Wednesday, June 22, 2011

राजनीति -खोरों के लिए इसमें यही नसीहत और सबक है अगर ईमानदार नहीं हो तो वैसा दिखने का ढोंग (उपक्रम )भी न करो .

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(वीरू भाई )
अतिथि पोस्ट के रूप में वीरू भाई का लेख आप के लिए प्रस्तुत है
--मदन शर्मा





राजीव गांधी की राजनीति में आत्मघाती गलती क्या था ? खुद को मिस्टर क्लीन घोषित करवाना . इंदिराजी श्यानी थीं . उनकी सरकार में चलने वाले भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जब उनकी राय पूछी गई उन्होंनेझट कहा यह तो एक भूमंडलीय फिनोमिना है . हम इसका अपवाद कैसे हो सकतें हैं .
(आशय यही था सरकारें मूलतया होती ही बे -ईमान और भ्रष्ट हैं ). यह वाकया १९८३ का है जिस पर दिल्ली उच्च न्यायालय के एक ईमानदार न्यायाधीश महोदय ने निराशा और हताशा के साथ कहा था-- वहां क्या हो सकता है भ्रष्टाचार के बिरवे का जहां सरकार की मुखिया ही उसे तर्क सम्मत बतलाये . यही वजह रही इंदिराजी पर कभी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा न ही उन्होंने कभी अपने भ्रष्टाचार और इस बाबत निर्दोष होने का दावा किया . ज़ाहिर है वह मानतीं थीं-'काजल की कोठारी में सब काले ही होतें हैं . ऐसा होना नियम है अपवाद नहीं ।
राजीव गांधी खुद को पाक साफ़ आदर्श होने दिखने की महत्व -कांक्षा पाले बैठे थे और इसलिए उन्हें बोफोर्स के निशाने पर लिया गया और १९८९ में उनकी सरकार को खदेड़ दिया गया . जब की इंदिरा जी ने खुद को इस बाबत इम्युनाइज़्द ही कर लिया था , वे आखिर व्यावहारिक राजनीतिग्य थीं ।
राजनीति -खोरों के लिए इसमें यही नसीहत और सबक है अगर ईमानदार नहीं हो तो वैसा दिखने का ढोंग (उपक्रम )भी न करो .
लेकिन सोनिया जी ने अपने शोहर वाला रास्ता अपनाया है . त्यागी महान और ईमानदार दिखने का .लगता है १९८७-१९८९ वाला तमाशा फिर दोहराया जाएगा . हवा का रुख इन दिनों ठीक नहीं है । आसार भी अच्छे नहीं हैं . अप -शकुनात्मक हैं ।