Wednesday, October 21, 2009

IntelliBriefs: Why not try a trade system that optimizes each nation's interest?

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    • Therefore, for developing countries, it would be better to have a trade management system in which each country, not only developed ones, pays for its imports with its own currency. In that case, a developed exporting country would be obliged to buy from the country to which it exports. The system would not lead to a massive surplus for one country and a deficit for another, but rather to a balanced trade regime that benefits everyone.
    • Dipak R. Basu is professor of international economics at Nagasaki University.

Wake Up Washington! China Is Already Dumping the Dollar Niall Ferguson Says: Tech Ticker, Yahoo! Finance

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    • "The idea they don't have anywhere else to go or would shoot themselves in the foot if there were a steep decline in the dollar or appreciation of their currency reassures many people in Washington ‘we can relax'," he says. "An appreciation of the renminbi may reduce value of their international reserves but increases the value of every other asset the Chinese own," most notably the commodity assets they have been buying all over the world.
    • China's "current strategy is to diversify out of dollars and into commodities," Ferguson says. Furthermore, China's recent pact with Brazil to conduct trade in their local currencies is a "sign of the times."
    • Perhaps most importantly, China's massive stimulus program is helping to generate internal consumption in the People's Republic, meaning local manufacturers are less dependent on exports. Because of the "rapid growth" of Chinese domestic consumption, Ferguson predicts China's international trade surplus could be gone by next year.

महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar): भारत में ईसाई-मुस्लिम संघर्ष की शुरुआत केरल से होगी… Christian Muslim Ratio and Dominance in Kerala

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    • आज की तारीख में केरल में अर्थव्यवस्था, शिक्षा, कृषि, ग्रामीण और शहरी भूमि, वित्तीय संस्थानों और सरकार के सत्ता केन्द्रों में ईसाईयों और मुसलमानों का वर्चस्व और बोलबाला है। यदि सरकार, निगमों, अर्ध-सरकारी संस्थानों, विश्वविद्यालयों और सरकारी नियन्त्रण में स्थापित उद्योगों में कर्मचारियों का अनुपात देखें तो साफ़ तौर पर चर्च और मुस्लिम-लीग का प्रभाव दिखाई देता है।
    • समूचे केरल में हिन्दू (पूरे देश की तरह ही) बिखरे हुए और असंगठित हैं, उनके पास चुनाव में वोट देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है, न ही नीति-निर्माण में उनकी कोई बात सुनी जाती है, न ही उनकी समस्याओं के निराकरण में। केरल में हिन्दुओं की कोई "राजनैतिक ताकत" नहीं है [देश में ही नहीं है], जल्दी ही पश्चिम बंगाल और असम भी इसी रास्ते पर कदम जमा लेंगे, जहाँ हिन्दुओं की कोई सुनवाई नहीं होगी (कश्मीर तो काफ़ी समय पहले ही हिन्दुओं को लतियाकर भगा चुका है)।
    • फ़िलहाल केरल में जनसंख्या सन्तुलन की दृष्टि से देखें तो लगभग 30% ईसाई, लगभग 30% मुस्लिम और 10% हिन्दू हैं, बाकी के 30% किसी धर्म के नहीं है यानी वामपंथी है (यानी बेपेन्दे के लोटे हैं) जो जब मौका मिलता है, जिधर फ़ायदा होता उधर लुढ़क जाते हैं
    • वामपंथी दोगलेपन की हद देखिये कि इन्हें हिन्दू मन्दिरों से होने वाली आय में से राज्य के विकास के लिये हिस्सा चाहिये, लेकिन चर्च अथवा मदरसों को मिलने वाले चन्दे के बारे में कभी कोई हिसाब नहीं मांगा जाता।
    • हिन्दुओं के पक्ष में आवाज़ उठाने वाले हिन्दू मुन्नानी, विश्व हिन्दू परिषद एवं संघ कार्यकर्ताओं पर मराड (http://en.wikipedia.org/wiki/Marad_massacre) तथा कन्नूर (http://www.rediff.com/news/2008/jan/13kannur.htm) जैसे रक्तरंजित हमले किये जाते हैं और पुलिस आँखें मूंद कर बैठी रहती है, क्योंकि हिन्दू न तो संगठित हैं न ही “वोट बैंक”। केरल से निकलने वाले 14 प्रमुख अखबारों में से सिर्फ़ एक अखबार मालिक हिन्दू है, जबकि केबल नेटवर्क के संगठन पर माकपा के गुण्डे कैडर का पूर्ण कब्जा है।
    • यह तो हुई आज की स्थिति, भविष्य की सम्भावना क्या बनती है इस पर भी एक निगाह डाल लें।
    • “फ़िलहाल” का मतलब यह है कि धर्म परिवर्तन करवाने वाले ईसाई संगठनों को अच्छी तरह पता है कि भले ही वह व्यक्ति इस पीढ़ी में “विनय जॉर्ज” रहे, और दुर्गा और बाइबल दोनों को एक साथ रखे रहे, लेकिन उसके लगातार चर्च में आने, और चर्च साहित्य पढ़ने से उसकी अगली पीढ़ी निश्चित ही “विन्सेंट जॉर्ज” होगी, और एक बार किसी खास इलाके, क्षेत्र या राज्य का जनसंख्या सन्तुलन चर्च के पक्ष में हुआ कि उसके बाद ही तीसरा चरण आता है जोर-जबरदस्ती करने, अलग राज्य की मांग करने और भारत सरकार को आँखें दिखाने का (उदाहरण त्रिपुरा, नागालैंड और मिजोरम)। कहने का तात्पर्य यह कि ईसाई संगठन और चर्च, मुसलमानों के मुकाबले बहुत अधिक शातिर तरीके और ठण्डे दिमाग से काम ले रहे हैं।

