Tuesday, November 17, 2009

भारत नाम का मनोभाव

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    • तमिलनाडु, असम, तिरुअनंतपुरम, चेन्नई, बेंगलूर, मुंबई, कोलकाता.. और अब ओडिसा। विदेशी शासकों द्वारा दिए गए नामों को त्याग अपने सही नाम अपनाने की यह प्रक्रिया स्वागत योग्य है। इसके पीछे कहीं न कहीं अपनी सच्ची पहचान के महत्व को समझने और उसमें गौरव महसूस करने की भावना है। सौभाग्यवश, जब भी औपनिवेशिक नामों को बदल स्वदेशी नाम अपनाए गए तब हमारे देश के अंग्रेजी-प्रेमी और पश्चिमोन्मुखी वर्ग ने कोई विरोध नहीं किया। वैसे यह बात नहींकि उन्हें यह सब रास आया हो। इस बात की पूरी संभावना है कि जिस दिन देश के नाम को पुनस्र्थापित करने की बात उठेगी वे अपनी पूरी क्षमता से विरोध करेंगे। 'इंडिया' को बदलकर भारतवर्ष करने में किसी भाषा, क्षेत्र, जाति या संप्रदाय को आपत्ति हो, इसका कोई आधार नहीं है, बल्कि जिस कारण मद्रास, बांबे, कैलकटा, त्रिवेंद्रम आदि को बदला गया वह कारण देश के नाम के लिए और भी समीचीन है। इंडिया शब्द भारत पर ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन का सीधा स्मरण दिलाता है। नहीं भूलना चाहिए कि किसी आधिकारिक नाम में 'इंडिया' शब्द का पहला प्रयोग 'ईस्ट इंडिया कंपनी' के नाम में किया गया था।
    • [एस. शंकर : लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]