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महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar):
- आज की तारीख में केरल में अर्थव्यवस्था, शिक्षा, कृषि, ग्रामीण और शहरी भूमि, वित्तीय संस्थानों और सरकार के सत्ता केन्द्रों में ईसाईयों और मुसलमानों का वर्चस्व और बोलबाला है। यदि सरकार, निगमों, अर्ध-सरकारी संस्थानों, विश्वविद्यालयों और सरकारी नियन्त्रण में स्थापित उद्योगों में कर्मचारियों का अनुपात देखें तो साफ़ तौर पर चर्च और मुस्लिम-लीग का प्रभाव दिखाई देता है।
- समूचे केरल में हिन्दू (पूरे देश की तरह ही) बिखरे हुए और असंगठित हैं, उनके पास चुनाव में वोट देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है, न ही नीति-निर्माण में उनकी कोई बात सुनी जाती है, न ही उनकी समस्याओं के निराकरण में। केरल में हिन्दुओं की कोई "राजनैतिक ताकत" नहीं है [देश में ही नहीं है], जल्दी ही पश्चिम बंगाल और असम भी इसी रास्ते पर कदम जमा लेंगे, जहाँ हिन्दुओं की कोई सुनवाई नहीं होगी (कश्मीर तो काफ़ी समय पहले ही हिन्दुओं को लतियाकर भगा चुका है)।
- फ़िलहाल केरल में जनसंख्या सन्तुलन की दृष्टि से देखें तो लगभग 30% ईसाई, लगभग 30% मुस्लिम और 10% हिन्दू हैं, बाकी के 30% किसी धर्म के नहीं है यानी वामपंथी है (यानी बेपेन्दे के लोटे हैं) जो जब मौका मिलता है, जिधर फ़ायदा होता उधर लुढ़क जाते हैं
- वामपंथी दोगलेपन की हद देखिये कि इन्हें हिन्दू मन्दिरों से होने वाली आय में से राज्य के विकास के लिये हिस्सा चाहिये, लेकिन चर्च अथवा मदरसों को मिलने वाले चन्दे के बारे में कभी कोई हिसाब नहीं मांगा जाता।
- हिन्दुओं के पक्ष में आवाज़ उठाने वाले हिन्दू मुन्नानी, विश्व हिन्दू परिषद एवं संघ कार्यकर्ताओं पर मराड (http://en.wikipedia.org/wiki/Marad_massacre) तथा कन्नूर (http://www.rediff.com/news/2008/jan/13kannur.htm) जैसे रक्तरंजित हमले किये जाते हैं और पुलिस आँखें मूंद कर बैठी रहती है, क्योंकि हिन्दू न तो संगठित हैं न ही “वोट बैंक”। केरल से निकलने वाले 14 प्रमुख अखबारों में से सिर्फ़ एक अखबार मालिक हिन्दू है, जबकि केबल नेटवर्क के संगठन पर माकपा के गुण्डे कैडर का पूर्ण कब्जा है।
- यह तो हुई आज की स्थिति, भविष्य की सम्भावना क्या बनती है इस पर भी एक निगाह डाल लें।
- “फ़िलहाल” का मतलब यह है कि धर्म परिवर्तन करवाने वाले ईसाई संगठनों को अच्छी तरह पता है कि भले ही वह व्यक्ति इस पीढ़ी में “विनय जॉर्ज” रहे, और दुर्गा और बाइबल दोनों को एक साथ रखे रहे, लेकिन उसके लगातार चर्च में आने, और चर्च साहित्य पढ़ने से उसकी अगली पीढ़ी निश्चित ही “विन्सेंट जॉर्ज” होगी, और एक बार किसी खास इलाके, क्षेत्र या राज्य का जनसंख्या सन्तुलन चर्च के पक्ष में हुआ कि उसके बाद ही तीसरा चरण आता है जोर-जबरदस्ती करने, अलग राज्य की मांग करने और भारत सरकार को आँखें दिखाने का (उदाहरण त्रिपुरा, नागालैंड और मिजोरम)। कहने का तात्पर्य यह कि ईसाई संगठन और चर्च, मुसलमानों के मुकाबले बहुत अधिक शातिर तरीके और ठण्डे दिमाग से काम ले रहे हैं।
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Wednesday, October 21, 2009
महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar): भारत में ईसाई-मुस्लिम संघर्ष की शुरुआत केरल से होगी… Christian Muslim Ratio and Dominance in Kerala
महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar): भारत में ईसाई-मुस्लिम संघर्ष की शुरुआत केरल से होगी… Christian Muslim Ratio and Dominance in Kerala
2009-10-21T22:06:00+05:30
Common Hindu