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Jagran - Yahoo! India - Nazariya News
- वंशवादी राजनीति का यह दोहरा चरित्र राष्ट्रघातक ही रहा है। अर्जुन सिंह और राजीव गाधी, दोनों ही काग्रेस के नेता रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना ही रहा कि एक गाधी-नेहरू खानदान के थे तो दूसरे 'बाहरी'। अर्जुन सिंह ने चाहे काग्रेसी आकाओं को खुश करने के लिए कितनी ही जूतिया तोड़ी हों, राष्ट्रीय हितों एवं हिंदू संवेदनाओं पर भीषण प्रहार किए हों, मुस्लिम तुष्टीकरण की हदें पार कर दी हों, पर जीवन के संध्याकाल में वह काग्रेस द्वारा 'त्याज्य' घोषित हो गए। उन पर प्रहारों का न सिर्फ काग्रेस मजा ले रही है, बल्कि अपनी तरफ से भी और आघात कर रही है, लेकिन उसी अपराध में राजीव गाधी का नाम आते ही वंशवादी राजनीति के दरबारी एक सुर में 'राजीव निर्दोष हैं' अलापने लगे।
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दुर्भाग्य से 1984 के अपराधियों को बचाने की यह घटना यूनियन कार्बाइड तक सीमित नहीं है। उसी वर्ष सिख विरोधी काग्रेसी हमलों में तीन हजार निरपराध सिखों के कत्लेआम के अपराधी भी इसी काग्रेस सरकार द्वारा बचाए जाते रहे हैं।
अदालतों का कमजोर गठन, सबूत प्रस्तुत करने में लापरवाही, सरकारी तंत्र के उपयोग द्वारा संदिग्ध अपराधियों को निर्दोष साबित करने के उपक्रम काग्रेसी वंशवादी राजनीति का राष्ट्रघातक चेहरा है। इसी वजह से जनता का उन तमाम न्यायिक संस्थानों से विश्वास हटता जा रहा है, जो लोकतात्रिक व्यवस्था के आधारस्तंभ हैं। सीबीआई को संप्रग ने राजनीतिक लाभ एवं भयादोहन का साधन बनाकर सत्ता-केंद्र की निष्पक्षता पर बहुत बड़ा आघात किया है। न्यायपालिका भी निरंतर ऐसी ही संदेहास्पद चर्चाओं के दायरे में घिरी रही है। सवाल उठता है कि जनता निष्पक्ष एवं वस्तुपरक शासन तथा न्याय की आस किससे करें? यह राष्ट्रीय जीवन व्यवहार एवं लोकतात्रिक राजनीति के लिए बहुत बड़े खतरे के संकेत हैं।
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भोपाल गैस त्रासदी का जिम्मेदार एंडरसन उतना ही बड़ा अपराधी है, जितने बड़े अपराधी अफजल और कसाब हैं। दोनों ही विदेशी हैं और दोनों ने ही भारतीय राज्य एवं नागरिकों के प्रति अपराध किया है। अत: दोनों की सजा में भी फर्क क्यों होना चाहिए?
[तरुण विजय: लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं]
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