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- पिछले सौ वर्षों में नेहरू-गाँधी परिवार के लगभग सभी सदस्यों ने विदेश में उच्च शिक्षा(?) हासिल की है, या फ़िर इंग्लैंड-अमेरिका में काफ़ी समय बिताया है। पश्चिमी मीडिया और नेहरु-गाँधी पीढ़ी और उनके विरासतियों के बीच प्रगाढ़ सम्बन्ध बहुत पहले से ही रहे हैं।
- पश्चिमी सत्ता संस्थान और वहाँ के मीडिया को गाँधी परिवार से खास लगाव है, और यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि ये लोग पश्चिमी शिक्षा-दीक्षा के कारण वहाँ के रंग-ढंग, आचार-विचार में पूरी तरह से ढल चुके होते हैं और फ़िर इनसे कोई काम निकलवाना (यानी कोई विशेष नीतिगत मामला, अंतर्राष्ट्रीय मंचों और समझौतों, UNO आदि में पश्चिम के पक्ष में वोटिंग या “हाँ/ना” में मुंडी हिलाना, तथा अपना माल बेचने के लिये परमाणु करार, हथियार सौदे या क्रूड तेल बेचना आदि करना) आसान हो जाता है।
- राहुल गाँधी भारत को खोज कैसे रहे हैं, कलावती के झोपड़े में, उत्तरप्रदेश में एक दलित के यहाँ रात गुज़ारकर, और सड़क किनारे खाना खाकर। यदि इसी पैमाने को “भारत खोजना” या “क्रान्तिकारी कदम” कहते हैं तो इससे सौ गुना अधिक तो भाजपा-बसपा-वामपंथी सभी पार्टियों के कई नेता अपनी जवानी में कर चुके हैं, गाँव-गाँव सम्पर्क बनाकर, पदयात्रा करके, धूल-मिट्टी फ़ाँककर… उन्हें तो कभी क्रान्तिकारी नहीं कहा गया। जबकि राहुल गाँधी की शिक्षा-दीक्षा के बारे में संदेह अभी भी बना हुआ है, कि आखिर उन्होंने कौन सी डिग्री ली है? (यहाँ देखें http://baltimore.indymedia.org/newswire/display/14469/index.php)
- अनौपचारिक बातचीत में कई बड़े-बड़े राजनेता इस बात को दबे-छिपे स्वर में मानते हैं कि बगैर अमेरिका और ब्रिटेन की सहमति के भारत का प्रधानमंत्री बनना बहुत मुश्किल है, यदि कोई बन भी जाये तो टिकना मुश्किल है। अमेरिका को धता बताकर पोखरण परमाणु विस्फ़ोट करने के बाद से ही भाजपा उनकी आँख की किरकिरी बनी, जबकि विश्व बैंक पेंशन होल्डर मनमोहन सिंह उनके सबसे पसन्दीदा उम्मीदवार हैं। कई वरिष्ठ पत्रकार भी मानते हैं कि हमेशा आम चुनावों के दौरान अमेरिका और ब्रिटेन के दिल्ली स्थित दूतावासों में अनपेक्षित और संदेहास्पद गतिविधियाँ अचानक बढ़ जाती हैं।
- अब ये मत पूछियेगा कि अब तक राहुल गांधी का भारत के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक उन्नयन में कितना योगदान है (हिन्दी भाषा में इसे “कौन सा तीर मार लिया”, कहते हैं)? ये भी न पूछियेगा कि यदि राहुल बाबा इतने ही ज्ञानवान और ऊर्जा से भरपूर हैं तो युवाओं से सम्बन्धित मामलों जैसे धारा 377 (समलैंगिकता), हरियाणा की पंचायत द्वारा हत्या किये जाने जैसे मामलों पर बहस करने या बयान देने कभी आगे क्यों नहीं आते? अक्सर उन्हें टीवी पर हाथ हिलाते और कॉलेज के युवकों-युवतियों के साथ मुस्कराते हुए ही क्यों देखा जाता है, बजाय इसके कि वे देश में फ़ैले भ्रष्टाचार के बारे में कुछ करने की बातें करें (आखिर यह रायता भी तो उन्हीं के परिवार ने फ़ैलाया है, इसे समेटने की बड़ी जिम्मेदारी भी उन्हीं की है)? अमरनाथ-कश्मीर-शोपियाँ, धर्मनिरपेक्षता-साम्प्रदायिकता-आरक्षण-युवाओं में फ़ैलती निराशा, देश की जर्जर प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था जैसे ज्वलंत मुद्दों पर कभी आपने उन्हें कभी टीवी पर किसी बहस में हिस्सा लेते देखा है? नहीं देखा होगा, क्योंकि खुद उनकी “मम्मी” ने आज तक मुश्किल से दो-चार इंटरव्यू दिये होंगे (वो भी उस पत्रकार पर बड़ा अहसान जताकर)।
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Tuesday, July 28, 2009
महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar): भारत पर शासन करने के लिये विदेशी पढ़ाई और “गोरी प्रेस” को मैनेज करना ज़रूरी है… Rahul Gandhi, Western Education, Western Media
महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar): भारत पर शासन करने के लिये विदेशी पढ़ाई और “गोरी प्रेस” को मैनेज करना ज़रूरी है… Rahul Gandhi, Western Education, Western Media
2009-07-28T23:00:00+05:30
Common Hindu