Wednesday, March 24, 2010

visfot.com । विस्फोट.कॉम - संघ की मजबूरी है, भाजपा बहुत जरूरी है

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    • आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि भारतीय जनता पार्टी के िलए संघ सबसे बड़ी मजबूरी है. अगर संघ का साथ छूट जाए तो भाजपा मटियामेट हो जाएगी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब संघ भाजपा की मजबूरी नहीं है बल्कि भाजपा संघ की मजबूरी बन चुका है. संघ नेतृत्व भाजपा के जनाधार को संघ कार्य के लिए इस्तेमाल करना चाहता है इसलिए भारतीय जनता पार्टी पर अपनी पूरी पकड़ चाहता है. समीर चौंगावकर का विश्लेषण-
    • संघ से युवाओं की बढती दूरी का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि संघ के स्वयंसेवको एवं प्रचारको के परिवारो के सदस्य भी शाखाओं मे नही आ रहे है। जब देश स्वतंत्र हुआ था उस समय संघ को पाच हजार शाखाएं थी और लगभग 6 लाख के करीब स्वंयसेवक थे। सन 2000 में संघ की पचास हजार शाखाएं थी और लगभग पचास लाख के करीब स्वंयसेवक। लेकिन 2000 के बाद से संघ की शाखाओं में कमी के साथ साथ उसमें उपस्थित रहनेवाले स्वयंसेवको में भयानक गिरावट आई है। जिन शाखाओं में 12 से 15 स्वयंसेवक उपस्थित रहा करते थे वहा अब सिर्फ 4 से 5 स्वयं सेवक ही नजर आते है।
imageवृहद राजनैतिक समाज में अपनी छबि कि चिंता के बजाय भाजपा का दस प्रतिशत वोट बैंक बढाने की कोशीश यही बताती है कि संघ अब भाजपा को सिध्दांतो और मूल्यों के बजाय व्यवहारिक राजनीति करने को कह रहा है और संघ को अब देश के वृहद राजनैतिक समाज के बजाय अपने राजनैतिक आधार यानी भाजपा के वोट बैंक की ज्यादा चिंता है। संघ के हिसाब से भारत की इस पुनर्रचना के लिए राजनैतिक सत्ता का होना जरूरी है।
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