Friday, June 12, 2009

पुण्य प्रसून बाजपेयी: बीजेपी के ग्राउंड जीरो पर मोदी-आडवाणी

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    • लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी राजकोट में कांग्रेस से हार गयी। बीजेपी के युवा कार्यकर्त्ताओ की माने तो बीजेपी कांग्रस से नहीं बीजेपी के कांग्रेसीकरण से हार गयी।
    • मोदी की लोकप्रियता का यह अंदाज मोदी को आरएसएस की उस राजनीतिक ट्रेनिंग से अलग खड़ा करता है, जिसमें वैचारिक शुद्दता के साथ आदर्श समाज की परिकल्पना हो।
    • जिन्हें टिकट दिया गया, उनका वास्ता संघ से रहा नहीं और सामाजिक पहचान बीजेपी के बीच की है नहीं। हां, बाजार और पूंजी से पहचान बनाने वाले बीजेपी के उन समर्थको को मोदी ने न सिर्फ टिकट दिया बल्कि गुजरात बीजेपी में उनकी राजनीतिक हैसियत भी बढ़ायी।
    • कल तक जो घन्नसेठ फक्कड और मुफलिस संघी स्वसंसेवक या बीजेपी नेता को अपने घर में ठहरा कर भोजन करा कर घन्य समझता था, वही सेठ नेता बनने के लिये अब जोड-तोड़ भी कर रहा है और वैचारिक तौर पर खुद को ज्यादा समझदार नेता भी मान रहा है और फक्कड-मुफलिस संघी को बाहर से ही बाहर का रास्ता दिखाने से नहीं चूक रहा।
    • सत्ता का रास्ता बीजेपी के लिये तभी तक मान्य है, जबतक वह कांग्रेस की बनायी लीक का विकल्प दे सके। असल में बीजेपी सत्ता के लिये अपनी उस लकीर को ही मिटाना चाह रही है, जो कांग्रेस की राजनीति से अलग बन रही थी। कांग्रेस के एनजीओ स्टाइल के सामानांतर संघ के करीब चालीस संगठन और को-ओपरेटिव व्यवस्था का जो खांचा बीजेपी को राजनीतिक लाभ पहुचा सकता था, उसे बीजेपी ने खुद ही तोडा ।
    • असल में भगवा कांग्रेसीकरण ने इसी जमीन को हड़पा है। जिसमें गुजरात में मोदी हो या दिल्ली में आडवाणी दोनो ने विकल्प का सारा ताना-बाना खुद के ही हर्द-गिर्द बुनने की जबरन कोशिश की है।
    • इसलिये संघ का वोट बैंक भगवा कांग्रेसीकरण यानी बीजेपी का वोटबैंक नही हो सकता।
    • वाजपेयी ने संघ की समझ को सूंड से पकड कर सत्ता भोगी और आडवाणी ने संघ की समझ को पूंछ मान कर खुद को ही मजबूत नेता माना ।

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