Wednesday, December 9, 2009

चूंकि हिन्दू बर्बर और असभ्य होते हैं… इसलिये उनके खिलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिये…?

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    • नेपाल के बरियापुर में प्रत्येक पाँच वर्ष में एक त्योहार पर हजारों हिन्दू एकत्रित होते हैं, जहाँ एक पूजा के दौरान अनुमानतः लगभग 2 लाख पशु-पक्षियों की बलि दी जाती है।
    • इस अवसर पर गत 24 नवम्बर को हजारों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, “एनीमल राईट्स” और पशुप्रेमियों के संगठनों ने विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। कई संगठनों ने इस परम्परा का कड़ा विरोध किया और इसके खिलाफ़ कई लेख आदि छापे गये।
    • … यदि किसी को पता हो कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने कभी टर्कियों के इस बड़े पैमाने पर संहार के खिलाफ़ कुछ छापा हो तो अवश्य बताएं या लिंक दें। (चित्र -- जॉर्ज बुश टर्की की गरदन दबोचने की फ़िराक में…)
    • अब सवाल उठता है कि यदि 2 लाख प्राणियों को मारना “बर्बरता” और असभ्यता है तो 5 करोड़ टर्की और 10 करोड़ बकरों को मारना क्या है? सिर्फ़ “परम्परा” और “कुर्बानी” की पवित्रता??? इससे ऐसा लगता है, कि परम्पराएं सिर्फ़ मुसलमानों और ईसाईयों के लिये ही होती हैं, हिन्दुओं के लिये नहीं।
    • मैं व्यक्तिगत रूप से इस पशु बलि वाली बकवास धार्मिक परम्परा के खिलाफ़ हूं, लेकिन इस प्रकार का दोगलापन बर्दाश्त नहीं होता कि सिर्फ़ हिन्दुओं की परम्पराओं के खिलाफ़ माहौल बनाकर उन्हें असभ्य और बर्बर बताया जाये। सारे विरोध प्रदर्शन हिन्दुओं की परम्पराओं के खिलाफ़ ही क्यों भाई, क्या इसलिये कि हिन्दू हमेशा से एक "आसान टारगेट" रहे हैं?
    • जरा एक बार बकरीद के दिन मीडिया, मानवाधिकारवादी और एनिमल राईट्स के कार्यकर्ता कमेलों और कत्लगाहों में जाकर विरोध प्रदर्शन करके तो देखें… ऐसे जूते पड़ेंगे कि निकलते नहीं बनेगा उधर से… या फ़िर पश्चिम में "थैंक्स गिविंग डे" के दिन टर्कियों को मारने के खिलाफ़ कोई मुकदमा दायर करके देखें… खुद अमेरिका का राष्ट्रपति इनके पीछे हाथ-पाँव धोकर पड़ जायेगा… जबकि हिन्दुओं के साथ ऐसा कोई खतरा नहीं होता…

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