Wednesday, June 22, 2011

Our Struggle – Assembly Election Results in Five States

Our Struggle – Assembly Election Results in Five States: "

2011 Assembly Elections in five states have been spectacular. While Congress and its cohorts have got victorious in states of West Bengal, Assam and Kerala, Tamil Nadu and Pondicherry have been won by AIADMK (of Ms. Jayalalita) and a regional party respectively.

BJP has been uprooted almost in states like Assam, Bengal and Kerala as Hindus here can’t depend on it as a pro-Hindu party any longer. BJP has disposed of its Hindutva identity and Hindus, undergoing struggle for existence, has comprehended it already.

To Know More Please Read:

http://hinduopinion.blogspot.com/2011/06/our-struggle-assembly-election-results.html

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स्वामी विवेकानन्द के नजर में इस्लाम ( swami VivekaNand about Islam ) - ३

स्वामी विवेकानन्द के नजर में इस्लाम ( swami VivekaNand about Islam ) - ३: "


९. किसी मुस्लिम देश में मंदिर बनाना वर्जित – “ ऐसा भारत में ही है कि यहाँ भारतीय ( हिंदू) मुसलमानों, ईसाईयों के लिए पूजा स्थल ( मस्जिद, गिरजाघर) बनवाते है, अन्यत्र कही नही | अगर आप एनी देशो में जाओ और मुसलमानों या एनी मतों के लोगो से कहो कि उन्हें अपने लिए मंदिर बनाने दो तो देखो वे तुम्हारी किस प्रकार मदद करते है, अनुमति देने कि जगह वे तुम्हे और तुम्हारे मंदिर को ही तोड़ डालने कि कोशिश करेंगे, यदि वे ऐसा कर सके |” ( ३:१४४)
१०. भारत में रहने वाले भी हिंदू – “ इसलिए यह शब्द ( हिंदू ) न केवल वास्तविक हिन्दुओ बल्कि मुसलमानों, ईसाईयों, जैनियों और एनी लोगो के लिए भी यही है, जो कि भारत में रहते है |” ( ३:११८ )
११. सैकड़ो वर्षों तक ‘अल्लाह–हो-अकबर’ गूंजता रहा – “बर्बर विदेशी आक्रान्ताओ की एक लहर के बाद दूसरी लहर इस हमारे पवित्र देश पर टकराती रही | वर्षों तक आकाश अल्लाह-हो-अकबर के नारों से गुंजायमान होता रहा और कोई हिंदू नही जानता था कि इसका अंतिम ‌‍‌क्षण कौन सा होगा| विश्व भर के ऐतिहासिक देशो मेसे भारत ने ही सबसे अधिक यातनाये और अपमान सहे है फिर भी हम लगभग उसी एक राष्ट्र के रूप में विद्यमान है और यदि आवश्यक हुआ तो सभी प्रकार कि आपदाओ को बार – बार सामना करने के लिए तैयार है | इतना ही नही, अभी हाल में ऐसे भी संकेत है कि हम ना केवल बलवान ही है बल्कि बाहर निकालने को तैयार है क्योकि जीवन का अर्थ प्रसार है |” ( ३:३६९-७० )
