Monday, April 25, 2011

संघ ! स्वयंसेवक ! हिन्दू ! क्रांति ! विश्व और रोड मेप !!!!!!!!!!!

संघ ! स्वयंसेवक ! हिन्दू ! क्रांति ! विश्व और रोड मेप !!!!!!!!!!!: "
त्यागी

some caste specific references deleted here


"भारत राष्ट्र" एक बहुत ही पुरातन सोच है. पश्चिमी देशो की खींची लकीरों से बढ़ कर
है यह जिसको हम 'भारत राष्ट्र" कहेते है. परन्तु यह समझना उतना ही मुश्किल है जितना "हिन्दू धर्म" को समझना और जैसे की नासमझ, बेवकूफ और तथाकथित बुद्धिजीवी "हिन्दू धर्म" को अन्य धर्मो के समकक्ष मानकर उसी चश्मे से "हिन्दुओ" को परिभाषित करते आ रहे है. जो की निश्चित रूप से गलत है. असल में विश्व भर में हिन्दू जितना प्रीताडित है उतना कोई और या कोई कौम नहीं है. आज बड़े ही शुभ अवसर पर इसको विस्तार से समझते है की हिन्दू गुलाम क्यूँ है, क्यूँ बना और कैसे छुटकारा मिले. अभी गुलाम बोला तो कई आदमी इसी पर प्रशन चिन्ह लगा देंगे. मतलब आप आज भी क्यूँ गुलाम बोल रहे हो. मेरा मानना यह है की चाहे भारतवर्ष में कोई कितना भी धनाड्य हो वो भी असल में गुलाम ही है. अब वो कोई औद्योगिक घराना ही क्यूँ न हो जो हिंदुस्तान की जनता के "पैसे" को हमारे धुर विरोधी हॉवर्ड स्कूल को देता हो जो की भारत विरोधी अभियान चलाते है. यह हिंदुस्तान के गुलाम मानसिकता का ही परिचायक है.

परन्तु हर चीज की एक सीमा होती है उसी प्रकार संघ भी इस से अछुता नहीं है उसकी भी एक सीमा है. कुछ गंभीर प्रशन है जिन पर संघ को विचार करना होगा.

वैसे एक बात कहूँ की परम आदरनिये श्री मोहन भगवत जी ने इन प्रश्नों का उत्तर खोजने की शुरुवात कर भी दी है मुझे ऐसा प्रतीत होता है. परन्तु यह शुरुवात इन प्रश्नो के परिपेक्ष में हो तो 'परम वैभव' को पाया जा सकता है.

