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आशुतोष
मैनेजिंग एडिटर
- आजादी के तिरसठ साल बाद अब लोहिया के चेले मुलायम, लालू नीतीश हो या फिर अंबेडकर के समर्थक कांशीराम, मायावती, पासवान या जाति आधारित जनगणना की वकालत करने वाले सभी चाहते हैं कि जातिवादी व्यवस्था खत्म न हो क्योंकि जो जातिवादी सिस्टम कभी इनके लिये उत्पीड़न और दासता का प्रतीक था वही अब उन्हें राजनीतिक ताकत देता है। डी.एल. सेठ जैसे समाजशास्त्री के मुताबिक लोहिया के चेलों ने जातिवाद को नयी ऊर्जा दी है। यानी ब्राह्मणवादी व्यवस्था वही है सिर्फ उसका स्वरूप बदल गया है। मायावती आज अगर दलित न हों तो उनकी ताकत खत्म हो जायेगी, लालू-मुलायम के लिये यादव होना फायदे का सौदा है। इसलिये जाति ही अब सशक्त पहचान है और ताकत भी लेकिन ये भी सही है ऊंची जातियों ने अगर हजारों साल तक कान में पिघला सीसा उड़ेला है तो वो भी तो अब उस व्यवस्था का दंश झेलें। पता तो चले जातिवाद का जहर कितना खतरनाक होता है।
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