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त्यागी: भारत का आउटसोर्स्ड प्रधानमंत्री और उसकी निर्लाजता !!!!!!!!!!!!!!!
- दूसरा हमे मनमोहन सिंह जी ये बताये की पाकिस्तान सम्बन्धी नीति पर फन्ने खा बनने का फितूर कहाँ सवार हुआ? न तो पाकिस्तान पर निर्णय करने की आपकी नैतिकता है, न आप हिंदुस्तान के चुने हुए सांसद है (लोगो द्वारा) , न आप बहुमत के प्रधान मंत्री है, न आपका कोई जनाधार है , न आप कोई राजनैतिक व्यक्ति है, आप तो एक परिवार विशेष द्वारा चुने हुए एक मनोनीत व्यक्ति मात्र है। फ़िर किस इकबाल पर आप और किस नैतिकता पर आप पाकिस्तान जैसे गंभीर विषय पर अपने अल्प ज्ञान का परचम लहराए। मैं फ़िर कहेता हु की आप व्यक्ति बहुत अच्छे हो सकते हो परन्तु प्रधानमन्त्री के नाते तो आप बुहुत ही कुरूप और निकृष्ट हो।
- चलिए अब बात करते है आपके तथकथित गुणों के बारे में एक एक करके सब से पहेले प्रशन आता है आपके अर्थशास्त्री होने के लाभ का. तो बता दू वो दावा भी एक दम झूठा है. हमे आपके अर्थशास्त्री होने का एक भी लाभ नहीं मिला। क्योंकि यदि कांग्रेस दावा करती है की नरेगा उसकी देन है तो कतई भी आप उसको लागु करने के पक्ष में नहीं थे. दूसरा आज जो महंगाई है वो आपके गुणों की चाट है जिसको आपका आम आदमी अपनी खाली उंगलियों से चटखारे ले ले कर चाट रहा है. संसेक्स आप के प्रधानमंत्री काल में पाताल में चला गया है. होम लोन मिल नहीं रहे है.
- प्रगतिशील भी आप कभी नहीं थे और न आप चाहते होना। आप ढोंगी है और दम्बी है जिसने अटल सरकार की स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क निर्माण को ही ठेंगा दिखादिया। उसी सरकार की देन गावों को शहरो से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना का आपने गला घोंट दिया। इसलिए न तो आप हमारी प्रगति ही चाहते और न ही आप प्रगतिशील है.
- खैर अब बात आती है आपकी विद्वता की तो आपने जो साँझा बयान पाकिस्तान के साथ अभी दिया है और उस लिखित बयान में जो त्रुटी जिसका की आपके शंकर मेनन जी दावा करते है। तो अपने समझ के बहार है की एक घोषित रूप से हिंदुस्तान का विद्वान जो की उसके प्रधानमंत्री की पात्रता का मुख्य स्तम्भ है और जो रिजर्व बैंक का गवर्नर रहा है और सयुंक्त राष्ट्र की मोटी पेंशन लेता है. उसकी ड्राफ्टिंग में भी त्रुटी है वो भी अंग्रेजी में. तो भाई इसका मतलब आपने इंग्लॅण्ड की ऑक्सफोर्ड पर भी कालक मल दी. जब आप क्लर्की का काम भी नहीं कर पा रहे हो तो कहाँ की विद्वता. और जिसके पीछे हिंदुस्तान संसारभर में हंसी का पात्र बने उस की विद्वता पर फिर हम क्यों खिल्ली उडवाय.
- अब में कुछ आपके चाटुकारों पर भी आता हूँ जो आपके सिख होने की वजह से काफी दम भरते है। जो सिख भाई है उनको बता दू की हिन्दुओ के रक्षक परम पूजनिय प्रात समरनीय आदरनिये श्री गुरु गोबिंद सिंह जी जिनकी एक सिंह दहाड़ से मुसलमानों के अंतडियो में पानी सूख जाता था. या वो महाराजा रंजित सिंह जो पंजाब का शेर था. क्या सिख भाई देखते है की श्री मनमोहन सिंह जी उस परम्परा के वाहक है. यह में उन ही पर छोड़ता हु. मुझे कोई शक शुबहा नहीं की वो भी रंजित सिंह जैसा ही हिंद शासक पसंद करेंगे।
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Monday, August 3, 2009
त्यागी: भारत का आउटसोर्स्ड प्रधानमंत्री और उसकी निर्लाजता !!!!!!!!!!!!!!!
