Wednesday, April 21, 2010

Jagran - Yahoo! India - सत्ता का जनविरोधी चरित्र

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    • आश्चर्य की बात यह है कि प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा एवं हिंदू संत समाज द्वारा सरकार की इस सैन्य कार्यवाही का पुरजोर समर्थन किया जा रहा है। वे गरीब की उस आह की अनदेखी कर रहे हैं, जिस कारण उन्होंने ये अस्त्र उठाए हैं। ये विद्वान भूल रहे हैं कि गरीब को इसी प्रकार की त्रास देने के कारण भारत छोटा होता जा रहा है।
    • लोधियों के बाद बाबर जैसे योद्धा छोटी सेना के बल पर भारत पर कब्जा करने में सफल हुए। कारण यह दिखता है कि देश के आम आदमी ने घरेलू आतताई शासकों के विरुद्ध विदेशी शासकों का साथ दिया। मीर जाफर जैसे लोगों ने अंग्रेजों की मदद की और उनका शासन स्थापित कराया। 1947 के पहले ही बर्मा, सीलोन, नेपाल और अफगानिस्तान अलग हो चुके थे। 1947 में पाकिस्तान अलग हुआ।
    • प्रधानमंत्री की इस विकृत विचारधारा को भाजपा ने भी पूर्णतया अपना लिया है। भाजपा शासित राज्यों में संस्कृत भाषा, गोरक्षा, आयुर्वेद जैसे संभ्रात वर्ग के मुद्दों पर अपने मार्गदर्शकों को भ्रम में डालकर जनविरोधी आर्थिक नीतियों को तेजी से लागू किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड की सरकारें खनन एवं जल विद्युत के नाम पर गरीब को कुचलने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स गठित कर रही हैं। दूसरी पार्टिया भी पीछे नहीं हैं। जनसंकल्प संस्था के अनुसार उत्तर प्रदेश के कौशाबी जिले में बसपा सरकार द्वारा पोषित बालू एवं मछली माफियाओं ने वहा के गरीबों के पारंपरिक खनन एवं मछली पकड़ने के अधिकारों को हड़प लिया है। बंगाल में माकर््सवादियों ने नंदीग्राम में जनता को इसी प्रकार कुचलने का प्रयास किया है। पिछले हजार वषरें में पैदा हुआ हमारा गरीब विरोधी चरित्र सर्वव्यापी हो गया है। इस दुरूह परिस्थिति में गरीब द्वारा अस्त्र उठाना एवं माओवादियों को समर्थन देने को अनुचित कैसे ठहराया जा सकता है?
    • संकेत मिल रहे हैं कि माओवादियों के चीन, पाकिस्तान की आईएसआई एवं दूसरे विदेशी संस्थाओं से संबंध स्थापित हो चुके हैं। देशप्रेमियों का कहना है कि जो भी हो, माओवादियों को बाहरी ताकतों का सहारा नहीं लेना चाहिए।
    • अर्थशास्त्र ग्रंथ के सातवें खंड के अध्याय 4 एवं 5 में कौटिल्य लिखते हैं, 'जब राजा को ज्ञात हो कि दुश्मन के नागरिक सताए जा रहे हैं, उनके साथ दुवर््यवहार हो रहा है, गरीब परेशान और बिखरे हुए हैं और उनसे अपने शासक के त्याग की अपेक्षा की जा सकती है तब दुश्मन पर धावा बोल देना चाहिए। जब लोग गरीबी से त्रस्त होते हैं तो वे लालची हो जाते हैं, जब वे लालची होते हैं तो वे अनमने हो जाते हैं और स्वेच्छा से दुश्मन की तरफ हो जाते हैं अथवा अपने शासक को नष्ट कर डालते हैं। अत: राजा को कोई भी ऐसा कृत्य नहीं करना चाहिए, जिससे जनता में गरीबी, लालच अथवा अनमनापन पैदा हो। यदि यह स्थिति पैदा हो जाए तो तत्काल सुधार करना चाहिए।' हमारे दुश्मन देख रहे हैं कि भारत की लगभग सभी पार्टिया जनविरोधी हो चली हैं। जनता त्रस्त है। जैसे पूर्व में देश के आम आदमी से बाबर आदि को समर्थन मिला था, वैसा ही आज विदेश-पोषित क्रांतिकारियों एवं मिशनरियों को मिल रहा है।
    • विशेष दुर्भाग्य यह है कि विपक्षी पार्टियों और धर्मगुरुओं द्वारा गरीब के दर्द को दूर करने की बात नहीं उठाई जा रही है। केवल गरीब के दर्द को आवाज दे रहे माओवादी संगठनों के विदेशी संबंधों की भ‌र्त्सना की जा रही है। इस तरह तो सौ साल में ही भारतीय संस्कृति लुप्त हो जाएगी।
    • [डा. भरत झुनझुनवाला: लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]

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