१२. मुसलमानों को तरह न मानाने पर हत्या - “ अज्ञानी लोग ...... एनी किसी देसरे मनुष्य माकी समस्यायों का अपने स्वतंत्र चिंतन के अनुसार व्याख्या न करने देने को न केवल मना करते है, बल्कि यहाँ तक कहने साहस करते है कि एनी सभी विल्कुल गलत है और केवल वही सही है | यदि ऐसे लोगो का विरोध किया जाता है तो वे लड़ने लगते है और यहाँ तक कहते है कि वे उस आदमी को मार देंगे यदि वह ऐसा विश्वास नही करता है जैसा कि वे स्वयं करते है |” ( ४:५२ )
१३. पैगम्बर व् फरिस्तो कि पूजने में आपत्ति नहीं – “ मुसलमान प्रारंभ से ही मूर्ति पूजा के विरोधी रहे है लेकिनुन्हे पैगम्बरों या उनके सन्देश वाहको को पूजने या उनके प्रति आदर प्रकट करने में कोई आपत्ति नही होती है, बल्कि वास्तविक व्यवहार में एक पैगम्बर कि जगह हजारों ही हजार पीरों कि पूजा की जारही है | “ ( ४:१२१ )
१४. मुसलमान सर्वाधिक संप्रदायवादी –इस ( इस्लाम ) के विषय में आज मुसलमान सबसे अधिक निर्दयी और सम्प्रदायवादी है उनका मुख्य सिध्दांत वाक्य है “ ईश्वर (अल्लाह) एक है और मुहम्मद उसका पैगम्बर है |” इसके अलावा सभी बाते न केवल बुरी है, बल्कि उन्हें फ़ौरन नष्ट कर देना चाहिए | प्रतेक स्त्री और पुरुष, जो इन सिध्दांत को पूरी तरह नही मानता है, उसे क्षण भर के चेतावनी के बाद मार देना चाहिए, प्रतेक वास्तु जो इस प्रकार की पूजा विधि के अनुकूल नहीं है, उसे फ़ौरन नष्ट कर देना चाहिए और प्रतेक पुस्तक जो इसके अलावा क्स्किस और बातों की शिक्षा देती है, उसे जला देना चाहिए | पिछले पांच सौ वर्षों में प्रशांत महासागर से लेकर आंध महासागर तक सारे विश्व में लगातार रक्तपात होता रहा है | यह है मुहम्मद्वाद ! फिर भी इन मुसलमानों में से ही, जहां कही कोई दार्शनिक व्यक्ति हुआ, उसने निश्चय ही इन अत्याचारों कि निंदा कि है |” ( ३ फरवरी १९००, कोपासडेना में दिए गए भाषण से, ४:१२६ )
१५. अल्लाह के लिए लड़ो – “ भारत में विदेशी आक्रान्ताओ की, सैकड़ो वर्षों तक लगातार, एक के बाद एक लहर आती रही और भारत को तोडती और नष्ट भ्रष्ट्र करती रही | यहाँ तलवारे चमकी और ‘ अल्लाह के लिए लड़ो और जीतो “ के नारों से भारत का आकाश जुन्जता रहा | लेकिन ये बाढ़े भारत के आदर्शो को बिना परिवर्तित किये हुए, स्वत: ही धीरे – धीरे समाप्त होती गयी |” ( ४:१५९ )
१६. मूर्ति पूजक हिंदू घृणास्पद – “ मुसलमानों के लिए यहूदी और ईसाई अत्यंत घृणा के पात्र नही है | उनकी नजरो में वे कम से कम ईमान के आदमी तो है | लेकिन ऐसा हिंदू के साथ नही हयाई | उनके अनुसार हिंदू मूर्ति पूजक है व् घृणास्पद ‘ काफ़िर’ है | इसलिए वह इस जीवन में नृशंस हत्या के योग्य है और मरने के बाद उसके लिए शाश्वत नरक तैयार है | मुसलमान सुलतानो ने काफिरो के अध्यात्मिक गुरुओ और पुजारियों के साथ यदि कोई सबसे अधिक कृपा की तो यह कि उन्हें किसी प्रकार अंतिम सांस लेने तक चुपचाप जी लेने के अनुमति दे दी | यह भी कभी कभी बड़ी दयालुता मानी गयी, यदि किसी मुस्लिम सुल्तान का धार्मिक जोश असामान्य या कुछ अधिक होता है तो ‘ काफिरो’ के कत्ले आम रूपी बड़े यग्य का फ़ौरन ही प्रबंध किया जाता है |” (४: ४४६ )
