Wednesday, November 4, 2009

महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar): कश्मीर के रजनीश मामले ने

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    • मुझे पूरा विश्वास है कि राखी सावन्त की फ़ूहड़ता या राजू श्रीवास्तव के कपड़े उतारने की घटनाओं को छोड़ भी दिया जाये तो कम से कम कोलकाता के रिज़वान मामले या चाँद-फ़िज़ा की छिछोरी प्रेमकथा को जितना कवरेज मिला होगा उसका एक प्रतिशत भी रजनीश /आँचल शर्मा को नहीं दिया गया। कारण साफ़ है… "रजनीश हिन्दू है" और हिन्दुओं के कोई मानवाधिकार नहीं होते हैं, कम से कम कश्मीर में तो बिलकुल नहीं।
    • रजनीश शर्मा का ये मामला कोलकाता के रिज़वान से भयानक रूप से मिलता-जुलता होने के बावजूद अलग है, यहाँ लड़की मुस्लिम थी, लड़का हिन्दू और कोलकाता में लड़की हिन्दू थी और लड़का मुस्लिम। दोनों ही मामले में लड़के की हत्या करने वाले लड़की के पिता और भाई ही थे। लेकिन दोनों मामलों में मीडिया और सेकुलरों की भूमिका से स्पष्ट हो जाता है कि ये दोनों ही कितने घटिया किस्म के हैं। रिज़वान के मामले में लगातार "बुरका दत्त" के चैनलों पर कवरेज दिया गया, रिज़वान कैसे मरा, कहाँ मरा, किसने मारा, पुलिस की क्या भूमिका रही, रेल पटरियों पर लाश कैसे पहुँची आदि का बाकायदा ग्राफ़िक्स बनाकर प्रदर्शन किया गया, तमाम "बुद्धूजीवी", बुकर और नोबल पुरस्कार वालों ने धरने दिये, अखबार रंगे गये और अन्ततः पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी को सस्पेण्ड किया गया, रिज़वान को मारने के जुर्म में लड़की के पिता अशोक तोडी पर केस दर्ज हुआ, अब मामला कोर्ट में है, कारण सिर्फ़ एक - इधर मरने वाला एक मुस्लिम है और उधर एक हिन्दू… इसे कहते हैं नीयत में खोट।