Wednesday, November 4, 2009

visfot.com । विस्फोट.कॉम - अकाल अकेले नहीं आता है

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    • अनुपम मिश्र
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    • कई बातें बार-बार कहनी पड़ती हैं। इन्हीं में एक बात यह भी है कि अकाल कभी अकेले नहीं आता। उससे बहुत पहले अच्छे विचारों का अकाल पड़ने लगता है। अच्छे विचार का अर्थ है, अच्छी योजनाएं, अच्छे काम। अच्छी योजनाओं को अकाल और बुरी याजनाओं की बाढ़। पिछले दौर में ऐसा ही कुछ हुआ है। देश को स्वर्ग बना देने की तमन्ना में तमाम नेताओं ने स्पेशल इकोनॉमिक जोन, सिंगूर, नंदीग्राम और ऐसी ही ने जाने कितनी बड़ी-बड़ी योजनाओं पर पूरा ध्यान दिया। इस बीच यह भी सुना गया कि इतने सारे लोगों द्वारा खेती करना जरूरी नहीं है। एक जिम्मेदार नेता की तरफ से यह भी बयान आया कि भारत को गॉंवों का देश कहना जरूरी नहीं है। गॉंवों में रहने वाले शहरों में आकर रहने लगेंगे, तो हम उन्हें बेहतर चिकित्सा, बेहतर शिक्षा और बेहतर जीवन के लिए तमाम सुविधाएं आसानी से दे सकेंगे। इन्हें लगता होगा कि शहरों में रहने वाले सभी लोगों को ये सभी सुविधाएं मिल ही चुकी हैं। इसका उत्तर तो शहर वाले ही देंगे।
    • लेकिन इस बात को यहीं छोड़ दीजिए। अब हमारे सामने मुख्य चुनौती है खरीफ की फसल को बचाना और आने वाली रबी की फसल की ठीक-ठीक तैयारी। दुर्भाग्य से इसका कोई बना-बनाया ढॉंचा सरकार के हाथ फिलहाल नहीं दिखता। देश के बहुत बड़े हिस्से में कुछ साल पहले तक किसानों को इस बात की खूब समझ थी कि मानसून के आसार अच्छे ने दिखें तो पानी की कम मॉंग करने वाली फसलें बो ली जाएं। इस तरह के बीज पीढ़ि़यों से सुरक्षित रखे गए थे। कम प्यास वाली फसलें अकाल का दौर पार कर जाती थीं। लेकिन आधुनिक विकास के दौर ने, नई नीतियों ने किसान के इस स्वावलंबन को अनजाने में ही सही, पर तोड़ा जरूर है। लगभग हर क्षेत्र में धान, गेहूं, ज्वार, बाजरा के हर खेत में पानी को देखकर बीज बोने की पूरी तैयारी रहती थी। अकाल के अलावा बाढ़ तक को देखकर बीजों का चयन किया जाता था। पर 30-40 साल के आधुनिक कृषि विकास ने इस बारीक समझ को आमतौर पर तोड़ डाला है। पीढ़ियों से एक जगह रहकर वहॉं की मिट्टी, पानी, हवा, बीज, खाद- सब कुछ जानने वाला किसान अब छह-आठ महीनों में ट्रांसफर होकर आने-जाने वाले कृषि अधिकारी की सलाह पर निर्भर बना डाला गया है।