Hindu youth join LeT as mercenaries- TIMESNOW.tv

VHP leader files FIR against church priest, says converting Hindus to Christianity forcibly - Express India

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    • Pratapgarh city circle officer Shiva Ji said district VHP organising secretary Devraj lodged the FIR alleging the priest at Pratapgarh church, S K Singh, and his follower Shiv Kumar Verma alias ‘Eeshu Baba’ had  converted several Hindus  to Christianity during the last few months.
    • The CO said the primary investigation showed Verma has been holding a daily congregation at Bakshu ka Purwa village for the last few months. He used to offer “holy water” to those suffering from various diseases, claiming it was a complete cure for all their problems. He charged Rs 60 from people who asked for the “holy water” and those who attended the gathering had to pay Rs 10 each for registration, he said.
    • According to Upendra Singh Yadav, the station officer at the Antoo police station, the complainant alleged that Verma forced people to accept pendants bearing the cross along with the “holy water”. The VHP leader alleged Verma was running a campaign of conversion at the behest of S K Singh, the SO added.

The Pioneer >> Why knot Pakistani Hindus get right to stay longer in India

Carrying widowed mother, he is modern day Shravan Kumar

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    • Lucknow
    • Balancing his mother and his few worldly possessions, a youth in Uttar Pradesh has set out on a pilgrimage just like Shravan Kumar of Indian epic Ramayana who carried his parents in two baskets slung across his shoulder.
      Virendra Kumar Verma, 21, a resident of the Chandpur village in Sitapur district, says he wants to fulfil his mother’s wish by taking her on the pilgrimage to the Hindu holy city of Haridwar in Uttarakhand and is making the journey on foot as he has no money.
    • “I am doing nothing extraordinary. It’s my responsibility as my mother wants to visit Haridwar before leaving the world,” Kumar said.
    • “My mother had plans to visit Haridwar along with my father Jagdeesh Prasad, who died of protracted illness around two months back. He was suffering from renal problems. As I had exhausted all my resources on his treatment, I had no option other than carrying my mother on my shoulders to fulfil her wishes,” added Kumar, who is a farmer.

