Monday, June 15, 2009

कुछ बाते जो समझ के बहार है. परन्तु फिर भी हम सबसे बड़े लोकतंत्र के मालिक है?

कुछ बाते जो समझ के बहार है. परन्तु फिर भी हम सबसे बड़े लोकतंत्र के मालिक है?

मुझे ख़ुशी होगी की इनके कोई उत्तर भी दे तो।
  • ८५% जनता का पेट भरने वाले किसान की राजनीती में पूछ न होना.
  • किसान के बाद एक और बड़ा विषय की देश और विदेशी सारे पुरुस्कार कुछ ही विशेष विचारधारा के लोगो को क्यों।
  • यह तो बात थी मीडिया कवरेज की। अब बात पुरुस्कारों की। अब आप निगहा दौड़ा ले पिछली सरकार के पदम भूषण पर। सारे पत्रकार सारे लेखक सारे चित्रकार सारे खिलाडी सभी एक ही विचारधारा के लोग।
  • सारे नए पुराने समाचारपत्र और टीवी चैनल एक ही विचारधारा के।
  • बोलीवुड में भी यही हाल है।

वीर सावरकर की पिक्चर दिखाने के लिए वितरक नहीं मिलते और जोधा अकबर हॉल में से उतर कर भी ठूंस ठूंस कर दिखाई जाती है।

पूरी दुनिया में एक ही चित्रकार की पेंटिंग इतनी मेहेंगी बिकती है हुसैन की अब पता नहीं एअसा क्या बनता है।दूसरी और यह है जो कश्मीर को भारत का अंग नहीं कहेती, सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानती उसी अरुन्धिती राय को इंटरनेशनल पुरुस्कार।

यह हबीब तनवीर के चेले ही बता दें की पोंगा पंडित (सभी के द्वारा सराहा गया हबीब तनवीर का नाटक)। यह पंडित ही पोंगा क्यों। यह मौलाना और पादरी क्यों नहीं? क्या हैं इसका जवाब।

  • और येही साजिश है हिन्दुओ के खिलाफ और मैं इसी का विरोध करता हूँ और करता रहूँगा। मीडिया हमे टुकडो में तो सत्कार करती हैं परन्तु सामूहिकता का अपमान। यदि हिंदू इसे समझ जाए तो इन सफेदपोशों के चहेरो पर से ढोंग का नकाब उतर जाए.
अब मुझे कोई बताए की यह कोन सी चीज़ हैं जो इन सब को कंट्रोल कर रही है।

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