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- आप इसे साप्रदायिकता कह सकते हैं, लेकिन यह सच है। वैसे भी मुंबई सहित ऐसे कई शहर हैं जहा साप्रदायिक विभाजन काफी तीखा है। इसलिए हम ऐसी घटनाओं के पीछे निहित साप्रदायिक सोच को बिल्कुल नकार भी नहीं सकते, किंतु यह मानना भी गलत होगा कि ऐसी सभी घटनाओं के पीछे साप्रदायिकता ही होती है। यह आम अनुभव की बात है कि प्राय: दोनों संप्रदाय के लोग स्वयं दूसरे संप्रदाय के बहुमत वाले अपार्टमेंट, आवास कालोनियों में बसने से बचते हैं।
- कुछ समाजशास्त्री इसे जीवन शैली, संस्कृति एवं परंपराओं से जोड़ते हैं। आम हिंदू एवं आम मुसलमान की जीवन शैली में भेद बिल्कुल स्पष्ट है। केवल उपासना पद्धत्ति ही नहीं, दोनों समुदायों के रहन-सहन, खान-पान यहा तक कि बोलचाल में स्पष्ट अंतर दिखाई देता है।
- यह बात ठीक है कि वैश्विक जिहादी आतंकवाद के सामने आने के बाद से समाज के मनोविज्ञान में परिवर्तन आया है। भवन निर्माता या आवास समितिया जोखिम लेने से बचती हैं। इसलिए वे कई प्रकार के बहाने बनातीं हैं या फिर चरित्र प्रमाण पत्र आदि दस्तावेजों की माग करती हैं, किंतु आतंकवाद के सामने आने के पूर्व हालात भिन्न थे, ऐसा नहीं है।
- इसे केवल आवास समितियो या भवन निर्माताओ तक सीमित नहींमाना जा सकता। आखिर ये सब हमारे समाज के ही तो अंग हैं और जैसी समाज की प्रवृत्ति वैसा इनका व्यवहार।
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Thursday, August 6, 2009
सांप्रदायिक भेद का घर - Jagran - Yahoo! India - Opinion News
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2009-08-06T21:24:00+05:30
Common Hindu