१७. यह कत्ले आम मुसलमान लाए – “ तुम जानते हो कि हिंदू धर्म किसी को यातना नही देता | यह एक ऐसा देश है जहां कि सभी प्रकार के सम्प्रदाय शांति और सौहार्द् के साथ रह सकते है | मुसलमान अपने साथ अत्याचार और कत्ले आम लाये, लेकिन उनके आने से पहले तक यहाँ शांति बनी रहती थी |” ( ५:१९० )
१८. मुसलमानों ने तलवार का सहारा लिया – “ भारत में मुसलमान ही ऐसे पहले लोग थे, जिन्होंने तलवार का सहारा लिए | “ ( ५:१९७ )
१९. एक हिंदू का कम होने का मतलब एक शत्रु का बढ़ना – “ सबसे पुराने इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार हमें बताया गया है कि जब सबसे पहले मुसलमान भारत में आये तो यह साठ करोंड़ हिंदू थे और अब केवल बीस करोंड़ है ( यानी चालीस करोंड़ हिंदू मारे गए और धर्मान्तरित किये गए ) | और हिंदू धर्म से एक भी हिंदू का बाहर जाने का मतलब है एक हिंदू का कम होना नहीं है बल्कि एक दुश्मन का बढ़ जाना है” इसके अलावा इस्लाम और ईसाईयत में धर्मान्तरित अधिकांश हिंदू तो तलवार के बल पर धर्मान्तरित हुए है या उनके संताने है |
“ ( ५:२३३ )
२०. मुहम्मदीय विजय को भारत में पीछे हटाना पड़ा – “ मुसलमानों के विजय कि लहर जिसने सारी पृथ्वी को निगल लिया था, उसे भारत के सामने पीछे हटाना पड़ा | “ ( ५:५२८ )
२१. हशासिन शब्द ‘असेसिन‘ बन गया – मुसलमानों का ‘ हशासिन ‘ शब्द ‘ असेसिन् ‘ बन गया क्योकि मुहम्मदीय मत का एक पुराना सम्प्रदाय गैर- मुसलमानों को मारने को अपने धर्म का एक अंग मनाता था |” ( ५:४० )
२२. इस्लाम में हिंसा का प्रयोग – “ मुसलमानों ने हिन्द का सबसे अधिक प्रयोग किया | “ ( ७:२१७ )
२३. गैर मुसलमानों को मार दो – “ एक ऐसा रिलीजन भी हो सकता है जो अत्यंत भयंकर शिक्षाये देता हो | उदाहरण के लिए मुसम्मादीय मत ( इस्लाम ) मुसलमानों को उन सबकी हत्या करने कि अनुमति देता है जो कि उसके मतानुयायी नही है | ऐसा कुरान में स्पष्ट लिखा है कि “ अविश्वाशियो ( गैर-मुसलमानों ) को मार दें | यदि वे मुहम्मादीय ( मुसलमान ) नही हो जाते है |” उन्हें अग्नि में झोक देना और तलवार से काट देना चाहिए |”
अब यदि हम किसी मुसलमान से कहे कि ऐसा गलत है तो, वह स्वाभाविक तौर पर फ़ौरन पूछेगा कि “ तुम ऐसा कैसे जानते है ? तुम कैसे जानते ही कि ऐसा ठीक नही है ? मेरी धर्म पुस्तक ( कुरान ) कहती है कि ऐसा ही ठीक है | “ ( १७ नवंबर १८९९ को लन्दन में दिए गए भाषण में , प्रैक्टिकल वेदांत, भाग ३ से )
( समस्त उध्दरण अंग्रेजी के सम्पूर्ण विवेकनन्द वाद्रिमय के हिंदी अनुबाद से है, खंड एवं पृष्ठानुसार )
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राजनीति -खोरों के लिए इसमें यही नसीहत और सबक है अगर ईमानदार नहीं हो तो वैसा दिखने का ढोंग (उपक्रम )भी न करो .

