- ऋषि पाराशर ने लिखा है कि सतयुग, त्रेता और द्वापर की विधियां भिन्न-भिन्न थीं और कलियुग में भी ये भिन्न होंगी। युग और काल के अनुरूप ही नियमों का पालन करना चाहिए। गोत्र के संबंध में अपनी बात सही साबित करने के लिए जो प्राचीन धर्म ग्रंथों का उदाहरण देते हैं, उन्हें पाराशर स्मृति का यह श्लोक पढ़ना चाहिए और अपने विवेक से इसका अर्थ करना चाहिए: अन्ये कृतयुगे र्धम्मास्त्रेतायां द्वापर परे। अन्ये कलियुगे नृणां युगरूपानुसारत:।।
- एक गोत्र, अलग जातियां हिंदू धर्मशास्त्र का इतिहास लिखने वाले डॉ. पी. वी. काणे और पुस्तक- गोत्र ऐंड प्रवर के लेखक, इतिहासकार डॉ. ए. एस. अल्तेकर का मानना है कि गोत्र परंपरा की उत्पत्ति और विकास पर कोई स्पष्ट राय देना संभव नहीं है। लेकिन इतना निश्चित है कि गोत्र का आधार सिर्फ रक्त संबंध नहीं है। एक ही गोत्र में अलग-अलग जातियों के भी लोग मिलते हैं। इसका मतलब है कि गोत्र के आधार पर कुल तय नहीं होता।
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Tuesday, June 8, 2010
कुल-पिता न बनें खाप पंचायतें-नज़रिया-विचार मंच-Navbharat Times
कुल-पिता न बनें खाप पंचायतें-नज़रिया-विचार मंच-Navbharat Times
2010-06-08T21:55:00+05:30
Common Hindu