Sunday, August 30, 2009

Jagran - इतिहास का निरादर

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    • हिंदुओं की हत्याओं के बारे में चर्चा नहीं की गई, किंतु महात्मा गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं में पंथनिरपेक्षता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के कूट-कूट कर भरे गए विचारों के कारण भारत में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए कठोर उपाय किए गए।

      ये ऐतिहासिक तथ्य हैं, जिन्हें भली प्रकार शब्दों में कैद किया जा चुका है।

    • भारत में 1947 में मुसलमानों की 3.5 करोड़ आबादी थी, जो अब बढ़कर 15 करोड़ पहुंच गई है। हम पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक संविधान से बंधे हैं, जो सभी नागरिकों के लिए समता और निष्पक्षता सुनिश्चित करता है। वास्तव में हम इतने पंथनिरपेक्ष हैं कि 2004 से अनेक महत्वपूर्ण पदों पर, जिनमें प्रधानमंत्री पद भी शामिल है, गैर-हिंदू तैनात हैं।
    • जसवंत सिंह के इस कथन से झटका लगता है कि जो मुसलमान भारत में रहे या यहां से निकल नहीं पाए वे खुद को अलग-थलग पाते हैं। ये शेष लोगों से संबंध में खुद को कहीं नहीं पाते। इस कारण वे मनोवैज्ञानिक असुरक्षा के भाव से घिर गए हैं।
    • यह बिल्कुल गलत सोच है। जसवंत सिंह और भी शरारत करते हैं। वह मुसलमानों के लिए आरक्षण की मांग को हवा देते हैं। उनका कहना है-''..1909 में आरक्षण और फिर विभाजन का सिद्धांत स्वीकारने के बाद अब हम इसे औरों को देने से कैसे इनकार कर सकते हैं, यहां तक कि उन मुसलमानों को भी, जो यहां रह गए या जिन्होंने यहां रहना उचित समझा। इसीलिए अब मुस्लिम विरोध की कुछ आवाजों में तीसरे विभाजन की बात उठ रही है..''। संक्षेप में, जसवंत सिंह की इस व्याख्या में भयानक खामियां हैं। वह जिन्ना से इतने अभिभूत हैं कि उन्होंने नेहरू को विभाजन के मुख्य वास्तुशिल्पी का दर्जा दे दिया है। वह तब फिर से नेहरू और पटेल की अवमानना करते हैं, जब यह कहते हैं कि तत्कालीन नेताओं के मंतव्यों से वह हैरान रह गए। उनकी जिन्ना के प्रति सहानुभूति और नेहरू, पटेल व अन्य कांग्रेस नेताओं के प्रति दुराग्रह हमारे पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक आदर्र्शो का निरादर है। वह पंथ आधारित घृणा फैलाने वालों से सहानुभूति जताते हैं। जसवंत सिंह की यह दलील खतरनाक है।
    • इतना ही हैरतअंगेज जसवंत सिंह का यह दावा है कि पाकिस्तान का रुख अब विनम्र और अनुग्राही हो गया है। वह भूल गए कि पाकिस्तान भारत को हजार जख्म देने की नीति पर अभी भी चल रहा है। मुंबई पर किया गया आतंकी हमला इसका ताजा उदाहरण है।
    • [ए. सूर्यप्रकाश: लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं]