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- शिरीष खरे, मुंबई से
- सवाल यूं ही नहीं हैं। हर सवाल के साथ कई तरह की आशंकाएं और उलझनें जुड़ी हुई हैं और इन सब से बढ़ कर भ्रष्टाचार के नमूने, जिसने मेट्रो रेलवे को संदिग्ध बना दिया है।
- प्रोजेक्ट के नोटिफिकेशन को ही देखें तो इसमें डेवेलपर्स को यह छूट दी गई है कि वह कंस्ट्रक्शन खत्म होने के बाद बची हुई जमीनों को अपने मुनाफे के लिए बेच सकते हैं। इसके अलावा उन्हें सेंट्रल लाइन के दोनो तरफ आरक्षित 50 मीटर जमीनों को दोबारा विकसितक् करने की भी छूट मिलेगी।
- मुंबई मेट्रो पूरी तरह से सरकारी प्रोजेक्ट नहीं है। इसमें प्राइवेट कंपनी सबसे ज्यादा निवेश करेगी। जाहिर है सबसे ज्यादा मुनाफा भी कंपनी ही कमाएगी, न कि सरकार।
- यही कारण है कि सूचना के अधिकारक् के तहत कुछ सामान्य-सी सूचनाएं मांगने पर उसने तुरूप का इक्का फेंका- इस किस्म की सूचनाएं साझा करने से राष्ट्र को खतरा हो सकता है।
- आंकड़ों की मानें तो मेट्रो से 15,000 से ज्यादा परिवार उजड़ेंगे। इससे लाखों लोग बेकार हो जाएंगे। अकेले कार सेड डिपो बनाने में ही 140 एकड़ से भी ज्यादा जमीन जाएगी।
- अभी तक पर्यावरण पर होने वाले असर का मूल्यांकन क् भी नहीं हो सका है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत ऐसा होना जरूरी है। यह कब होगा, तारीख कोई नहीं जानता।
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