क्या अब तमाम हिंदू संघटनों का एजेंडा यह नही होना चाहिय की हिन्दुओ का पैसा उसीके पास हो। आज मैं भारत सरकार से मांग करता हूँ की हिंदुस्तान के अरबो रुपया के मन्दिर में चढावे के हक़ भी उसी हिंदू को मिलना चाहिय जो मन्दिर में चढावा चढाता है ।
तो मैं गरीब हिंदू तो अपने ही मन्दिर में अपना ही चढावा वापस मांग रहा हु। मुझे मेरी वेदिकता को अक्षुण बनाए रखने में कोई सरकारी सहायता नही चाहिय मुझे मेरे चढावे का पैसा वापस देदो। हाँ टैक्स के रूप में मुझ से जो लेकर मस्जिदों और चर्च को दे रहे हो उसके लिया मना नही कर रहा हूँ। भाई ८०० साल से जजिया दे रहा हूँ। आज अपने ही देश में अपने ही जब से दिए गए टैक्स से हज और मदरसे ठीक होते देख रहा हूँ तो कोई भी अचरज की बात नही होनी चाहिय।
अरे हज में खुदा न खस्ता इस प्रकार की घटना हो जाती तो यह मीडिया रात दिन एक कर देती। परन्तु मानसरोवर के मृतेको का कुछ भी नही। अरे यह जम्मू कश्मीर की ही सरकार अमरनाथ यात्रा के दौरान हिन्दुओ द्वारा फ्री यात्रियो के लिए टेंट और खाना पीना करने पर इन्ही दानी श्रदालो से २५००० हजार रुपया मांगती हैं तब प्रबंध की इजाजत देती है। तो भाई हमे तो जजिया देने की आदत है।
तो राज्य सरकार द्वारा जबरन मंदिरों का प्रबंधन अपने हाथ में लेने और इसके चढावे के पैसे को अपने स्वार्थ पूर्ति के लिया बने इसी काले कानून को सबसे पहेले हटाना चाहिए फिर उसके बाद ही कोई और बात होगी। हमने देखलिया किस तरीके से हमारी गंगा नदी की सफाई हो रही है। किस तरीके से भारत और दिल्ली सरकार यमुना को मरते हुए देख रही है। हमने देख लिया की यदि सरकार चाहए तो सरस्वती नदी को भी फिर से पाया जा सकता है।
हिन्दुओ की सभी मांगे एक तरफ़ पहेले इस काले कानून को वापस लेकर हिन्दुओ को उन्ही के खून पसीने की कमाई पर अधिकार दिया जाए।
"...... जिसके हाथ है वो हाथ से , जिसके मुह है वो मुह से, जिसके पास कलम है वो कलम से, गिर पड़ा तो जबान से, वो नहीं तो सांसो से, वो भी नहीं तो मरकर. पर हर हालत में अपनी असिमिता पाउँगा और फिर इस जनम में नहीं तो अगले में सिलसिला चलता रहेगा तब तक के मंजिल न मिलजाए......." - from त्यागी