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Jagran - Yahoo! India - Nazariya News
- मुस्लिम नेताओं, बुद्धिजीवियों का दावा बिल्कुल भिन्न था। वे सत्ताधारी जाति होने की ठसक से पाकिस्तान मांग रहे थे, न कि किसी हिंदू वर्चस्व की चिंता से। 1909 में अल्लामा इकबाल की प्रसिद्ध रचना शिकवा, जिसे सर्वमान्य रूप से पाकिस्तान आदोलन का प्रथम मैनिफेस्टो माना जाता है, से लेकर 1940 में मुस्लिम लीग के ऐतिहासिक पाकिस्तान प्रस्ताव तक कहीं एक शब्द नहीं मिलता जो संकेत दे कि मुिस्लम नेता स्वतंत्र भारत में हिंदू बहुमत की संभावना से असहज थे। जी नहीं। उनका पूरा दावा यह था कि चूंकि अंग्रेजों ने मुगल साम्राज्य से सत्ता छीनी इसलिए वे पुन: उसके उत्तराधिकारी मुस्लिमों को सत्ता दें।
- इकबाल से लेकर अली बंधु और जिन्ना तक, सभी मुस्लिम नेताओं की भाषा दबंगई की भाषा है। मुसलमानों के लिए जिन्ना के शब्द थे 'मास्टर रेस' यानी मालिक नस्ल। काग्रेस अध्यक्ष रहे मौलाना मुहम्मद अली ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि एक गिरा हुआ और बदकार मुसलमान भी मेरे लिए महात्मा गांधी से भी उच्चतर है। क्या यह किसी आशकित, भयभीत समुदाय की भाषा है? जसवंत सिंह ने झूठे कम्युनिस्ट प्रचार को उठा लिया है कि मुसलमानों को हिंदू बहुसंख्यकवाद की आशका थी। जिन शब्दों में जसवंत सिंह ने इस बिंदु को रखने का प्रयत्न किया है उसी से स्पष्ट है कि यह उनके द्वारा स्वयं पाया हुआ निष्कर्ष नहीं है। जिन्ना के व्यक्तिगत गुणों के बारे में जसवंत सिंह ने गलत नहीं लिखा है, किंतु भारत विभाजन की जिम्मेदारी तथा जिन्ना और मुस्लिम लीग के बारे में उनके विचार तथ्यों से मेल नहीं खाते। गांधी और जिन्ना की तुलना में भी उनकी बातें प्रमाणिक नहीं लगतीं।
- [एस. शंकर: लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]
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Thursday, August 27, 2009
Jagran - जसवंत सिंह के जिन्ना
Jagran - जसवंत सिंह के जिन्ना
2009-08-27T21:51:00+05:30
Common Hindu