारों को रास्ता बदलना पड़ता था .नमाज के पाहिले ही रंग का खेल बंद करा दिया जाता था .अगर हिन्दू ख़ुशी के मौके पर किसी मुसलमान को मिठाई देते थे ,तो उसे कपडे में लपेट कर दिया जाता था .मुसलमान मिठाई को हाथों से नहीं छूते थे "दैनिक भास्कर दिनांक 18 मार्च 2011
क्या यही हिन्दू मुस्लिम एकता कि मिसाल है .इसे तहजीब (संस्कृति )नहीं तखरीब (تخريبबर्बादी )कहना उचित होगा .
मुसलमान मक्कारी से गंगा को हिन्दू का और जमुना को मुसलमानों का प्रतीक बताकर लोगों को धोखा दे रहे है .यह कहते हैं जैसे गंगा और जमुना मिलकर एक हो जाते हैं उसी तरह हिन्दू मुस्लिमएक होकर गंगाजमुनी तहजीब का निर्माण करते हैं .लेकिन जो लोग गंगाजमुनी तहजीब को हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक समझते हैं ,वह इतनी सी बात भी नहीं जानते कि गंगा और जमुना दोनो ही हिन्दुओं की पवित्र नदियाँ हैं .गंगाजमुनी तहजीब में मुसलमान कहाँ शामिल हैं .मुसलमान मक्का के जलकुंड के पानी "زمزمजमजम "को पवित्र मानते हैं .यदि वह सचमुच हिन्दू मुस्लिम एकता दिखाना चाहते हैं तो ,उन्हें चाहिए कि "गंगाजमुनी "शब्द की जगह "गंगा जमजमी"शब्द का प्रयोग करें .तभी हम मानेंगे कि मुसलमान सचमुच हिन्दू मुस्लिम एकता चाहते हैं
वास्तव में हमें 'गंगाजमुनी तहजीब 'नहीं 'गंगा जमुना तखरीब 'कहना चाहिए !












"

Vijayvaani.com - Kill the Mocking Bill! - by George Augustine

http://www.vijayvaani.com/FrmPublicDisplayArticle.aspx?id=1822

Kill the Mocking Bill! 
George Augustine
 
 
 
 
 
The gross violence that unfolded on the night of June 4/5th at Ramlila Maidan in New Delhi speaks volumes of the general intent of the UPA government where Hindus are concerned. Obviously, Hindus do not have the right to protest against corruption and black money, or perhaps against anything. They are only permitted to do yoga!

 

 
******************
 

 

 

Who actually engineers riots in India?

 

 

 

According to Ms. Zenab Banu’s “POLITICS OF COMMUNALISM: a politico-historical analysis of communal riots in post-independence India with special reference to the Gujarat and Rajasthan riots” (1989), there had been 74 communal riots between 1953 and 1977, of which 75% were instigated by Muslims. For those who are apologetic about the demolition of the Babri Masjid and blame the act for Muslim aggression, these figures will elucidate and make clear who were in reality responsible for communal riots ever since they were born – the Abrahamists!

 

 

 

 

 

 

 

 

The dynasty of Sonia and Rahul Gandhi is holding on to power not because they are genuinely democratic rulers (as Ramlila Ground on June 4 would testify) or that they sincerely want to rule for the sake of a nation, but because the loss of power would bring about their certain ruin and destruction, like Gaddafi, like Mubarak, a fate that can only be postponed but not avoided, just like death. When Sonia and Rahul refer to India that is Bharat, they are not talking about the physical land or its civilisation or the billion odd people who inhabit this land, but their loot that has been stashed away in Europe. Moreover there is tacit support (and I suspect even pressure) from the Christian West for the transformed Catholic dynasty to rule Hindu India until the imaginary doomsday.

 

 

 

Seen from another angle, the conspiracy has entered a crucial stage, when several Hindu activists are already languishing in jails for years now on fabricated charges that have never been proved or would ever be resolved or even come to court, at least as long as the UPA is in power. The recent attempts to implicate people belonging to nationalist organisations like the RSS in terror plots should also be seen as part of a bigger game involving those who want to perpetuate the dynasty rule and save private loot deposited illegally in overseas banks.

 

 

 

Most of the names in the advisory council, particularly in the working committee and the bill drafting committee, would bring a sense of déjà vu to those who followed the aftermath of the 2002 Gujarat riots, when human vultures flew hither and thither to exploit the bloody tragedy. Scheming behind closed doors of the obnoxious council are the notorious battle-scarred front-line veterans in the war against Modi and the Hindus – Teesta Testalvad, Harsh Mander, Syed Shahabuddin, John Dayal and co. The dynasty has also engaged professional claques led by the inimitable duo Digvijay Singh and Kapil Sibal, who are adept at tackling poor unarmed folks roughly and faithfully cook rice for the thief (old Malayalam saying).

 

 

 

Kill the mocking bill before it is born and a great impediment placed before Hindus by the enemy would be removed and it would mark a new beginning, sounding the death knells for dynasty rule, corruption, adharma, all in one sweep.

 

 

 

The author is a professional translator

 
 

The shrinking Hindu space

The shrinking Hindu space: "
Perhaps nothing illustrates the extreme prejudice and visceral hatred this administration harbors towards Hindus quite like this video. A senior Congress leader and designated mentor to the crown Prince, no less, mercilessly kicking an would be shoe attacker. That video basically sums up what Congress would do to us, given a chance.

As we have been saying for quite sometime, what we have here is not mere hardball politics, we have long transitioned into a different ballgame. From mere socio-economic re-engineering, we have transitioned into genocidal territory.

The fact that it did not result in a stampede is a miracle in itself and perhaps speaks for the discipline and self-restraint of the devotees. The police had fired so many teargas shells that beat journos had irritation and tears in their eyes until late next morning.

This operation had to be authorized at the highest levels. No one at a lower level who would have the gumption to order a lathi charge and teargas shelling in a tent containing so many women and children.

This operation was also a live demonstration of what is going to happen when the proposed Communal Violence Prevention Act (aka Right to Riot with impunities act for minorities) comes into effect. That act will give enormous and unprecedented powers into the hands of a group of hostile and prejudiced people. Under any flimsy pretext, they can take over any district administration. They can then run off any people deemed undesirable, like they did with the tens of thousands of devotees. Within a stretch of 4 hours, the ground was completely deserted, people scattered all over Delhi without shelter and belongings. Some dropped off at potentially unsafe places. Post-op, the administration declared random and arbitrary section 144 and ordered externments without court orders.

Then we have the RTE act, which essentially shrinks education space for Hindus. We also have the Food Security Act, again, designed by the same contingent, which divides the food doles recipients into 'general' and 'priority' categories, the latter being euphemism for ... you know who.

A day after the operation, Sonia Gandhi offered a chaadar at Ajmer Sharif. A day later, Manmohan Singh followed suit.

Still think you are safe under this administration?

"