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मेरा फोटो


(वीरू भाई )
अतिथि पोस्ट के रूप में वीरू भाई का लेख आप के लिए प्रस्तुत है
--मदन शर्मा





राजीव गांधी की राजनीति में आत्मघाती गलती क्या था ? खुद को मिस्टर क्लीन घोषित करवाना . इंदिराजी श्यानी थीं . उनकी सरकार में चलने वाले भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जब उनकी राय पूछी गई उन्होंनेझट कहा यह तो एक भूमंडलीय फिनोमिना है . हम इसका अपवाद कैसे हो सकतें हैं .
(आशय यही था सरकारें मूलतया होती ही बे -ईमान और भ्रष्ट हैं ). यह वाकया १९८३ का है जिस पर दिल्ली उच्च न्यायालय के एक ईमानदार न्यायाधीश महोदय ने निराशा और हताशा के साथ कहा था-- वहां क्या हो सकता है भ्रष्टाचार के बिरवे का जहां सरकार की मुखिया ही उसे तर्क सम्मत बतलाये . यही वजह रही इंदिराजी पर कभी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा न ही उन्होंने कभी अपने भ्रष्टाचार और इस बाबत निर्दोष होने का दावा किया . ज़ाहिर है वह मानतीं थीं-'काजल की कोठारी में सब काले ही होतें हैं . ऐसा होना नियम है अपवाद नहीं ।
राजीव गांधी खुद को पाक साफ़ आदर्श होने दिखने की महत्व -कांक्षा पाले बैठे थे और इसलिए उन्हें बोफोर्स के निशाने पर लिया गया और १९८९ में उनकी सरकार को खदेड़ दिया गया . जब की इंदिरा जी ने खुद को इस बाबत इम्युनाइज़्द ही कर लिया था , वे आखिर व्यावहारिक राजनीतिग्य थीं ।
राजनीति -खोरों के लिए इसमें यही नसीहत और सबक है अगर ईमानदार नहीं हो तो वैसा दिखने का ढोंग (उपक्रम )भी न करो .
लेकिन सोनिया जी ने अपने शोहर वाला रास्ता अपनाया है . त्यागी महान और ईमानदार दिखने का .लगता है १९८७-१९८९ वाला तमाशा फिर दोहराया जाएगा . हवा का रुख इन दिनों ठीक नहीं है । आसार भी अच्छे नहीं हैं . अप -शकुनात्मक हैं ।

खतरे में लोकपाल- Vishwa Bandhu Gupta




Rahul Gandhi is Italian citizen, disqualifi​ed PM or MP – Dr. Subramania​n Swamy

Rahul Gandhi is Italian citizen, disqualifi​ed PM or MP – Dr. Subramania​n Swamy: "

June 20, 2011


Statement of Dr. Subramanian Swamy,

President of the Janata Party.


It is now clear that the corrupt cotarie that operates out of 10, Janpath, New Delhi has lost all hope on Dr. Manmohan Singh performing for them in the coming months as the 2G Spectrum Scam unravels and the list of accused lengthens with additions from the Congress Party. Hence the mouthpiece of the Janpath cotarie Mr. Digvijay Singh has declared that Mr. Rahul Gandhi is ready to take charge as Prime Minister of India now as if Dr. Manmohan Singh was some kind of regent in the Maino dynasty, waiting for Rahul to grow up.


First of all Mr. Rahul Gandhi should not try to become the Prime Minister of India because of a legal bar arising from Italian law which made him a citizen upon birth (to the then Italian citizen mother in 1970). He has never renounced this inherited citizenship and that he has traveled on Italian passport all over Europe on a alias. Moreover he has for the last two decades a medical history which disqualifies him to hold the post of Prime Minister.


In fact the disabilities, both legal and medical that Mr. Rahul Gandhi suffers from, does not entitle him to even remain as a Member of Parliament. Let him therefore learn from the experience of his mother whose attempt to become the Prime Minister in 2004 was aborted when the President of India Dr. Abdul Kalaam wrote her a letter (which is still to be published) and which letter was read by two witnesses present when Ms Sonia Gandhi received that letter, namely, Mr. Natwar Singh and Dr. Manmohan Singh. It should now be perfectly clear to Ms Sonia Gandhi as well as her two children that there is no legal way by which any of them can ever become the Prime Minister of India.


http://bharatkalyan97.blogspot.com/2011/06/rahul-gandhi-is-italian-citizen.html



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Vijayvaani.com - Polity needs Varna ethic - Sandhya Jain

http://www.vijayvaani.com/FrmPublicDisplayArticle.aspx?id=1838

 

Polity needs Varna ethic 
Sandhya Jain
 
 
 
 
 

In a powerful acknowledgement of the national mood towards the questionable accumulation of wealth by persons in high posts, the Central Information Commission (CIC) has suggested President Pratibha Patil consider if she would like to make her assets and those of her family members public, in the manner in which the Prime Minister did for himself and his cabinet in May 2009. Information commissioner Shailesh Gandhi feels this would “set a good example in transparency”, though he lacks the authority to insist on the matter.

