Wednesday, July 22, 2009

सूर्य ग्रहण का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व | ज्योतिष की सार्थकता

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    • श्रृग्वेद के एक मन्त्र में यह चमत्कारी वर्णन मिलता है कि "हे सूर्य्! असुर राहू ने आप पर आक्रमण कर अन्धकार से जो आपको विद्ध कर दिया,उससे मनुष्य आपके रूप को पूर्ण तरह से देख नहीं पाये और अपने अपने कार्यक्षेत्रों में हतप्रभ से हो गये। तब महर्षि अत्री ने अपने अर्जित ज्ञान की सामार्थ्य से छाया का दूरीकरण कर सूर्य का उद्धार किया"।
      अगले मन्त्र में यह आता है कि "इन्द्र नें अत्रि की सहायता से ही राहू की सीमा से सूर्य की रक्षा की थी"। इसी प्रकार ग्रहण के निरसण मे समर्थ महर्षि अत्रि के तप: संधान से समुदभुत अलौकिक प्रभावों का वर्णन वेद के अनेक मन्त्रों में प्राप्त होता है। किन्तु महर्षि अत्रि किस अद्भुत सामर्थ्य से इस आलौकिक कार्यों में दक्ष माने गये,इस विषय में दो मत हैं--- प्रथम परम्परा प्राप्त यह मत है कि,वे इस कार्य में तपस्या के प्रभाव से समर्थ हुए और दूसरा यह कि,वे कोई नया यन्त्र बनाकर उसकी सहायता से ग्रहण से ग्रसित हुए सूर्य को दिखलाने में समर्थ हुए। अब आधुनिक युग है,लोगों की सोच भी आधुनिक होती जा रही है इसलिए तपस्या के प्रभाव जैसे किसी मत की अपेक्षा यहाँ हम दूसरे मत को ही स्वीकार कर लेते हैं हैं। कुल मिलाकर इतना स्पष्ट है कि अत्यन्त प्राचीन काल में भारतीय सूर्यग्रहण के विषय में पूर्णत: जानते थे।
    •  कल बुद्धवार 22 जुलाई को इस शताब्दी का सबसे बडा पूर्ण सूर्य ग्रहण आ रहा है। अब यदि आप वैज्ञानिक विचारधारा के पक्षधर हैं तो प्रकृ्ति प्रदत्त इस अद्भुत नजारे का आनन्द लीजिए और यदि आपकी दृ्ष्टि में इसका कोई आध्यात्मिक महत्व है तो अपने इष्टदेव का ध्यान,जाप कीजिए,तीर्थस्नान कीजिए।