Tuesday, March 29, 2011

महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar): कुत्ते की टेढ़ी पूँछ पाकिस्तान तथा विदेश मंत्रालय और मीडिया से बेहतर आवारा कुत्ते…… Pakistan’s Anti-India Policy and Stray Dogs in Kashmir

महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar): कुत्ते की टेढ़ी पूँछ पाकिस्तान तथा विदेश मंत्रालय और मीडिया से बेहतर आवारा कुत्ते…… Pakistan’s Anti-India Policy and Stray Dogs in Kashmir

हाल ही में भारतीय सेना की इंटेलिजेंस कोर ने सीमापार से जो रेडियो संदेश पकड़े हैं उनके मुताबिक पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसी ISI ने कश्मीर में आतंकवादियों को रास्ता दिखाने वाले और सीमा पार करवाने वाले “भाड़े के टट्टुओं” यानी गाइडों का भत्ता चार गुना बढ़ा दिया है। पहले एक बार आतंकवादियों के गुट को सीमा पार करवाने पर गाइड को 25,000 रुपये मिलते थे, लेकिन अब ISI (ISI Pakistan) ने इसे बढ़ाकर सीधे एक लाख रुपये कर दिया है।

विगत कुछ माह से भारतीय सेना ने जिस प्रकार आतंकवादियों पर अपना शिकंजा कसा है और आतंकवादियों के घुसने के रास्तों पर पहरा और चौकसी बढ़ाई है, उसे देखते हुए घुसपैठ में काफ़ी कमी आई है। इसीलिये ISI को अपने कश्मीरी गाइडों का भत्ता बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ा है। अमूमन गर्मियों में जब बर्फ़ पिघलती है तब भारी संख्या में आतंकवादी भारत में घुसने में कामयाब हो जाते हैं, जबकि ठण्ड में बर्फ़बारी की वजह से कई पहाड़ी रास्ते बन्द हो जाते हैं। परन्तु इन गर्मियों में पाकिस्तान को आतंकवादी इधर ठेलने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि भारतीय सुरक्षा बलों (Indian Army in Kashmir) ने छोटे-छोटे रास्तों पर जमकर पहरेदारी की है, और जंगल में चरवाहों के भेष में भटकने वाले “गाइडों” को खदेड़ दिया है। मजबूरी में ISI ने एक फ़ेरे की फ़ीस बढ़ाकर एक लाख कर दी है, फ़िर भी उन्हें गाइड आसानी से नहीं मिल रहे हैं…


अब बात कुत्तों की चली है, तो एक और खबर…

भारतीय सेना ने कश्मीर घाटी में आवारा कुत्तों (Stray Dogs in Kashmir) की हत्या और उनके गायब होने के सम्बन्ध में जाँच शुरु कर दी है। श्रीनगर में पिछले एक वर्ष में ऐसा देखने में आया है कि आवारा कुत्तों के समूह के समूह अचानक मृत पाये जाते हैं या गायब हो जाते हैं। सीमारेखा पर स्थित गाँवों में यह स्थिति बार-बार देखने में आई है। सेना की दसवीं डिवीजन के प्रवक्ता लेफ़्टिनेंट कर्नल एनके आयरी ने कहा है कि यह आवारा कुत्ते (जिन्हें आवारा कहना भी एक तरह की क्रूरता है) सेना के जवानों के लिये काफ़ी मददगार सिद्ध हो रहे हैं, रात के समय किसी भी संदिग्ध गतिविधि को देखकर ये कुत्ते भौंककर जवानों को आगाह कर देते हैं। सेना के कई अफ़सरों को ये कुत्ते बेहद प्रिय हैं।


हबीब रहमान नामक सेना से रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट बताते हैं कि यह आवारा कुत्ते आसानी से सीख जाते हैं, इन्हें खाने-खिलाने का खर्च भी कम है तथा रात को इन्हें बिना किसी खतरे के इधर-उधर घूमने के लिये खुला भी छोड़ा जा सकता है। सबसे बड़ी बात यह कि इन्हें सेना के विशालकाय कुत्तों की तरह आसानी से पहचाना भी नहीं जा सकता कि ये जवानों के मददगार हैं। परन्तु सेना की मदद करने की वजह से पिछले कुछ समय से इन कुत्तों की सामूहिक हत्या शुरु हो गई है। मेजर जनरल अशोक मेहता (रिटायर्ड) ने काफ़ी पहले अपने एक लेख में कृपा नामक एक कुत्ते का जिक्र किया है जिसे पहाड़ों मे घूमते समय वे पकड़ लाये थे। नियंत्रण रेखा पर गोरखा राइफ़ल्स का वह प्रिय कुत्ता था और उसने कई आतंकवादियों और घुसपैठियों को ढेर करने में मदद की थी।

आंध्रप्रदेश के DGP स्वर्णजीत सेन ने भी नक्सलवादियों के इलाकों में स्थित पुलिस थानों को ऐसे ही आवारा कुत्तों को पालने और उन्हें अपना “मित्र” बनाने की सलाह दी थी और उसके नतीजे भी काफ़ी अच्छे मिले हैं। माओवादियों (Maoists in India)और नक्सलवादियों ने कुत्तों की इस “जागते रहो” मुहिम से चिढ़कर अन्दरूनी गाँवों में कुत्तों का सफ़ाया करना शुरु कर दिया, और गाँववालों को भी धमकियाँ दी हैं कि वे गाँव में एक भी कुत्ता न रखें।