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पुण्य प्रसून बाजपेयी: लालगढ़ के राजनीतिक प्रयोग में ममता प्यादा भर हैं
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- वाममोर्चा के तीस साल के शासन में पहली बार माओवादियो का रुख वामपंथियो के खिलाफ ठीक उसी तरह है, जैसे चालीस साल पहले कांग्रेस के खिलाफ वामपंथियो ने हथियार उठाकर कांग्रेस को जमींदार और फासिस्ट करार दिया था।
- 16 जून को लालगढ़ टाउन के मैदान की सभा को संबोधित करने और कोई नहीं, उसी आंदोलन से निकले नेता पहुंचे थे, जिन्होंने साठ के दशक में नक्सलबाडी में हथियार उठाकर कांग्रेस के शासन के खिलाफ बिगुल फूंका था ।
- राजनीतिक तौर पर सीपीआई एमएल पीपुल्स वार और एमसीसीआई 2004 में एक साथ हुये। लेकिन विलय के बाद बने सीपीआई माओवादी के लिये बीते पांच साल में यह पहला मौका है, जब राजनीतिक तौर पर वह सीधे सीपीएम को जमींदार और फासिस्ट करार दे कर हथियारबंद संघर्ष के जरीये चुनौती देने को तैयार है ।
- माओवादी ममता के जरीये वाममोर्चा के खिलाफ अपनी राजनीतिक लडाई को महज ढाल बनाना चाहते है न कि ममता के अनुकूल राजनीतिक परिस्थितियों की लड़ाई लडना चाहते हैं । वही ममता बनर्जी उस राजनीतिक माहौल को तो सूंघ पा रही है, जिसमें सीपीएम के खिलाफ ग्रामीण इलाको में तेजी से आक्रोष उभर रहा है मगर उस आक्रोष को कोई राजनीतिक जामा नहीं पहना पा रही है।
- बंगाल की जमीन पर वाम और अतिवाम की लडाई में ममता महज प्यादा हैं,
- बंगाल में नये सवाल देश के दूसरे हिस्सो की तुलना में कहीं तेजी से उठते हैं। खासकर मुद्दों को अगर राजनीतिक पंख लग जाये तो बंगाल की एकजुट समझ भी खुल कर सडकों पर ही निकलती है ।
- अगर वाममोर्चा विकास के नाम पर खेत और जमीन को खत्म कर देगे तो मुश्किल और बढेगी । वहीं किसान-मजदूर अगर मारा जायेगा तो खेती करेगा कौन।
- सत्ताधारी वामपंथियो के लिये कैडर बनाने और जुटाने की सौदेबाजी का आधार भी पेट भरने के साधन जुटाने पर आ टिकता है। यानी बीपीएल कार्ड सीपीएम कैडर के पास होगा ही । राशन की लूट में उसी कैडर को अन्न मिलेगा जो सत्ता के लिये काम कर रहा होगा। जाहिर है जब वाम राजनीति पेट की परिभाषा पर टिकी होगी तो जिसमें बल होगा वहीं असल वामपंथी भी हो जायेगा
- चुनाव में जैसे ममता बनर्जी मजबूत हुई हैं, सीपीएम का कैडर ममता के साथ हथियार लेकर खड़ा होने से नहीं कतरा रहा है। वहीं ममता की यही जीत सीपीएम को कमजोर करने से ज्यादा माओवादियो को मजबूत कर रही है, क्योकि बंदूक तले वह राज्य की पुलिस से दो दो हाथ कर रहे है और जिले-दर-जिले ममता के साथ जुड़ने वाला सीपीएम कैडर प्रमोशन पाकर पेट के लिये कहीं ज्यादा लाभ समेट रहा है।
- चूकि सत्ताधारी सीपीएम कैडर के पास सबसे ज्यादा हथियार हो सकते है, इसी आधार पर माओवादियो ने अपनी रणनीति के तहत गांव वालों को उकसाना भी शुरु किया है जिससे सीपीएम दफ्तरों और नेताओं के घरो में आग लगा कर हथियार समेटे जा रहे है ।
- मुश्किल परिस्थितयाँ उस आने वाले टकराव को लेकर बन रहे राजनीतिक माहौल की हैं, जो प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इलाकों में लूट के लिये बड़े कारपोरेट घरानों को लाइसेंस दे रही हैं और चार फसली खेती योग्य जमीन पर उद्योग लगा कर रोजगार पैदा करने का स्वांग रच रही हैं।
- जब प्रतिक्रियावादी ममता बनर्जी की सलाहकार नक्सली महाश्वेता देवी हो सकती हैं, तो भविष्य में नयी राजनीतिक जमीन माओवादियो के लिये कुछ नयी परिस्थितियाँ पैदा भी कर सकती है।
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