Wednesday, November 18, 2009

"दया" के महासागर, "मानवता" के मसीहा, सुपर सेकुलर - एम. करुणानिधि (भाग-1) Karunanidhi, Secularism, Human Rights, Terrorism (भाग-1)

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    • आप सोच रहे होंगे कि इस बात का आज के प्रगतिवादी जमाने और लोकतन्त्र के राज में इसका क्या सम्बन्ध है, लेकिन है। आज भी करुणानिधि जैसे दया के सागर और मानवता के मसीहा कुछ ऐसा ही करते हैं। इनकी "मानवता" और दयालुता के किस्से वैसे तो अपार हैं लेकिन फ़िर भी वीरप्पन और प्रभाकरण को लेकर इनकी मानवता यदा-कदा टपक-टपक जाया करती थी। इन्होंने एक बार बयान दिया था कि "तमिल और तमिलों के हितों की रक्षा के लिये जो भी व्यक्ति काम करेगा मैं उसका खुले दिल से समर्थन करता हूं और इसीलिये श्रीलंका के टाइगर्स को उग्रवादी नहीं कह सकता…"। अपने मुख्यमंत्रित्व काल में तमिलों के हितों की रक्षा में ये इतने आगे बढ़ गये थे कि वीरप्पन और प्रभाकरण को अपराधी मानने में भी इन्हें हिचक होती थी। बहरहाल, इसी करुणा और मानवता को आगे बढ़ाते हुए करुणानिधि ने अपनी दया का कटोरा इस्लामिक उग्रवादियों पर भी ढोल दिया है ताकि वे उपेक्षित महसूस न करें।

      करुणानिधि की दया का यह महासागर अक्सर उनके कथित गुरु अन्नादुरै की पुण्यतिथि के दिन हिलोरें मारने लगता है, स्वर्गीय अन्नादुरै के जन्मदिन (15 सितम्बर) पर करुणानिधि की मानवता के सागर में ज्वार उठता है, और वे इस महान भारत के लोकतन्त्र, अदालतों, कानूनों को एक उम्दा लात जमाते हुए पुराने जमाने के बादशाहों की स्टाइल में तमिलनाडु की जेलों में बन्द कैदियों को छोड़ते चले जाते हैं (इस लोकतन्त्र ने ही उन्हें ऐसी बादशाहों वाली शक्ति दी है, ठीक वैसे ही जैसे कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौत की सजा के बावजूद राष्ट्रपति नामक "रबर स्टाम्प" जिसे चाहे जीवित रख सकता है, जिसे चाहे मार सकता है, कानून-वानून की बात करना बेकार है…)।