Thursday, May 20, 2010

पंडिताई में भी महिलाओं ने दी पुरूषों को चुनौती | सरोकार | Deutsche Welle | 20.05.2010

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    पूजा संपन्न करातीं चित्रा लेले
    • पूजा संपन्न करातीं चित्रा लेले
    • मैंने देखा कि महिला पंडित पूजा को कहीं जल्दी खत्म कर देती हैं, कभी तो बस एक घंटे में ही. मेरे सभी रिश्तेदार, यहां तक कि मेरे पिताजी भी अब सिर्फ महिला पंडितों को घर बुलाते हैं. इसके अलावा मैंने अकसर यह महसूस किया है कि महिला पंडित मंत्र और श्लोकों का मतलब समझाती हैं. वह इमानदारी से अपना काम करतीं हैं."

      थोडी देर बाद चित्रा लेले भी पूजा के वक्त प्रदन्या को मंत्र और रीति रिवाज़ों का मतलब बता रही हैं. 41 साल की चित्रा लेले ने रंगीन साड़ी पहन रखी है. सफेद धोती पहन कर पूजा करने वाले आम पुरूष पंडितों से चित्रा बहुत अलग दिख रहीं हैं. चित्रा शादीशुदा हैं और उनकी एक बेटी हैं. वह बताती हैं कि संस्कृत और हिंदी में रुचि होने के कारण उन्हें पंडित का काम सीखने की प्रेरणा मिली. चित्रा बतातीं हैं, "आजकल की युवा पीढी बहुत ही व्यस्त है. वे बहुत सारा वक्त कंप्यूटर के सामने बिताते हैं. ऐसे में वे किसी धार्मिक अनुष्ठान में 5 घंटे नहीं बैठना चाहते हैं. हमारे तरीके से हम पूजा के ज़रूरी हिस्सों को उन्हें एक घंटे में समझा देते हैं. हम उन्हें पूजा में शामिल भी करते हैं, यह उन्हें बहुत पसंद आता है और वह इसमें हिस्सा भी लेते हैं."

    • पुणे के ध्यानप्रबोधिनी केंद्र में चित्रा ने प्रशिक्षण पाया. इस केंद्र का भवन शहर के पुराने हिस्से में है. इस वक्त वहां 20 से भी ज़्यादा महिलाएं एक वर्षीय कोर्स में भाग ले रहीं हैं. इनमें सभी जातियों की महिलाएं हैं. ज्यादातर की उम्र 40 से 65 के बीच है.
    • आर्या जोशी इस बात पर ज़ोर वक्त के साथ हाईटैक होते पुजारीBildunterschrift: Großansicht des Bildes mit der Bildunterschrift:  वक्त के साथ हाईटैक होते पुजारीदेती हैं कि महिलाएं सिर्फ घरों में पूजा संपन्न करतीं हैं, मंदिरों में नहीं. अंतिम संस्कार भी महिला पंडित नहीं कराती हैं. अब तक उन्हें सिर्फ बडे शहरों में खासकर मुंबई या पुणे में स्वीकार किया गया है. ग्रामीण इलाकों में उन्हें मान्यता मिलना अब तक संभव नहीं लगता. आर्या जोशी का मानना है कि हिंदू धर्म में महिलाओँ को हमेशा से पूजा संपन्न करने का अधिकार रहा है. प्राचीन धार्मिक पांडुलिपियों में भी इसका उल्लेख मिलता है. लेकिन फिर पुरूषों ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की और कहा कि पंडित पुरूष ही हो सकते हैं और उनका संबंध भी एक विशेष जाति से होना चाहिए. तब से यही परंपरा चलती आ रही है.
    • रिपोर्टः सोनिया फाल्नीकर/प्रिया एसेलबोर्न

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