Tuesday, May 26, 2009

प्रभाकरण के मरने पर अफसोस क्यों..??

प्रभाकरण के मरने पर अफसोस क्यों..??



श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षे कैसे भी हों लेकिन वो बाहर कहीं से जब भी आते हैं तो विमान से उतरने के बाद सबसे पहले घुटनों के बल बैठकर अपनी मातृभूमि को प्रणाम करते हैं। उनकी इस भावना का मैं सम्मान करता हूँ और इस बात का भी कि उन्होंने दिखा दिया है कि आंतकवाद से कैसे निपटा जाता है।

26 साल पुराने आतंकवाद को उन्होंने कुछ महीनों में ही निपटा दिया और एक हम हैं कि आतंकवादियों का सफाया करने से पहले कई सारे गणित करने में उलझे रहते हैं, मसलन फलाँ धर्म के लोगों को तो बुरा नहीं लग जाएगा या हमारी फलाँ सहयोगी राजनीतिक पार्टी को तो बुरा नहीं लग जाएगा।

भारत सरकार को महिन्द्रा राजपक्षे से कुछ सीखना चाहिए और यह भी कि जब आप कुछ करने की ठान लें तो दुनिया की कोई भी शक्ति आपको रोक नहीं सकती। श्रीलंका तो भारत के मुकाबले बहुत छोटा है लेकिन उसने असीम दृढ़ता का परिचय दिया है। हमें उससे कुछ सीख लेनी होगी। मैं प्रभाकरण के मरने से खुश हूँ।

क्या वोटिंग मशीनों का “चावला-करण” किया जा सकता है?

क्या वोटिंग मशीनों का “चावला-करण” किया जा सकता है? Electronic Voting Machines Fraud Rigging in Elections


इस प्रक्रिया में चुनाव अधिकारी (जो कि अधिकतर सत्ताधारी पार्टी के इशारों पर ही नाचते हैं) की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है। ऐसे में एक गम्भीर सवाल उठता है कि क्या इन मशीनों का “चावलाईकरण” किया जा सकता है? “चावलाईकरण” की उपमा इसलिये, क्योंकि चुनावों में धांधली का कांग्रेस का इतिहास बहुत पुराना है। ऊपर से इस पार्टी को नवीन चावला जैसे “स्वामीभक्त” चुनाव आयुक्त भी प्राप्त होते रहे हैं (इसका एक और सबूत, मान्य संवैधानिक परम्पराओं के विपरीत, सेवानिवृत्ति के तत्काल बाद पूर्व चुनाव आयुक्त एम एस गिल को मंत्रीपद की रेवड़ी दिया जाना भी है)।

अब नज़र डालते हैं हाल ही में सम्पन्न लोकसभा चुनावों के नतीजों पर – पूरे देश में (जहाँ भाजपा का शासन था उन राज्यों को छोड़कर) लगभग सारे नतीजे कुछ इस प्रकार से आये हैं कि जो भी पार्टी कांग्रेस के लिये “सिरदर्द” साबित हो सकती थी या पिछली सरकार में सिरदर्द थी, उनका या तो सफ़ाया हो गया अथवा वे पार्टियाँ लगभग निष्क्रिय अवस्था में पहुँच गईं, उदाहरण के तौर पर – वामपंथियों की सीटें 50% कम हो गईं, मायावती भी लगभग 50% नीचे पहुँच गईं (जबकि सभी सर्वे, चैनल और विशेषज्ञ उनसे बेहतर नतीजों की उम्मीद कर रहे थे), जयललिता भी कुछ खास नहीं कर पाईं और तमिल भावनाओं के उफ़ान और सत्ता विरोधी लहर के बावजूद डीएमके को अच्छी खासी सीटें मिल गईं, लालू-पासवान का सफ़ाया हो गया, आंध्र में चिरंजीवी से खासी उम्मीद लगाये बैठे थे, वे भी कुछ खास न कर सके। जबकि दूसरी तरफ़ आंध्रप्रदेश में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिल गया, उत्तरप्रदेश में (कांग्रेस की) आशा के विपरीत भारी सफ़लता मिली, उड़ीसा में नवीन पटनायक को अकेले दम पर बहुमत मिल गया। जबकि कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार जैसे राज्यों में कांग्रेस उतना अच्छा नहीं कर पाई, ऐसा क्यों?

