Thursday, December 31, 2009

हमारा खत्री समाज: 'फूल' या 'सखा' बनाया जाना समाज के विभिन्‍न वर्गो के मध्‍य परस्‍पर सौहार्द लाने वाली पद्धति थी ??

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    • प्राचीन भारत में भले ही आनेवाली पीढी को अपने पेशे में अधिक पारंगत बनाए जाने के ख्‍याल से अपनी बिरादरी में ही शादी विवाह किए जाने की प्रथा थी , पर सभी बिरादरी के लोगों का आपस में बहुत ही स्‍नेहिल संबंध रहा करता था। इस संबंध को और मजबूत बनाए जाने के लिए हर आयु वर्ग के लोग या दो परिवार के लोग आपस में एक विशेष रिश्‍ते से जुडते थे। पूरे भारत वर्ष की बात तो मैं नहीं कह सकती , पर झारखंड और बिहार में एक दूसरे बिरादरी के अपने दोस्‍तो और सहेलियों को पूरे नियम के साथ 'सखा' और 'फूल' बनाए जाने की प्रथा थी।
    • 'सखा' और 'फूल' अपनी बिरादरी के बच्‍चों को नहीं बनाया जाता था। दूसरी बिरादरी के जिन दो किशोर या युवा बच्‍चों या बच्चियों के विचार मिलते थे , जिनमें प्रगाढ दोस्‍ती होती थी , उनके मध्‍य ये संबंध बनाया जाता था। एक आयोजन कर इस संबंध को सामाजिक मान्‍यता दी जाती थी और दोनो परिवारों के मध्‍य पारस्‍परिक संबंध वैसा ही होता था , जैसा अपने समधियाने में होता था।आजीवन मौसम के सभी त्‍यौहारों में  उनके मध्‍य अनाज , फल फूल और पकवानों का लेनदेन हुआ करता था।
    • इस संबंध को बनाते समय उसके स्‍तर को भी नहीं देखा जाता था। इसके अलावे लोग ऐसी व्‍यवस्‍था करते थे कि अधिक से अधिक बिरादरी और धर्म के परिवारों से अपने संबंध मजबूत बनाया जा सके। पारस्‍परिक सौहार्द बढाने में इस व्‍यवस्‍था के महत्‍व को आज भी समझा जा सकता है।

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