हाल ही में इम्पीरियल कॉलेज लन्दन के प्रोफ़ेसर माजिद एज़्ज़ाती ने विज्ञान पत्रिका “लेन्सेट” में एक शोधपत्र प्रकाशित किया है। जिसमें उन्होंने सन 1980 से 2008 तक के समय में विश्व के सभी देशों के व्यक्तियों के वज़न और ऊँचाई के अनुपात को मिलाकर उन देशों के BMI इंडेक्स निकाले हैं। शोध के परिणामों के अनुसार 1980 में जो देश गरीब देशों की श्रेणी में आते थे उनमें से सिर्फ़ ब्राजील और दक्षिण अफ़्रीका ही ऐसे देश रहे जिनकी जनसंख्या के BMI इंडेक्स में उल्लेखनीय वृद्धि हुई (अर्थात जहाँ के निवासी दुबले से मोटे की ओर अग्रसर हुए)… जबकि 1980 से 2008 के दौरान 28 साल में भी भारत के लोगों का BMI नहीं बढ़ा (सुन रहे हैं प्रधानमंत्री जी…)। 1991 से देश में आर्थिक सुधार लागू हुए, ढोल पीटा गया कि गरीबी कम हो रही है… लेकिन कोई सा भी आँकड़ा उठाकर देख लीजिये महंगाई की वजह से खाना-पीना करके मोटा होना तो दूर, गरीबों की संख्या में बढ़ोतरी ही हुई है (ये और बात है कि विश्व बैंक की चर्बी आँखों पर होने की वजह से आपको वह दिखाई नहीं दे रही)। BMI में सर्वाधिक बढ़ोतरी अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया एवं चीन में हुई (ज़ाहिर है कि यह देश और वहाँ के निवासी अधिक सम्पन्न हुए हैं…)। शोध के अनुसार सबसे दुबला और कमजोर देश है कांगो, जबकि सबसे मोटा देश है नौरू। इसी से मिलता-जुलता शोध अमेरिका में भी 1994 में हुआ था जिसका निष्कर्ष यह है कि 59% अमेरिकी पुरुष एवं 49% अमेरिकी महिलाएं “मोटापे” की शिकार हैं। (BMI Index Survey The Economist)
(“खाने” और “भकोसने” के बीच का अन्तर तो आपको पता ही होगा या वह भी मुझे ही बताना पड़ेगा? चलिये बता ही देता हूं… येद्दियुरप्पा ने अपने बेटों को 10-12 एकड़ जमीन बाँटी उसे कहते हैं "खाना", तथा देवेगौड़ा और एसएम कृष्णा ने अपने बेटों को 470 एकड़ जमीन बाँटी, इसे कहते हैं "भकोसना"…। बंगारू लक्ष्मण ने कैमरे पर जो रुपया लिया उसे कहते हैं "खाना", और हरियाणा में जो "सत्कर्म" भजनलाल-हुड्डा करते हैं, उसे कहते हैं "भकोसना")…