Saturday, January 23, 2010

संयम से सफलता सिखाती है भीष्म अष्टमी

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    • सुनील चौबे
    • जीवन में सफलता के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है मानसिक और शारीरिक शक्ति। शक्ति का संचय बहुत आवश्यक है और ब्रह्मचर्य शक्ति संचय का ही एक जरिया है।
    • उज्जैन(माघ शुक्ल अष्टमी-23 जनवरी)
    • हिन्दू धर्मग्रंथों में भी ब्रम्हचर्य का अर्थ स्पष्ट किया गया है। महाभारत के रचयिता महर्षि वेद व्यास ने कहा - इन्द्रियों द्वारा प्राप्त होने वाला सुख का त्याग करना ब्रम्हचर्य है। इसी प्रकार याज्ञवल्क्स संहिता में लिखा गया है - जिस अवस्था में मन, वचन और कर्म तीनों के द्वारा सदा मैथुन का त्याग हो, उसे ब्रम्हचर्य कहते हैं।



      इसी ब्रम्हचर्य व्रत का आजीवन पालन करने वाले हिन्दू धर्म के महाग्रंथ महाभारत के महानायक भीष्म पितामह ने युद्ध में अजरुन के तीरों से घायल होने के बाद माघ शुक्ल अष्टमी को अपनी इच्छा से सूर्य के उत्तरायण में आने पर प्राण त्याग दिए थे। इस दिन को भीष्म अष्टमी के रूप में बनाया जाता है, जो सद्चरित्र और संयम का संदेश देती है। भीष्म दृढ़, गंभीर, शांत, वीर, परमज्ञानी, चरित्रवान, कर्तव्य परायण, दूरदर्शी, नीति-दर्शन के ज्ञाता, राजधर्म के ज्ञाता थे। इस वर्ष यह अष्टमी तारीख 23 जनवरी को मनाई जाएगी।


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