आज
संघ को स्थापित हुए ८५ वर्ष हो गए है परन्तु ऐसी क्या बात है की ८५ वर्षो में हमने वो नहीं पाया जिसको की हमे पा लेना चाहिए था. ऐसे कितने ही काल खंड आए जब संघ ने इन प्रश्नो को अनुतरित छोड़ दिया जबकि हम इतिहास बनाने के मुहाने पर थे. हम विगत के कुछ हिन्दू वीरो का जिक्र करते है जिन्होंने अपने जीवन काल में ही हिन्दुओ को "परम वैभव" का लक्ष्य दिलवा दिया था और वो लोग आधुनिक युग के ही है जैसे चाणक्य जी
, छत्रपति शिवाजी महाराज और उनका जीवन ८५ वर्ष का तो था ही नहीं जैसे की संघ का होगया और उनको भी हिन्दू को संघठित करने में दिक्कत आज से कुछ ज्यादा ही आई थी अब तो फिर भी संसाधन ज्यादा ही है, जब हिन्दुओ को इन महापुरुष अपने जीवनकाल में वहा पंहुचा दिया था तो संघ अब तक क्यूँ नहीं पंहुचा पाया. आज एक गाँधी (महात्मा गाँधी मात्र एक व्यक्ति) ने अपने जीवन काल में ही कोंग्रेस को ६० साल तक भारत जैसे देश की सत्ता का वारिस बनवा दिया तो संघ तो उस से बहुत बड़ी चीज है. तो फिर क्यूँ संघ ही कुछ नहीं बन पाया और न ही कोई वारिस पैदा कर पाया?
  • एक जयप्रकाश नारायण देश में क्रांति कर सकता है और संघ को उनका समर्थन करना पड़ता है और आज संघ से प्रेरित उसकी राजनेतिक शाखा (बीजेपी - संघ से प्रभावित अलग संघठन) को उनका और उनके अनुयाइयो (नितीश कुमार) का साथ देना पड़ रहा है. इसका अर्थ या तो यह है की व्यक्ति के आगे संघठन छोटा होता है या फिर डॉ. हेडगेवार जी का सिधान्त ही गलत था की उन्होंने भगवा ध्वज को गुरु बनाया ना की स्वयं अपने को और थोप देते हिन्दुओ और देश पर अपने ही परिवार का कोई वारिस या फिर हेडगेवार जी के बाद के संघचालक ही उनके लक्ष्य को समझने में और पूरा करने में असमर्थ रहे. मुद्दा यह है की देश में एक गाँधी क्रांति कर सकता है, एक जयप्रकाश क्रांति कर सकता है तो ८५ साल का संघ क्यूँ नहीं अब ८५ साल का कालखंड कोई छोटा कालखंड तो है नहीं, मैं अपनी छोटी से समझ से यह मानता हूँ की कहीं ना कहीं रणनीति में कोई त्रुटी है. और मेरे अनुसार त्रुटी यह है की "समाज सत्ता से बन रहा है ना की समाज से सत्ता" इस सिदान्त का ना मानना है ही संघ की सबसे बड़ी भूल है. क्योंकि हिन्दुओ को आज के समय संघटित करना 'मेंडेको को तोलने" के समान है (क्षमा करे इस तुलना के लिए) इसका कारण है १२०० साल से हिन्दू ऑक्सीजन पर जी रहा है. उसको विश्वाश ही नहीं होता की उसकी विरासत सतयुग, त्रेता और द्वापर में स्वर्णिम थी. उसने तो कुत्ते और बिल्ली से जीवन को ही अंगीकार कर लिया. कुछ भी कर लो इन को सत्ता ही की भाषा समझ में आती है फिर वो तुर्क हो, मुग़ल हो, अंग्रेज हो या फिर गाँधी की कोंग्रेस हो उन्ही की बात इनको समझ आती है. तो फिर संघ सत्ता पर क्यूँ दावा नहीं ठोकता और हिन्दू को सबल बनाने का बीड़ा उठता ? बहुत हो चूका समाज जोड़ने का प्रयास (क्यूंकि बहुत ही लम्बी प्रक्रिया है), इस प्रयास में ही खोट है (क्यूंकि ८५ साल में भी लक्ष्य नहीं पा पाए). ऐसा क्या है की एक मायावती जिस पर सभी दलित फ़िदा है, और क्यां हम नहीं जानते की संघ ने अपने सर्वोतम प्रयासों के बावजूद वो नहीं पाया जो लगाव दलितों का मायावती ने पाया. मैं तो समझता हूँ फिर दो चार मायावती ही संघ पैदा कर दे.


इस लिए मेरा मानना है की संघ सत्ता हांसिल करे (प्रथम) फिर उसे उसके ८५ साल के बनाये संघठन का भी लाभ मिलेगा. वो पुरषार्थ व्यर्थ नहीं है क्यूंकि संघ जितना करता नहीं उतना तो यहाँ बिगाड़ने वाले है और फिर वही के वही सिफ़र (शून्य) है. संघ इस बात को जितना शीघ्र समझ लेगा उतना ही जल्दी हिन्दुओ और देश का भला होगा. क्या हम नहीं जानते संघ के सामने ही सामने डॉ. आंबेडकर ने हिन्दू धर्म छोड़ दिया था. क्यूँ संघ ने प्रयास नहीं किया उनको हिन्दू धर्म में रखने का. ऐसे कई प्रशन के उत्तर संघ को ही देने होंगे. कोई भारत के राष्ट्रपति या कांग्रेस से नहीं पूछेगा. क्यूंकि अग्नि परीक्षा सीता ही देती है तुच्छ प्राणी तो उसकी सोच भी नहीं सकते.
  • दूसरा बड़ा ही आलोचनात्मक रुख लेकर मुझे कहेना होगा की जो टीवी पर अपने को संघ का स्वयम सेवक बताते फिरते है उनके बच्चे संघ से विमुख क्यूँ है? गंभीर प्रशन है मित्रो, एक स्वर्गीय सज्जन जो की बीजेपी के बड़े नेता भी रहे है. वो जब संघ में दीक्षित थे और उनके विचारो से लाखो प्रभावित भी होंगे तो उनके खुद का पुत्र क्यूँ नहीं. यह ढोंग नहीं तो क्या है की आप दुनिया भर में बात तो शुचिता और नैतिकता की करते हो परन्तु अपने स्वयं के पुत्र उसके ठीक विपरीत है.

