Monday, June 14, 2010

Jagran - खूब लड़ी मर्दानी वह की रचयिता की कविताई

  • tags: no_tag

    • चमक उठी सन सत्तावन में/ वह तलवार पुरानी थी/ बुंदेले हरबोलो के मुंह/ हमने सुनी कहानी थी/ खूब लड़ी मरदानी वह तो/झांसी वाली रानी थी।'' की रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान को 'राष्ट्रीय वसंत की प्रथम कोकिला' का विरुद दिया गया था। यह वह कविता है जो जन-जन का कंठहार बनी। कविता में भाषा का ऐसा ऋजु प्रवाह मिलता है कि वह बालकों-किशोरों को सहज ही कंठस्थ हो जाती है।
    • यथा-स्त्रियों को प्रबोधन देती यह कविता देखिए- ''सबल पुरुष यदि भीरु बनें, तो हमको दे वरदान सखी। अबलाएं उठ पड़ें देश में, करे युद्ध घमासान सखी। पंद्रह कोटि असहयोगिनियां, दहला दें ब्रह्मांड सखी। भारत लक्ष्मी लौटाने को, रच दें लंका कांड सखी॥'' असहयोग आंदोलन के लिए यह आह्वान इस शैली में तब हुआ है, जब स्त्री सशक्तीकरण का ऐसा रौला नहीं था। 'वीरों का कैसा हो वसंत?' उनकी एक ओर प्रसिद्ध देश-प्रेम की कविता है जिसकी शब्द-रचना, लय और भाव-गर्भिता अनोखी थी।

      'स्वदेश के प्रति', 'विजयादशमी', 'विदाई', 'सेनानी का स्वागत', 'झांसी की रानी की समाधि पर', 'जलियां वाले बाग में बसंत', आदि श्रेष्ठ कवित्व से भरी उनकी अन्य सशक्त कविताएं है।

    •  

      [डॉ. पुष्पपाल सिंह]


Posted from Diigo. The rest of my favorite links are here.