Thursday, August 11, 2011

Haindava Keralam - global community of dedicated Hindu Keralites with a peace mission

Haindava Keralam - global community of dedicated Hindu Keralites with a peace mission

Following image is the copy of Question Paper circulated among 10th Standard students in Palakkad.The Malayalam Scholar who prepared this Question paper wants students to write a commentary over the given write up.

The write up is a part of conversation between a Hindu Temple Priest and a Temple Administrator,, which concludes that Priests keep all the theft from Temples behind the diety in Sreekovil as no one else can go and inspect. It also notes that Temple administrators are bigger thieves than Temple priests.

No single chance to humiliate Hindus are not missed in Kerala. Such questions are said to be part of wider agenda to prepare Hindu students accustomed for continued discrimination and humiliation in their future life as well. A Hindu student who creatively write a commentary on such topics are forced to write up negatively against their own religion and there by to ooze out any self morale left among them.

A Professor's hand has been chopped off for alleged blasphemy by Jihadis and more over Government has promised strict action against Prof Joseph prior to Hand chop. Forget about Hand chop , not even a minor protest against this has been raised by our 'Secular Hindus' so far against this.

In this very same Question paper there is Question which wants the Students to match M F Hussein's name as Indian Picasso. Names of such perverts are included among other luminaries is said to be to balance the Secular nature of the Question paper!



Full Question paper

हिना रब्बानी की भारत यात्रा – भारतीय मीडिया और “सेकुलर” राजनीति को नंगा करती एक घटना… Heena Rabbani, Indian Media and Foreign Diplomacy




जिस दिन हिना रब्बानी भारत की यात्रा पर दिल्ली पधारीं, उन्होंने उसी दिन कश्मीर के सभी अलगाववादी हुर्रियत (Hurriyat Conference) नेताओं जैसे, सैयद अली शाह गिलानी, मीरवायज़ उमर फ़ारुक, अब्दुल गनी बट, आगा सईद बडगामी और बिलाल लोन से मुलाकात की। किस जगह? पाकिस्तान के दूतावास में…। सामान्य सी “प्रोटोकॉल” और कूटनीतिक समझ रखने वाला निचले स्तर का अफ़सर भी समझ सकता है कि इसके गहरे निहितार्थ क्या हैं। प्रोटोकॉल के अनुसार पाकिस्तान के विदेश मंत्री को अपनी “आधिकारिक” भारत यात्रा पर सबसे पहले विदेश मंत्रालय के उच्चाधिकारियों, विदेश मंत्री या किसी राज्य के मुख्यमंत्री से ही मुलाकात करना चाहिए… (व्यक्तिगत यात्रा हो तो वे किसी से भी मिल सकते हैं), लेकिन ऐसा नहीं हुआ, भारत सरकार की “औकात” सरेआम उछालने के मकसद से हिना रब्बानी ने जानबूझकर हुर्रियत नेताओं से पाकिस्तान के दूतावास में मुलाकात की, जबकि यदि उन्हें कश्मीर की वाकई इतनी ही चिंता थी तो उन्हें उमर अब्दुल्ला से मिलना चाहिए था, अगले दिन एसएम कृष्णा से आधिकारिक चर्चा होनी ही थी, फ़िर सैयद अली शाह गिलानी जैसे नेताओं से मिलने की क्या तुक है?

इसमें सबसे खतरनाक बात यह है कि हुर्रियत के इन सभी नेताओं में से अधिकतर “सरकार की निगाह” में “नज़रबन्द” हैं, तो फ़िर ये लोग श्रीनगर से दिल्ली कैसे पहुँचे? क्या सरकार इस बारे में जानती थी कि ये लोग क्यों और किससे मिलने आ रहे हैं? यदि जानती थी तब तो यह बेहद गम्भीर बात है क्योंकि इससे साबित होता है कि “प्रशासनिक मशीनरी” में ऐसे तत्व खुलेआम घुस आए हैं जो कश्मीर को पाकिस्तान के सामने पेश करने के लिये मरे जा रहे हैं, और यदि सरकार इस बारे में कुछ भी नहीं जानती थी, तब तो यह जम्मू-कश्मीर और केन्द्र सरकार की सरासर नाकामी और निकम्मापन है कि “नज़रबन्द” नेता दिल्ली पहुँच जाएं और पाकिस्तान के विदेश मंत्री से मुलाकात भी कर लें…। क्या यह देश की सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं है कि सुरक्षा एजेंसियों को पता लगे बिना अलगाववादी नेता आराम से दिल्ली आते हैं और सरेआम सरकार को तमाचा जड़कर चले गये? भारत सरकार और आम जनता के प्रतिनिधि विदेश मंत्री या उमर अब्दुल्ला हैं या हुर्रियत वाले? और फ़िर भी सरकार सिर्फ़ हें-हें-हें-हें-हें करते बैठी रही? ऐसा क्यों… एक सवाल एसएम कृष्णा जी से पूछने को जी चाहता है, कि क्या भारत के विदेशमंत्री की इतनी “हिम्मत” है कि वह पेइचिंग में सरकारी मेहमान बनकर वहीं पर “दलाई लामा” से मुलाकात कर ले?
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तात्पर्य यह है कि भारत के सत्ता संस्थान तथा मीडिया में ऐसे तत्व बहुतायत में भरा गये हैं, जिन्हें अब “देश की एकता और अखण्डता” नामक अवधारणा में कोई विश्वास नहीं है। सत्ता के करीब और “प्रियकर” यह “खास-तत्व”, अरुंधती को आज़ादी(?) देंगे, हुर्रियत को आज़ादी देंगे, कोबाद घांदी तथा बिनायक सेन के साथ नरमी से पेश आएंगे, नगालैण्ड और मणिपुर के उग्रवादियों से चर्चाएं करेंगे… सभी अलगाववादियों के सामने “लाल कालीन” बिछाएंगे… उनके सामने “सत्ता की ताकत” और “राष्ट्र का स्वाभिमान” कभी नहीं दिखाएंगे। परन्तु जैसे ही बाबा रामदेव या अण्णा हजारे कोई उचित माँग करेंगे, तो ये लोग तत्काल “सत्ता का नंगा नाच” दिखाने लगेंगे।

