प्रभाकरण के साथ एक सपना भी अस्त हुआ
प्रभाकरण सुभाष चन्द्र बॉस व भगत सिंह से प्रभावित था. वह भारत से प्रशिक्षण व हथियार भी पाता था. तब राजीव गाँधी सत्ता में थे.
भारतीय फौजें श्रीलंका में शांति स्थापना के नाम पर गई थी. वे लिट्टे से हथियार रखवाती, दुसरी तरफ से रॉ उन्हे हथियारों की आपूर्ति करती. पता नहीं राजीव ऐसा क्या सोच कर कर रहे थे?
फिर उन्होने एक दिन सेना से कहा लिट्टे पर हमला कर दे. सैनिक असमंजस में आ गए. कल तक जिन्हे मित्र मानते थे अब उन्हे ही दुश्मन बताया जा रहा था. फिर यह वहाँ श्रीलंका में किसी और की लड़ाई में टाँग डालने जैसा भी था. भारत के लिए लड़ना होता तो जी-जान लगा भी देते. इधर वे तमील क्षेत्र में थे, यानी घिरे हुए थे. हमारे राजनेता की इस मूर्खता ने देश के 1100 से ज्यादा सैनिकों की जान ले ली. मगर अंत में शहीद कौन कहलवाया? ऐसा ही होता है.
चुनावों तक श्रीलंका को रोके रखा गया और चुनाव पूरे होते ही प्रभाकरण को मार दिया गया. यह कैसी राजनीति है, कॉंग्रेस ने ही तो उसकी मदद की थी….इसीलिए दुख होता है.