  • अब आते है राजनेतिक पक्ष पर बिना किसी लाग लपेट के है की बीजेपी जब संघ को अपना सर्जनकर्ता मानती है तो बिहार में अपनी भद्द क्यूँ पीटवा रही है. नितीश के सामने सारी बीजेपी शीर्षासन क्यूँ कर रही है? और लालू को हटाना इतना ही बड़ा एजेंडा है तो पिछले पांच साल में बिहार में बीजेपी ने अपने कौन से एजेंडे सरकार से लागू करवा लिए है ? याद रखना बीजेपी को नितीश के रूप में एक बहुत ही बड़ा झटका लगेगा. अरे बीजेपी विपक्ष में होकर भी अपने मुद्दे नितीश से नहीं मनवा पाई (राष्टीय मुद्दे) तो सत्ता में आकार कैसे कर पायेगी अब (केंद्र में) तो खोने को भी कुछ नहीं है तो फिर अपने तपे तपाये स्वयंसेवको को बीजेपी में भेज कर क्या ले रहे हो ? जब स्वयम सेवक को बीजेपी में मंत्री बन कर कुर्सी ही गर्म करनी है तो संघ क्यूँ बदनाम हो इनके कर्मो और कुकर्मो से ? आज बीजेपी लोकसभा के दो लगातार चुनाव हारने के बाद भी अपने राजग के घटक दलों को अपने (हिंदुत्व और राष्ट्रवादी) मुद्दों के बारे में समझा नहीं पाई तो एक बार फिर सत्ता में आने के बाद क्या कर लेगी? अभी तो कुछ खोने को भी नहीं और समय भी बहुत है. या फिर से ममता, समता और जयललिता वाला खेल खेलना है ?