गोवा के कांग्रेसी मंत्री भी उग्रवादी निकले

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    • पंकज शुक्ला
      डेटलाइन इंडिया
    • अब हिंदूवादी संगठनों में सिर्फ भाजपा और उससे जूड़े संगठन आतंकवादी घटनाओं में शामिल नहीं रह गए हैं। यह खतरनाक जानकारी गोवा में हुए विस्फोटों के बाद मिली जिनमें पाया गया कि वहां की कांग्रेसी सरकार के एक मंत्री भी उग्रवादी माने जाने वाले हिंदू संगठनों से वास्ता रखते हैं। गोवा बम ब्लास्ट मामले में गोवा सरकार के परिवहन मंत्री की पत्नी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। पुलिस जांच में सामने आया है कि मंत्री जी की पत्नी पिछले 4 साल से सनातन आश्रम से जुड़ी रही हैं। इसके अलावा ये भी खुलासा हुआ है कि जिस काइनेटिक होंडा का इस्तेमाल धमाके में किया गया था वो मंत्री के भांजे के नाम रजिस्टर्ड है। सबसे सनसनीखेज ये कि धमाके में मारा गया आरोपी मालगोंडा पाटिल मंत्री जी की पत्नी के संपर्क में था।

अपने भारतीय होने का प्रमाण दें गोरखा

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    • शिमला.
    • जमाने से भारत में रहते आए लाखों गोरखा परिवार क्या अब जनप्रतिनिधि चुनने का अपना अधिकार खो देंगे? चुनाव आयोग ने उनसे भारत का-जन—होने का प्रमाण मांगा है। शिमला के दो दर्जन गोरखा परिवारों को निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी ने नागरिकता प्रमाण या जन्म प्रमाण पत्र देने को कहा है, ऐसा नहीं किए जाने पर मतदाता सूची से उनके नाम हटाए जा सकते हैं।
    • यह नोटिस भारत में रह रहे नेपाली लोगों के मताधिकार पर आयोग की ओर से जारी दिशा निर्देशों के तहत दिए गए हैं। सालों से अपने नेपाली न होने की पैरवी करते गोरखा कह रहे हैं कि नागरिकता और जन्म प्रमाण पत्र की मांग करना देश के प्रति उनकी निष्ठा पर सवाल तो है ही, साथ ही बड़ी परेशानी भी है।
    • हिंदुस्तान में रह रहे गोरखा लोग पुराने वक्त में नेपाली शासकों की जनता हुआ करती थी लेकिन जिस हिस्से में वे रहते थे वह अब भारत का अभिन्न अंग है तो वे भारतीय ही हुए।
    • गुरू गोरखनाथ के अनुयायी कहलाए गोरखा



      गोरखाओं का उद्भव उत्तरी भारत से हुआ है। आठवीं शताब्दी के हिंदु योद्धा संत गुरू गोरखनाथ के नाम पर गोरखा नाम रखा गया। राजकुमार बप्पा रावल जब किशोर अवस्था में अपने साथियों के साथ राजस्थान के जंगलों में शिकार करने के लिए गए थे, तब उन्होंने जंगल में संत गुरू गोरखनाथ को ध्यान में बैठे हुए पाया।



      बप्पा रावल ने संत के नजदीक ही रहना शुरू कर दिया और उनकी सेवा करते रहे। गोरखनाथ जी जब ध्यान से जागे तो बप्पा की सेवा से खुश होकर उन्हे एक खुखरी दी और साथ ही कहा कि भविष्य में बप्पा रावल और उनका वंश पूरे विश्व में गोरखा के नाम से जाना जाएगा।

Pratahkal - सांगानेर में तनाव बरकरार वार्ता बेनतीजा रही

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    • सांगानेर कस्बे में पटाखे छोडऩे को लेकर दो दिन पहले दो सम्प्रदाय के लोगों के बीच हुई मारपीट के बाद पैदा हुआ तनाव मंगलवार को बरकरार रहा। इसी के चलते आज भी बाजार बन्द रहे और लोगों ने धरना दिया। इस बीच पुलिस अधीक्षक पी. रामजी ने दोनों ही सम्प्रदाय के लोगों के साथ बातचीत की। लेकिन कोई ठोस निर्णय नहीं निकल पाया।
    • भीलवाड़ा
    • बीती रात को हिन्दू संगठनों ने एक बैठक हुई।
      बैठक में एक सुझाव यह भी दिया गया कि तीज-त्यौहारों के मौके पर शांति बनाए रखने के लिए दोनों पक्षों की एक संयुक्त कमेटी और बना दी जाए। जिसकी देखरेख में त्यौहार मनाया जाए इसके लिए दोनों ही पक्षों से १५-१५ सदस्यों के नाम मांगे गये।