ब्रेडफ़ोर्ड एवं मुरादाबाद को लेकर "सेकुलर" मित्रों से दो सवाल (एक माइक्रो पोस्ट)

ब्रेडफ़ोर्ड एवं मुरादाबाद को लेकर "सेकुलर" मित्रों से दो सवाल (एक माइक्रो पोस्ट): "

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इंग्लैण्ड में पूर्वी लन्दन, ब्रेडफ़ोर्ड एवं बर्मिंघम शहरों के मुस्लिम बहुल इलाकों में कुछ दिनों पहले अचानक रात को पोस्टर जगह-जगह खम्भों पर लगे मिले… साथ में कुछ पर्चे भी मिले हैं जिसमें मुस्लिम बहुल इलाकों को "शरीयत कण्ट्रोल्ड झोन" बताते हुए वहाँ से गुज़रने वालों को चेताया गया है, कि यहाँ से गुज़रने अथवा इस इलाके में आने वाले लोग संगीत न बजाएं, जोर-जोर से गाना न गाएं, सिगरेट-शराब न पिएं, महिलाएं अपना सिर ढँककर निकलें… आदि-आदि। कुछ गोरी महिलाओं पर हल्के-फ़ुल्के हमले भी किए गये हैं… हालांकि पुलिस ने इन पोस्टरों को तुरन्त निकलवा दिया है, फ़िर भी आसपास के अंग्रेज रहवासियों ने सुरक्षा सम्बन्धी चितांए व्यक्त की हैं एवं ऐसे क्षेत्रों के आसपास स्थित चर्च के पादरियों ने सावधान रहने की चेतावनी जारी कर दी है…।

स्थानीय निवासियों ने दबी ज़बान में आरोप लगाए हैं कि पिछले दो दिनों से लन्दन में जारी दंगों में "नीग्रो एवं काले" उग्र युवकों की आड़ में नकाब पहनकर मुस्लिम युवक भी इन दंगों, आगज़नी और लूटपाट में सक्रिय हैं…। सच्चाई का खुलासा लन्दन पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किये गये 300 से दंगाईयों से पूछताछ के बाद ही हो सकेगा, परन्तु "शरीया जोन" के पोस्टर देखकर ईसाईयों में भी असंतोष और आक्रोश फ़ैल चुका है।

भारत में ऐसे "मिनी पाकिस्तान" और "शरीयत नियंत्रित इलाके" हर शहर, हर महानगर में बहुतायत में पाए जाते हैं, जहाँ पर पुलिस और प्रशासन का कोई जोर नहीं चलता। कल ही मुरादाबाद में, कांवड़ यात्रियों के गुजरने को लेकर भीषण दंगा हुआ है। "सेकुलर सरकारी भाषा" में कहा जाए तो एक "समुदाय" द्वारा, "क्षेत्र विशेष" से कांवड़ यात्रियों को "एक धार्मिक स्थल" के सामने से निकलने से मना करने पर विवाद की स्थिति बनी और दंगा शुरु हुआ। देखना है कि क्षेत्र के माननीय(?) सांसद मोहम्मद अजहरुद्दीन क्या कदम उठाते हैं, तथा "गुजरात-फ़ोबिया" से ग्रस्त मानसिक विकलांग मीडिया इसे कितना कवरेज देता है (कुछ माह पहले बरेली में हुए भीषण दंगों को तो मीडिया ने "बखूबी"(?) दफ़न कर दिया था)

हमारे "तथाकथित सेकुलर" मित्र, क्या इन दो प्रश्नों का जवाब देंगे कि -

1) जब तक मुस्लिम किसी आबादी के 30% से कम होते हैं तब तक वे उस देश-राज्य के कानून को मानते हैं, पालन करते हैं… परन्तु जैसे-जैसे इलाके की मुस्लिम आबादी 50% से ऊपर होने लगती है, उन्हें "शरीयत कानून का नियंत्रण", "दारुल-इस्लाम" इत्यादि क्यों याद आने लगते हैं?

2) जब-जब जिस-जिस इलाके, क्षेत्र, मोहल्ले-तहसील-जिले-संभाग-राज्य-देश में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाते हैं, वहाँ पर अल्पसंख्यक (चाहे ईसाई हों या हिन्दू) असुरक्षित क्यों हो जाते हैं?

इन मामूली और आसान सवालों के जवाब "सेकुलरों" को पता तो हैं, लेकिन बोलने में ज़बान लड़खड़ाती है, लिखने में हाथ काँपते हैं, और सारा का सारा "सेकुलरिज़्म", न जाने कहाँ-कहाँ से बहने लगता है…