 

At stake for the nation is the issue of the exercise of power without a moral dimension and public good. Amidst growing concerns about corruption in high office, the Prime Minister has moved from demanding annual declaration of assets by cabinet ministers to asking them to dissociate from businesses doing commerce with Government.

 

In this respect, Dr Manmohan Singh has drawn upon one of the most powerful concepts of Indian civilization, viz. that rulers must maintain a distinction from the commercial classes, and not merge with them to the detriment of society and nation. The ancient Hindu Varna system is not an intrinsic social hierarchy (like the British class system) but a hierarchy of values. It commands the intellectual class to pursue and preserve knowledge for the social good, and not misuse monopoly over knowledge to accrue undue profit for itself.

 

In like manner, the ruling class (politicians, bureaucrats) is mandated not to (mis)use the power of the State to acquire wealth that would not accrue to it but for the possession of power. In other words, those desirous of acquiring material wealth must pursue it legitimately in trade, industry or the professions. Politics is about regulating the society and protecting the state; it cannot be used to pervert the polity and/or the economy in favour of a chosen few.

 

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A welcome aspect of the Prime Minister’s new initiative is the demand for information about the employment of any family member(s) of any minister with a foreign government in India or abroad, or any foreign organization. Given the oblique manner in which foreign agencies make inroads into strategic households in third world countries, this inquiry should cover foreign NGOs like Amnesty International (founded by an MI6 official). The Prime Minister’s missive is explicit that in cases where a wife or dependent is employed with a foreign establishment prior to the person becoming a minister, the PM shall decide whether or not the employment should continue. The general rule, it is stressed, is that there should be total prohibition on employment with a foreign mission.

 

This is unexceptionable, but the rule should immediately cover IAS officers as well, as over the past two decades many have set up lucrative NGOs in the names of their spouses, which are recipients of generous Western funding.

 


 

The author is Editor, www.vijayvaani.com 

 
 

‘Dharmashakti Sena’, youth branch of HJS starts in Mumbai

‘Dharmashakti Sena’, youth branch of HJS starts in Mumbai: "Mumbai: Power needs to change hands in this country, said Mr. Abhay Vartak of Sanatan Sanstha while inaugurating the main branch of ‘Dharmashakti Sena’ of Hindu Janajagruti Samiti (HJS) was set up in Mumbai on 18th June."


From Left: Mr. Narendra Surve, HJS and Mrs. Abhay Vartak, Sanatan Sanstha

Dharma Is Not The Same As Religion

Dharma Is Not The Same As Religion: "


http://www.huffingtonpost.com/rajiv-malhotra/dharma-religion_b_875314.html


Rajiv Malhotra, founder, Infinity Foundation, writes:


The word “dharma” has multiple meanings depending on the context in which it is used. Monier-Williams’ Sanskrit-English Dictionary lists several, including: conduct, duty, right, justice, virtue, morality, religion, religious merit, good work according to a right or rule, etc. Many other meanings have been suggested, such as law or “torah” (in the Judaic sense), “logos” (Greek), “way” (Christian) and even ‘tao” (Chinese). None of these is entirely accurate and none conveys the full force of the term in Sanskrit. Dharma has no equivalent in the Western lexicon.


Dharma has the Sanskrit root dhri, which means “that which upholds” or “that without which nothing can stand” or “that which maintains the stability and harmony of the universe.” Dharma encompasses the natural, innate behavior of things, duty, law, ethics, virtue, etc. Every entity in the cosmos has its particular dharma — from the electron, which has the dharma to move in a certain manner, to the clouds, galaxies, plants, insects, and of course, man. Man’s understanding of the dharma of inanimate things is what we now call physics.