200 years that changed the world - Gapminder.org

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    • It was the last 200 years that changed the world. In 1809 all countries of the world had a life expectancy under 40 years and an income per person less than 3000 dollar per year. Since then the world has changed but it was not until after the second world war that most countries started to improve.

India Retold: INDIA HAS MUCH TO LEARN FROM CHINA, AND MUST

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    • Something has to be done about the sloth and the lack of purpose and pride that afflicts every government department. Something has to be done to put a sense of time and urgency into decision-making and enforce accountability. Something has to be done to end the colonial disconnect between arms of the government and the people, and involve the latter more meaningfully in governance.
    • Many living Chinese nationals have seen their country change three times almost completely. A feudal and backward nation of opium eaters became a communist state in 1949. That change turned the society on its head and lead to millions of deaths as Mao Zedong tried to put communism into practice at every level. That also resulted in a famine that saw around 35 million Chinese die. Such disasters made it evident that there was an unbridgeable and unacceptable gap between the theory and application of communism. Rapid economic growth required to catch up with West and usher all round prosperity was simply not possible with that ideology. That is why after Mao, Deng Xiaoping wisely dumped communism before if could throw the country into chaos again, and evolved a new brand of capitalism with a one-party rule. China also did not allow dynastic politics to take root, as was attempted by the Gang of Four led by Mao's widow.
    • In contrast, what have many living Indians seen? As far as governance is concerned, no one can tell when colonial rule ended and free India began; the only visible change that Independence ushered in was that the leaders elected by the people stopped reporting to the Governor General and the British Crown. Thanks to a couple of visits to the the Soviet Union that impressed him, Nehru tried to marry socialism with a colonial government structure, only to gave birth to the licence permit raj, unbridled corruption and many other ills that almost choked India to death. It was only after India had to pawn 47 tons of gold in the early nineties to stay afloat that some regulatory chains were loosened. That one step, forced by extreme circumstance mind you, is what saved India and allowed it to register faster economic growth. But when seen in the light of what China has achieved, our many failures easily swamp our few achievements.
    • Thus, if there is one nation from which India can learn the lessons it needs to about the whole business of governance and economic upliftment, it is China. The copied model that we have stuck to without daring to change some things laid down around 150 years back, has done nothing at all to give the taste of freedom and economic empowerment to nearly 80% of India's citizens even after 63 years. China, on the other hand, has continuously experimented heavily, from the individual upwards, to evolve a system that works like no other, and become a super power.

सृजन: धार्मिक स्थलों मैं फोटो खींचने की मनाही क्यूँ जायज है

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    • भले ही गिने-चुने समझदार लोग सिर्फ भगवान् का फोटो खींचते हो और इसपे कोई मना करे तो बुरा जरुर लगेगा ... पर जरा दुसरे दृष्टिकोण से भी सोचें की मंदिर प्रशासन कितने लोगों को ये समझता फिरे की किस तरह की फोटो allowed होगी और किस तरह की नहीं ?  
    • एक दूसरा बड़ा कारण ये भी है की आम भारतीय किसी पर्यटन स्थल या अन्य जगहों का वास्तविक आनंद ना लेकर फोटो खींचने मैं ही मशगुल रहते हैं | खैर लोग फोटो खींचे या कुछ और करें ये तो उनका व्यक्तिगत मामला है | पर मंदिर जाने का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए इश्वर से सन्निकटता | इस सन्निकटता मैं मोबाइल फ़ोन या कैमरे की क्या आवश्यकता?