Friday, November 6, 2009

इंच दर इंच घुसपैठ की नीति | भारतीय पक्ष

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    • -जगन्नाथ शाही
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    • आज चीन क्षेत्रफल में भारत से तीन गुणा बड़ा है। आबादी भी अधिक है। लेकिन इतना बड़ा होकर भी कृषियोग्य भूमि उसके पास कम है। हथियारों के जखीरे और परमाणु आयुधों के भण्डार से चीन अहिंसक पड़ोसियों के मन में भय और शरीर में सिहरन तो पैदा कर सकता है किन्तु अपने निवासियों को दो जून की रोटी नहीं दे सकता है। भारत के पास 19 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि है जबकि अपनी विशालता के बावजूद भी चीन के पास मात्र 12.4 करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है। इसलिए उसकी नजर सुजला सुफला भारत भूमि पर है। अपनी विशाल सेना और भारत के हर कोने में उपस्थित अपने मुखर एवं हिंसक समर्थकों के बल पर वह एक बार फिर से भारत को रौंदना चाहता है।
    • क्या हमारी सरकार इस हद तक दहशत में है कि पीड़ित होकर भी पीड़क के स्वर में स्वर मिला रही है? लगता है कि बीजिंग के प्रति उसकी भयजनित प्रीति ने उसे अरिपूजक बनने के लिए मजबूर कर दिया है। निष्कर्ष यह है कि चीन और भारत पुन: 1962 की भूमिका में हैं। क्या इतिहास पुन: स्वयं को दुहराना चाहता है? उत्तर-पूर्व से लेकर उत्तर-पश्चिम तक की सीमा का शत्रु अभ्यारण्य में बदल जाना इसी दिशा की ओर अमंगल संदेश दे रहा है।