  • और यदि संघ भी यह सोचता है की सत्ता लेने के बाद भी अपने मुद्दों को बीजेपी से लागू नहीं करवाया जा सकता है तो फिर अभी इस पर विचार करना होगा. आजादी से पहेल गाँधी से भी लोगो को उम्मीद थी. जिस उम्मीद पर उसने आम हिन्दू को बरगला रखा था "राम राज्य" और फिर सत्ता का अंग्रेजो के हाथ से काले अंग्रेजो के हाथ में आकर उसका तकनिकी हस्तांतरण मात्र ही हो पाया वास्तविक नहीं. इसी प्रकार आज की बीजेपी भी वो ही कर रही है श्री राम मंदिर मुद्दा छोड़ दिया, धारा ३७० छोड़ डी (क्यूंकि केंद्र में बीजेपी ने कुछ नहीं किया अटल जी के समय में) और जो बीजेपी वाले संघ को कहेते है की सत्ता मिलने के बाद करेंगे वो भी संघ का प्रयोग मात्र कर रहे है. अरे आज क्यूँ नहीं अपने घटक दलों को संघ के वास्तविक मुद्दों पर मनाते, समझाते, केंद्र की सत्ता में थे तो यह चिंता थी की सत्ता ना चली जाये, अब अपनी छवि की चिंता क्यूँ करते फिर रहे हो? बिहार में तो संघ के स्वयमसेवक ( श्री नरेंद्र मोदी जी) और हिन्दू वीर वरुण जी का अपमान बल्कि घोर अपमान किया जा रहा है.
  • मेरी समझ में नहीं आता की संघ अपने दुश्मनों के सामने चरित्र (सात्विक) के मामले पर इतना रक्षात्मक रुख क्यूँ रखता है. यह मैं इसलिए कह रहा हूँ जब राहुल गाँधी जैसे दो पैसे की बुद्धि वाले भी संघ पर आरोप लगाने के कुव्वत रखते है. जिनका कोई ना ईमान है और ना ही कोई चरित्र. अरे जब "संघ के दुश्मनों" का चरित्र ही नहीं तो वो चरित्र की बात किस आधार पर करते है. व्यक्तिगत चरित्र एक अलग चीज है उस से राजनीती का कोई भी फायदा नहीं (यदि है तो बोनस है). अरे परम वीर हिन्दू ह्र्दय सम्राट आदरनिये श्री बाल ठाकरे जी से ही सीख लो जूते की नोक पर रखते है अपने विरोधियो को और संघ भी जान ले की यदि हमारा दुश्मन हमारी नेतिकता और इमानदारी को हमारे ही विरुद्ध हथियार बनाता है तो एक मिनट भी नहीं लगनी चाहिए उसको छोड़ने में. ऐसी नीति पर नहीं चलता तो बड़े लक्ष्य की राह में ऐसे ही रोड़े आते रहेंगे फिर ८५ साल नहीं १८५ साल में भी हम हिन्दू हितो की रक्षा नहीं कर पाएंगे जैसे की हम विगत में नहीं कर पाए. फालतू की झूटी शान और वीरता के ढोंग ने मुग़ल काल में हमारे पता नहीं कितने हिन्दू वीर "युद्ध में पीछे न हटने की" और "पीठ न दिखाने" की मुर्ख सोच से समूल हिन्दू जाति को गुलाम बना बैठे. एक शिवाजी ने इसकी तोड़ निकाली और मुगलों की ईट से ईंट बजा दी. हिन्दू राजाओ को मालूम ही नहीं था की समय की नजाकत देख कर पीछे लौटना भी "समझदारी" है. परन्तु हिन्दू न तो वर्तमान से सबक लेते और न ही भूतकाल से. और मुर्खता की परकाष्ठा यह है की पूर्व में भगवान् श्री कृष्ण के जीवन से भी सबक लेने को हिन्दू तैयार नहीं है. श्री कृष्ण को "रणछोड़" भी कहेते है. उन्होंने भी एक समय, वक्त की नजाकत देखते हुए रण छोड़ दिया था, क्यूंकि उनको भी मालूम था जिस कार्य के लिए उन्होंने अवतार लिया है "अधर्म से मुक्ति" वो उनका लक्ष्य है फ़ालतू के कार्य के लिए अपने प्राण गवाना नहीं.

  • आज संघ भी है और उसके प्रखर राष्ट्रावादी स्वयंसेवक भी तो क्या उन्होंने कश्मीरी पंडितो की रक्षा कर ली और यदि वो नहीं आज कर पा रहे है तो विश्व के इतने बड़े संघठन का क्या आचार डालेंगे ? (क्षमा करे आक्रोशित होने के लिए) या फिर भगवान् कल्कि का ही इन्तजार करना है तो फिर यह संघठन - संघठन क्यूँ खेला जा रहा है. बंद करो इसे और राम भजो. जब एक स्वयं सेवक श्री रवि शंकर प्रसाद (राम जन्मभूमि पक्ष के वकील) ही न्याय दिला सकते है तो फिर इतने बड़े अभियान का क्या ? सत्ता से सरकार है, सरकार से न्यायालय है और इन न्यायालयों से देश के नागरिको के घेरेलु मुद्दे सुलझाये जाते है देश (हिन्दू) की अस्मिता और संप्रभुता के नहीं. और जो ऐसा सोच रहे है वो गफलत में है विरोधी पक्ष इतना कमजोर नहीं जितना सोचा जा रहा है.

