ब्रेडफ़ोर्ड एवं मुरादाबाद को लेकर "सेकुलर" मित्रों से दो सवाल (एक माइक्रो पोस्ट): ""
इंग्लैण्ड में पूर्वी लन्दन, ब्रेडफ़ोर्ड एवं बर्मिंघम शहरों के मुस्लिम बहुल इलाकों में कुछ दिनों पहले अचानक रात को पोस्टर जगह-जगह खम्भों पर लगे मिले… साथ में कुछ पर्चे भी मिले हैं जिसमें मुस्लिम बहुल इलाकों को "शरीयत कण्ट्रोल्ड झोन" बताते हुए वहाँ से गुज़रने वालों को चेताया गया है, कि यहाँ से गुज़रने अथवा इस इलाके में आने वाले लोग संगीत न बजाएं, जोर-जोर से गाना न गाएं, सिगरेट-शराब न पिएं, महिलाएं अपना सिर ढँककर निकलें… आदि-आदि। कुछ गोरी महिलाओं पर हल्के-फ़ुल्के हमले भी किए गये हैं… हालांकि पुलिस ने इन पोस्टरों को तुरन्त निकलवा दिया है, फ़िर भी आसपास के अंग्रेज रहवासियों ने सुरक्षा सम्बन्धी चितांए व्यक्त की हैं एवं ऐसे क्षेत्रों के आसपास स्थित चर्च के पादरियों ने सावधान रहने की चेतावनी जारी कर दी है…।
स्थानीय निवासियों ने दबी ज़बान में आरोप लगाए हैं कि पिछले दो दिनों से लन्दन में जारी दंगों में "नीग्रो एवं काले" उग्र युवकों की आड़ में नकाब पहनकर मुस्लिम युवक भी इन दंगों, आगज़नी और लूटपाट में सक्रिय हैं…। सच्चाई का खुलासा लन्दन पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किये गये 300 से दंगाईयों से पूछताछ के बाद ही हो सकेगा, परन्तु "शरीया जोन" के पोस्टर देखकर ईसाईयों में भी असंतोष और आक्रोश फ़ैल चुका है।
भारत में ऐसे "मिनी पाकिस्तान" और "शरीयत नियंत्रित इलाके" हर शहर, हर महानगर में बहुतायत में पाए जाते हैं, जहाँ पर पुलिस और प्रशासन का कोई जोर नहीं चलता। कल ही मुरादाबाद में, कांवड़ यात्रियों के गुजरने को लेकर भीषण दंगा हुआ है। "सेकुलर सरकारी भाषा" में कहा जाए तो एक "समुदाय" द्वारा, "क्षेत्र विशेष" से कांवड़ यात्रियों को "एक धार्मिक स्थल" के सामने से निकलने से मना करने पर विवाद की स्थिति बनी और दंगा शुरु हुआ। देखना है कि क्षेत्र के माननीय(?) सांसद मोहम्मद अजहरुद्दीन क्या कदम उठाते हैं, तथा "गुजरात-फ़ोबिया" से ग्रस्त मानसिक विकलांग मीडिया इसे कितना कवरेज देता है (कुछ माह पहले बरेली में हुए भीषण दंगों को तो मीडिया ने "बखूबी"(?) दफ़न कर दिया था)
हमारे "तथाकथित सेकुलर" मित्र, क्या इन दो प्रश्नों का जवाब देंगे कि -
1) जब तक मुस्लिम किसी आबादी के 30% से कम होते हैं तब तक वे उस देश-राज्य के कानून को मानते हैं, पालन करते हैं… परन्तु जैसे-जैसे इलाके की मुस्लिम आबादी 50% से ऊपर होने लगती है, उन्हें "शरीयत कानून का नियंत्रण", "दारुल-इस्लाम" इत्यादि क्यों याद आने लगते हैं?
2) जब-जब जिस-जिस इलाके, क्षेत्र, मोहल्ले-तहसील-जिले-संभाग-राज्य-देश में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाते हैं, वहाँ पर अल्पसंख्यक (चाहे ईसाई हों या हिन्दू) असुरक्षित क्यों हो जाते हैं?
इन मामूली और आसान सवालों के जवाब "सेकुलरों" को पता तो हैं, लेकिन बोलने में ज़बान लड़खड़ाती है, लिखने में हाथ काँपते हैं, और सारा का सारा "सेकुलरिज़्म", न जाने कहाँ-कहाँ से बहने लगता है…