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पेशावर के एक भीड़ भरे इलाके में गुरुद्वारे के बाहर टूटी कुर्सी पर बैठे अमनदीप सिंह (बदला हुआ नाम) भविष्य की चिंता में डूबे है। वे उत्तार-पश्चिम पाकिस्तान के कबीलाई जिले खैबर की तिरा घाटी में बसे अपने पैतृक गांव और व्यवसाय को छोड़ कर आए हैं। उन्हें धमकी मिली थी कि गांव छोड़ दो या जान और माल की हिफाजत के लिए 'जजिया' टैक्स दो।
इस त्रासदी से दो-चार होने वाले अमनदीप अकेले नहीं है। शाम ढलते ही पेशावर के दबगरी बाजार की एक संकरी गली में स्थित जोगा सिंह गुरुद्वारे में उनके जैसे कई सिख और हिंदू एकत्रित होने लगते है। अमनदीप बताते है, ''मेरी जानकारी में 400 सिख और 57 हिंदू परिवारों ने खैबर के कस्बों और गांवों से भाग कर पाकिस्तान के मुख्य शहरों में पनाह ली है।''
- दरअसल तालिबान लड़ाकों को प्रशिक्षण और हथियारों के लिए धन की जरूरत होती है, जिसके लिए वे डराने-धमकाने, अपहरण और मादक पदार्र्थो की तस्करी का काम करते रहे हैं। अब जजिया के नाम पर सिख और हिंदू उनके शिकार बन रहे हैं। इसकी शुरुआत ओरकजई से हुई थी, जहाँ तालिबानों ने सिखों से बलपूर्वक जजिया वसूलना शुरु किया। इसके बाद जजिया का भूत खैबर में भी फैल गया।
- [सैय्यद अबू साद]
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Sunday, November 1, 2009
Jagran - Yahoo! India - जजिया दो या जान
Jagran - Yahoo! India - जजिया दो या जान
2009-11-01T22:32:00+05:30
Common Hindu