  • संघ को सबसे पहेले आपने मुख पत्र पर ध्यान देना होगा. पांचजन्य की सर्कुलेशन बहुत गिर चुकी है, दूसरा एक श्री राम स्वरूप जी, मुज़फ्फर हुसैन जी को छोड़ कर कोई खास विचारक लेख भी नहीं होता, खाली इधर उधर की खबरे ही होती है. दूसरा न तो इसको आप शिवसेना के "सामना" की तरह सन्देश वाहक और बाला साहेब के मुखपत्र की तरह इस्तेमाल करते और न ही किसी कोमेर्शिअल पेपर की तरह इसकी पाठक संख्या बढाने के उपाए करते. भाई मानना पड़ेगा तरुण विजय जी के जाने के बाद पांचजन्य की आक्रामकता तो बिलकुल ही ख़त्म होगई. एक अच्छा प्रयास है साधना टीवी के माध्यम से जनता तक अपना सन्देश पहुचाने का परन्तु आप शायद जानते नहीं कांग्रेसी राज में इस चैनल को महत्वपूर्ण समय पर ब्लाक कर दिया जाता है. दूसरा टीवी मीडिया में पूरा का पूरा एक कांग्रेसी-वामपंथी - इसाई गैंग है उसका मुकाबला संघ के लिए अभी संभव ही नहीं. सो प्रिंट मीडिया पर ध्यान दिया जाये. हाँ इन्टरनेट पर संघ के स्वयमसेवक बहुत मुखर है. यह एक संतुष्टि वाली बात है. पांचजन्य को दोबारा से खड़ा करना एक भागीरथी प्रयास होगा और हमे आशा है यह किया भी जायेगा.

  • संघ अब हिन्दू आतंकवाद जो की एक साजिश के तहत गढा गया शब्द है पर भी रक्षात्मक हो जाता है. मेरी समझ में नहीं आता की क्या कर्नल पुरोहित के सेना में बड़े पद पर काम करने से सेना आतंकवादी होगई ? क्या सेना कही पर भी सफाई देती फिरती है ? और कर्नल पुरोहित का तो संघ से सीधे कोई संबध भी नहीं था. तो मुझे समझ नहीं आता जब सेना कसूरवार नहीं जब की वह वहां एक अधिकारी थे. तो संघ कैसे जिम्मेदार होगया. यही साध्वी प्रज्ञा के बारे में है और अपने ऊपर आरोप लगते देख संघ ही इसमें रक्षात्मक होगया. संघ को साफ़ करना चाहिए कल ही कांग्रेस का एक विधायक आतंकवादी को शरण देने के लिए बंगाल पकड़ा गया है तो क्या सोनिया गाँधी ने कोई बयान जारी कर दिया? या कोई माफ़ी मांग ली ? क्यां दन्त दिखाऊ कांग्रेस नेता आतंकवादी हो गए? नहीं. अरे जो कानून को लगता है गलत है उसको फांसी चढाओ मेरा इसमें साफ़ मानना है. इनके इस देश के कानून से जो लोग खिलवाड़ कर रहे है वो ५-५ साल से फांसी की सजा पाए अफजल गुरु को तो फांसी पर लटका नहीं पाए. असम का कांग्रेस का एक सांसद कितना बड़ा देशद्रोही है सब जानते है परन्तु क्या कांग्रेस रक्षात्मक है ? नहीं है!

  • सारी बीजेपी नीतिश के साथ धर्मनिरपेक्षता का तमगा लेने के लिए खड़ी है और वो भीगो - भीगो कर जुते मार रहा है. और जूते खा कौन रहा है जो स्वयम "छदम धर्मनिरपेक्षता" शब्द के अविष्कारक है. अरे हमारा मौलिक विचार है की "हिन्दू धर्म खुद में एक धर्मनिरपेक्ष" है तो दिक्कत क्या है ? मेहनत ही तो ज्यादा करनी पड़ेगी. चतुर बुद्धि से उसको भी करो और समझा दो की हम हिन्दू है और हमारे डी.एन.ऐ में ही धर्मनिरपेक्षता है.