तात्पर्य यह कि यदि भारत का मतदाता वाकई में इतना समझदार, परिपक्व और “स्थिरता”(?) के प्रति सम्मोहित हो गया है तब तो यह लोकतन्त्र के लिये अच्छी बात है, लेकिन यदि जैसा कि अभी भी कई लोगों को शक हो रहा है कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों में गड़बड़ी की गई है, तब तो स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण कही जायेगी। हालांकि अभी इस बात के कोई प्रमाण मौजूद नहीं हैं, लेकिन शक के आधार पर इन मशीनों की जाँच हेतु एक दल या आयोग बनाये जाने की आवश्यकता है, कि जब अमेरिका में भी इन मशीनों को “संदिग्ध” पाया गया है तो भारत में भी इसकी विश्वसनीयता की “फ़ुलप्रूफ़” जाँच होनी ही चाहिये। सोचिये, कि अभी तो यह सिर्फ़ शक ही है, कोई सबूत नहीं… लेकिन यदि कहीं कोई सबूत मिल गया तो 60 साल पुराने लोकतन्त्र का क्या होगा?

करुणानिधि की तीन संतानों में से नाजायज कौन?

करुणानिधि की तीन संतानों में से नाजायज कौन?

आलोक तोमर डेटलाइन इंडिया नई दिल्ली, 26 मई - डीएमके के अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि ने धारावाहिक रूप से जब तीन शादियां की थी तो उन्हें खुद अंदाजा नहीं होगा कि आगे चल कर ये शादियां उनकी राजनैतिक पटकथा को कितना उलझा देंगी। करुणानिधि तमिल फिल्मों के बहुत सफल पटकथा लेखक रहे हैं। आज उनकी सबसे [...]

All hope is not lost yet.

All hope is not lost yet.

An IIT-B alumini and an ex-employee of Sun microsystems did what most of us would shudder to think of. He wuit his high paying job in the Us and returned to India to set things right. He contested the elections on the BJP ticket and won. No, he is not the son of a politician. All the best Mr. Swamy, hope you will be a role model to all youngsters in India.

Chitradurga MP Janardana Swamy, who gave up a top Sun Microsystems job in the US to come back to India, wants the country to become so self-reliant that Americans will soon be coming here for a living

His father, a school teacher, walked by his side, telling him inspiring stories.

“I was the only son,” recalled Janaradana Swamy. “My father took a transfer when I joined a school in a neighbouring village for the 5th standard, just so that he could walk with me to school.”

His father then became his “friend, guide and philosopher.”

The greatest moment in his professional life was when a circuit design process was patented in his name.

Millions of motherboards for Sun Microsystems were designed under him before he left the company and it was taken over by Oracle.

At 41, Janardana Swamy is all enthusiasm about getting his first glimpse of parliament.

The new MP hopes he can make Chitradurga a Bangalore by kickstarting economic activities. “We are going to have a branch of Indian Institute of Science at Chitradurga, and it may just be the much-needed trigger for development,” he said.

Artistic Freedom/Responsibility

Artistic Freedom/Responsibility

U. Narayana Das
ivarta.com

This article raises questions about the observations of Indian courts which have been generally liberal in preserving individual freedoms vis-à-vis the rights of the majority religion. Could the defenders of artistic freedom, have inveigled the courts into delivering ill-conceived judgements by speciously citing mischievous evidence? In the process were the courts oblivious to pertinent alternative views on the matter?

Did the Delhi High Court grant M. F. Hussain amnesty?
Alternative views
Fallacy, ignorance – or mischief!
The case
The Judgement
Epilogue