Friday, June 19, 2009

संघ! हिंदुत्व ! चीन ! यहूदी ! और ब्लू प्रिंट!!!!!!!!

संघ! हिंदुत्व ! चीन ! यहूदी ! और ब्लू प्रिंट!!!!!!!!


संग को मूल रूप से कुछ बातों पर अब गौर अवश्य करनी होगी।
  1. संघ को भारतीयता और हिंदुत्व को अलग से परिभाषित करना होगा।
  2. संघ को अपने को दिशा देनी होगी की वो भारत तक सिमित रहेना चाहता है या उसका वैश्विक रोल हो। अर्थात संघ भारत (भारतीयता) का प्रतिनिधित्व करता है या विश्व के हिन्दुओ का प्रतिनिधित्व करता है।
  3. संघ को परिभाषित करना होगा उसका सिख, बोद्ध (चीन, जापान, कम्बोडिया और थाईलैंड) प्रकृति पूजको (अफ्रीका) से क्या सम्बन्ध होगा।
  4. संघ कहेता हैं की वह सांस्कृतिक संघठन है परन्तु उसकी संस्कृति हिंदुत्व है या भारतीय (आज के भारत जो की एक संविधान के अतेर्गत) ।

संघ को विचारना होगा की - सभी भारतीय हिन्दू हो सकते हैं परन्तु क्या सभी हिन्दू भारतीय हो सकते है।

जब आप हिंदुत्व के साथ भारतीयता को भी लेकर जाओगे तो दुसरे देश में रहेने वाले हिन्दू भारत माता की जय क्यूँ करेंगे।

जब हम हिन्दू भारतीयों को अपनी जन्मभूमि पर गर्व हैं तो वो हिन्दू जो दुसरे देशो में रहेते है तो उनको वहा की जय जय कार करनी दी जाये।

शंकराचार्य जी ने तो भारत वर्ष (जो की आज इंडिया की नाम से है) में ही अपनी पीठ स्थापित की थी संघ उसको पूरे विश्व में फैलाता क्यों नहीं।

संघ क्यों यहूदियो से अपने संपर्क नहीं बढ़ता क्यों संघ स्पष्ठ रूप से धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से (राजनेतिक अभी नहीं क्योंकि यहाँ पर भारत सरकार से सम्बंधित दुविधाये आजाएंगी) संबध बनाता।

बीजेपी एक बात जान ले की संघ ने कोई ठेका नहीं ले रखा किसी को प्रधानमंत्री बना ने का। संघ के लिए इन छुद्र कामो के लिए कोई स्थान ही नहीं। मंदिर भक्तो के लिए होता हैं जिसको पूजा करनी है करो मंदिर अपना कद घटा कर भक्त के लिए नहीं भागता।

अंत में यह बाते कहेकर अपनी बात समाप्त करूँगा

प्रथम संघ ने इसलाम में उलझ कर बहुत बड़ी शक्ति और बहुत ज्याद समय का विनाश किया है (परन्तु एअसा नहीं की लाभ नहीं हुआ परन्तु तुलनात्मक कम हुआ है)। मेरा कहेना है इससे निपटने के तरीको पर विचार किया जाये। परन्तु किसी भी रूप में संघ इनका तुस्टीकरण करे तो बिलकुल भी उचित नहीं होगा और न ही ओबामा की तरहे समर्पण।

दूसरा संघ अब भारत से बहार विस्तार पर ध्यान ज्यादा दे जो धार्मिक और संस्कृतिक हो राजनेतिक तो बिलकुल भी नहीं।

तीसरा चलो पूरब की ओर के दर्शन पर ध्यान दे। वहां पर हिन्दू अपनी शक्ति को पाने के लिए कुलबुला रहा है।

चौथा भारत की राजनीती से बिलकुल तौबा करले अपने सभी भ्रात संघटनों को स्वतंत्र रहकर काम करने दे उसी प्रकार जैसे शारीर में आत्मा। जैसे की प्रोफेसिओनल कहेते हैं पॉलिसी बना दो प्लानिंग उन ही को बनाने दो।