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The reduction of dharma to concepts such as religion and law has harmful consequences: it places the study of dharma in Western frameworks, moving it away from the authority of its own exemplars. Moreover, it creates the false impression that dharma is similar to Christian ecclesiastical law-making and the related struggles for state power.


The result of equating dharma with religion in India has been disastrous: in the name of secularism, dharma has been subjected to the same limits as Christianity in Europe. A non-religious society may still be ethical without belief in God, but an a-dharmic society loses its ethical compass and falls into corruption and decadence.

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Awestruck…

Awestruck…: "

Courtesy, The Hindu excerpts regarding an extraordinary find that indicates ‘Brain surgery’ during Harappan civilisation…


…Scientists at the Anthropological Survey of India claim to have found evidence of an ancient brain surgical practice on a Bronze Age Harappan skull. The skull, believed to be around 4,300 years old, bears an incision that indicates an “unequivocal case” of a surgical practice known as trepanation, says a research paper published in the latest edition of Current Science.



Trepanation, a common means of surgery practised in prehistoric societies starting with the Stone Age, involved drilling or cutting through the skull vault, often to treat head injury or to remove bone splinters or blood clots caused by a blow to the head.

…The procedure has, in some parts of the world, also been associated with religious rituals and “to ward off evil spirits”. However, in the case of the Harappa skull, the trepanation was intended as therapeutic as there is a clear indication of cranial trauma in the form of a visible linear depression, probably resulting from a severe blow, says the study by A.R. Sankhyan and G.R. Schug.


There is evidence too of healing, “indicating that the victim survived for a considerable time after the operation,” the paper adds.


Why has this not been reported elsewhere in media? Google news tells me that the only other mention of this news-story is in The Telegraph (from Koklata). Strange.

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अंबाला जेल की कालकोठरी से अमर बलिदानी वीर नाथूराम गोडसे का अपने माता - पिता के नाम अन्तिम पत्र

