हारना वाकई दुखद है, लेकिन सच्चाई स्वीकार करो और पुनः काम में जुट जाओ… BJP Defeat, UPA wins, Election Assessment
किसी ने भी नहीं सोचा था कि इतनी महंगाई (आम आदमी के रोज़मर्रा के जीवन को छूने वाला एक मुद्दा) तथा भयानक आतंकवाद (“एलीट क्लास” का मुद्दा) जैसे मुद्दों के बावजूद जनता कांग्रेस-यूपीए को जितायेगी, लेकिन यह हुआ।यदि सरसरी तौर पर विश्लेषण किया जाये तो भाजपा की हार के कुछ कारण दिखाई देते हैं, वे इस प्रकार हैं –
1) लालकृष्ण आडवाणी की स्वीकार्यता जनता में नहीं होना,
आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना शायद एक गलत कदम था, उनकी बजाय नरेन्द्र मोदी या सुषमा स्वराज को यदि ठीक से “मार्केटिंग” करके मैदान में उतारा जाता तो युवा वोटर का रुझान भाजपा को अधिक मिलता।
2) कम वोटिंग प्रतिशत, तथा
3) मीडिया का एकतरफ़ा सतत चलने वाला भाजपा-विरोधी अभियान।
लेकिन इसका मतलब यह हरगिज़ नहीं कि भाजपा-संघ-हिन्दुत्ववादी कार्यकर्ताओं को हतबल होकर बैठ जाना चाहिये।
क्या हिन्दुओं और हिन्दुत्व के चारो ओर मंडरा रहे संकेत मद्धिम हो गये, हरगिज़ नहीं। आज जनता इस बात को समझने में नाकाम रही है, तो हमारा यह कर्तव्य है कि उसे समझाने का प्रयास लगातार करते रहें…
यह उतार-चढ़ाव तो आते ही रहेंगे… लक्ष्य पर निगाह रखो और पुनः उठ खड़े हो, चलो…