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महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar)
- अभी यह ज्यादा पुरानी बात नहीं हुई है जब भारत में तीन नये राज्यों छत्तीसगढ़, झारखण्ड और उत्तरांचल का निर्माण बगैर किसी शोरशराबे और हंगामे के हो गया और तीनों राज्यों में तथा उनसे अलग होने वाले राज्यों में वहाँ के मूल निवासियों(?) और प्रवासियों(?) के बीच रिश्ते कड़वाहट भरे नहीं हुए। इन राज्यों में शान्ति से आम चुनाव आदि निपट गये और पिछले कई सालों से ये राज्य अपना कामकाज अपने तरीके चला रहे हैं। फ़िर तेलंगाना और आंध्र में ऐसा क्या हो गया कि पिछले 15 दिनों से दोनों तरफ़ आग लगी हुई है? दरअसल, यह सब हुआ है सोनिया गाँधी के अनाड़ीपन, खुद को महारानी समझने के भाव और कांग्रेसियों की चाटुकारिता की वजह से।
- ऐसे मौके पर याद आता है जब, वाजपेयी जी के समय छत्तीसगढ़ सहित अन्य दोनों राज्यों का बंटवारा शान्ति के साथ हुआ था और मुझे तो लगता है कि बंटवारे के बावजूद जितना सौहार्द्र मप्र-छत्तीसगढ़ के लोगों के बीच है उतना किसी भी राज्य में नहीं होगा। हालांकि छत्तीसगढ़ के अलग होने से सबसे अधिक नुकसान मप्र का हुआ है लेकिन मप्र के लोगों के मन में छत्तीसगढ़ के लोगों और नेताओं के प्रति दुर्भावना अथवा बैर की भावना नहीं है, और इसी को सफ़ल राजनीति-कूटनीति कहते हैं जिसे सोनिया और कांग्रेस क्या जानें… कांग्रेस को तो भारत-पाकिस्तान, हिन्दू-मुस्लिम और तेलंगाना-आंध्र जैसे बंटवारे करवाने में विशेषज्ञता हासिल है।
- महारानी और उनका “भोंदू युवराज” अपने किले में आराम फ़रमा रहे हैं… क्योंकि देश में जब भी कुछ बुरा होता है तब उन दोनों का दोष कभी नहीं माना जाता… सिर्फ़ अच्छी बातों पर उनकी तारीफ़ की जाती है, ज़ाहिर है कि उनके पास चमचों-भाण्डों और मीडियाई गुलामों की एक पूरी फ़ौज मौजूद है…
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