अंबाला जेल की कालकोठरी से अमर बलिदानी वीर नाथूराम गोडसे का अपने माता - पिता के नाम अन्तिम पत्र: "परम् वंदनीय माताजी और पिताजी ,
अत्यन्त विनम्रता से अंतिम प्रणाम ।
आपके आशीर्वाद विद्युतसंदेश से मिल गये । आपने आज की आपकी प्रकृति और वृद्धावस्था की स्थिति में यहाँ तक न आने की मेरी विनती मान ली , इससे मुझे बडा संतोष हुआ है । आप के छायाचित्र मेरे पास है और उसका पूजन करके ही मैं ब्रह्म में विलीन हो जाऊँगा ।
लौकिक और व्यवहार के कारण आप को इस घटना से परम दुःख होगा इसमें कोई शक नहीं । लेकिन मैं ये पत्र कोई दुःख के आवेग से या दुःख की चर्चा के कारण नहीं लिख रहा हूँ ।
आप गीता के पाठक है , आपने पुराणों का अध्ययन भी किया है ।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया है और वही भगवान ने राजसूय यज्ञभूमि पर -युद्धभूमि पर नहीं - शिशुपाल जैसे एक आर्य राजा का वध अपने सुदर्शन चक्र से किया है । कौन कह सकता है कि श्रीकृष्ण ने पाप किया है । श्रीकृष्ण ने युद्ध में और दूसरी तरह से भी अनेक अहंमन्य और प्रतिष्ठित लोगों की हत्या विश्व के कल्याण के लिए की है । और गीता उपदेश में अपने ( अधर्मी ) बान्धवों की हत्या करने के लिए बार - बार कह कर अन्त में ( युद्ध में ) प्रवृत्त किया है ।
पाप और पुण्य मनुष्य के कृत्य में नहीं , मनुष्य के मन में होता है । दुष्टों को दान देना पुण्य नहीं समझा जाता । वह अधर्म है । एक सीता देवी के कारण रामायण की कथा बन गयी , एक द्रोपदी के कारण महाभारत का इतिहास निर्माण हुआ ।
सहस्त्रावधी स्त्रियों का शील लुटा जा रहा था और ऐसा करने वाले राक्षसों को हर तरह से सहायता करने के यत्न हो रहे थे । ऐसी अवस्था में अपने प्राण के भय से या जन निन्दा के डर से कुछ भी न करना मुझसे नहीं हुआ । सहस्त्रावधी रमणियों के आशिर्वाद भी मेरे पीछे है ।
मेरे बलिदान मेरे प्रिय मातृभूमि के चरणों पर है । अपना एक कुटुम्ब या और कुछ कुटुम्बियों के दृष्टि से हानि अवश्य हो गयी । लेकिन मेरे दृष्टि के सामने छिन्न - भिन्न मन्दिर , कटे हुए मस्तकों की राशि , बालकों की क्रुर हत्या , रमणीयों की विडंबना हर घडी देखने में आती थी । आततायी और अनाचारी लोगों को मिलने वाला सहाय्य तोडना मैने अपना कर्तव्य समझा ।
मेरा मन शुद्ध है । मेरी भावना अत्यन्त शुद्ध थी । कहने वाले लाख तरह से कहेंगे तो भी एक क्षण के लिए भी मेरा मन अस्वस्थ नहीं हुआ । अगर स्वर्ग होगा तो मेरा स्थान उसमें निश्चित है । उस वास्ते मुझे कोई विशेष प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं है ।
अगर मोक्ष होगा तो मोक्ष की मनीषा मैं करता हूँ ।
दया मांगकर अपने जीवन की भीख लेना मुझे जरा भी पसंद नहीं था । और आज की सरकार को मेरा धन्यवाद है कि उन्होंने दया के रूप में मेरा वध नहीं किया । दया की भिक्षा से जिन्दा रहना यही मैं असली मृत्यु समझता था । मृत्यु दंड देने वाले में मुझे मारने की शक्ति नहीं है । मेरा बलिदान मेरी मातृभूमि अत्यन्त प्रेम से स्वीकार करेंगी ।
मृत्यु मेरे सामने आया नहीं । मैं मृत्यु के सामने खडा हो गया हूँ । मैं उनके तरफ सुहास्य वदन से देख रहा हूँ और वह भी मुझे एक मित्र के नाते से हस्तांदोलन करता है ।
जातस्यहि धृवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च । तस्मादपरिहार्येथे न त्वं शोचितुमर्हसि ।।
भगवदगीता में तो जीवन और मृत्यु की समस्या का विवेचन श्लोक - श्लोकों में भरा हुआ है । मृत्यु में ज्ञानी मनुष्य को शोक विह्ल करने की शक्ति नहीं है ।
मेरे शरीर का नाश होगा पर मैं आपके साथ हूँ । आसिंधु - सिंधु भारतवर्ष को पूरी तरह से स्वतंत्र करने का मेरा ध्येय - स्वप्न मेरे शरीर की मृत्यु होने से मर जाये यह असम्भव है ।
अधिक लिखने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है । सरकार ने आपको मुझसे मिलने की अंतिम स्वीकृति नहीं दी । सरकार से किसी भी तरह की अपेक्षा नहीं रखते हुए भी वह कहना ही पडेगा कि अपनी सरकार किस तरह से मानवता के तत्व को अपना रही है ।
मेरे मित्र गण और चि. दत्ता , गोविंद , गोपाल आपको कभी भी अंतर नहीं देंगें ।
चि. अप्पा के साथ और बातचीत हो जायेगी । वो आपको सब वृत्त निवेदन करेंगा ।
इस देश में लाखों मनुष्य ऐसे है कि जिनके नेत्र से इस बलिदान से अश्रु बहेंगे । वह लोग आपके दुःख में सहभागी हैं । आप आपको स्वतः को ईश्वर के निष्ठा के बल पर अवश्य संभालेंगे इसमें संदेह नहीं ।
अखण्ड भारत अमर रहे ।
वन्दे मातरम् ।
आपके चरणों को सहस्त्रशः प्रणाम
आपका विनम्र
नाथूराम वि. गोडसे
अंबाला दिनांक 12 - 11 - 49
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