Strategic Blunders of India Niranjan Singh Malik - Vijayvaani.com
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- Strategic Blunders of India Niranjan Singh Malik
- Pandit Nehru was the visionary who set us on this course of neglect of the armed forces. His vision of security was based on the flawed principle of Ahimsa, perhaps reinforced by an erroneous understanding of the freedom struggle, Congress having taken all the credit for it by Gandhi’s non-cooperation movement. It failed to take into account the role of the Azad Hind Fauj and Netaji Subhash Bose’s relentless struggle for India’s freedom.
- This was to deny the greatest son of India his role in forcing the British to quit. The court martial of three officers of the Azad Hind Fauj, Col Shah Nawaz, Maj Prem Sehgal and Capt Gurbax Dhillon at Red Fort in 1945-46 ignited the nation and made the Indian Army uneasy. Naval mutiny at Bombay and various mutinies by small units at various military stations, such as Karachi, Jabalpur, and daily fisticuffs in Officers messes and verbal duals between British and Indian officers made the British uncomfortable.
- The Intelligence input was that if anything happened to the three INA officers under court martial, India would erupt and not a single British man or woman would escape to England. The result was a hasty decision to leave India, even advancing the date of transfer of power from 30 June 1948 to 15 August 1947.
- The new Indian leadership, instead of strengthening the Indian Armed forces, decided to cut them to size, both in strength and standing. The Army’s pay packet was reduced by one-third. Its strength was brought down to 150,000 and later to 75,000 only, as Pandit Nehru told Parliament, ‘we are a peace loving nation, we do not need a large standing army, police will do the job.’
- But the most shameful act was the acceptance of ceasefire, unilaterally declared by the Chinese, and not preparing to fight back. After all, nations suffer tactical reverses, but they do not necessarily become strategic defeats.
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Unless a country is militarily strong, no one will respect it, and all economic gains will be for someone else to enjoy. Let us not repeat the story of the past seven hundred years.
Lt. Gen. N.S. Malik, PVSM, is former Deputy Chief of Army Staff
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महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar): मीडिया हिन्दू-विरोधी क्यों है, इसका जवाब इन रिश्तों में मिलेगा… Why Indian Media is Anti-Hindutva
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- यह बात साबित हो चुकी है कि मीडिया का एक खास वर्ग हिन्दुत्व का विरोधी है, इस वर्ग के लिये भाजपा-संघ के बारे में नकारात्मक प्रचार करना, हिन्दू धर्म, हिन्दू देवताओं, हिन्दू रीति-रिवाजों, हिन्दू साधु-सन्तों सभी की आलोचना करना एक “धर्म” के समान है। इसका कारण हैं, कम्युनिस्ट-चर्चपरस्त-मुस्लिमपरस्त-तथाकथित सेकुलरिज़्म परस्त लोगों की आपसी रिश्तेदारी, सत्ता और मीडिया पर पकड़ और उनके द्वारा एक “गैंग” बना लिया जाना। यदि कोई समूह या व्यक्ति इस गैंग के सदस्य बन जायें, प्रिय पात्र बन जायें तब उनके और उनकी बिरादरी के खिलाफ़ कोई खबर आसानी से नहीं छपती। जबकि हिन्दुत्व पर ये सब लोग मिलजुलकर हमला बोलते हैं।
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India Battles to Win :- Tarun Vijay's new book | Sangh Parivar
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India Battles to Win :- Tarun Vijay's new book | Sangh Parivar
- by Tarun Vijay
- India bruised and brutalized with terror war, poverty and self denying secularism yet shining stunningly on world horizon as an unstoppable global power is like a lion shackled in deep slumber slowly awakening with a roar. India's time has arrived. Invincible military strength, emerging economic power and a vibrant reformist youth energy having pride in its core civilisational character are the ingredients that makes this Indian war winnable.
- THIS BOOK IS AVAILABLE AT A PRE-PUBLICATION PRICE OF RS. 395.00 till 15th August, 2009. THE PUBLISHED PRICE IS RS 495.00 PLEASE BOOK YOUR ORDER NOW TO AVAIL SPECIAL OFFER.
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