Thursday, September 24, 2009

जहरीली शराब पीकर मरने वाले कौन थे?

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    • यह तो हर मेडिकल जर्नल कहता है और सरकार भी यही कह कर बेचती है कि शराब घातक है। पर सरकार यह नहीं बताती कि देशी शराब के नाम पर वास्तव में जहर बाजार में बनता और बिकता है। अब चूंकि आबकारी सरकार के लिए कमाई का साधन है, इसिलए यह जहर तो बिकेगा ही। और साल दर साल कमाई बढ़ाने के लिए यह प्रयास होते हैं कि बिक्री कैसे बढ़े और उत्पादन लागत कैसे कम हो ताकि शराब बेचने वालों का फायदा ज्यादा बढ़े।
    • जून 2009 में गैरकानूनी और जहरीली शराब के कारण 200 लोगों के मरने के बाद भी वह सामाजिक न्याय का मुद्दा नहीं बना, शायद उसमें हिंदू-मुसलमान वाला टकराव नहीं था, शराब बनाने वाले शायद मुसलमान नहीं थे। इसमें धर्म की राजनीति के लिए उतना स्थान नहीं था, तो मीडिया को भी रस नहीं आया और 3-4 दिन तक दुर्घटना कवर करने की औपचारिकता करके उस पर मौन साध लिया गया। 200 जानें जाने के बाद भी इस मसले पर जांच आयोग नहीं बना क्योंकि इसमें राज्य-केंद्र के कोई दीर्घकालिक फायदे नहीं थे और मरने वाले केवल गरीब थे।
    • जब हम यह कहते हैं कि गुजरात में गैर कानूनी रूप से हर साल 3000 करोड़ रुपए की अवैध शराब का कारोबार चलता है तो इसका मतलब यह है कि सरकार (जिसमें पक्ष और विपक्ष दोनों शामिल हैं), पुलिस और कानून लागू करने वालों की इस मामले में बहुत दूर तक जाने में तो कोई रूचि हो ही नहीं सकती। क्योंकि इसमें उनका भी तो 800 से 1000 करोड़ रुपए का हिस्सा शामिल है। यहां आप इन सबके बीच एक संगठित गठजोड़ देख और महसूस कर सकते हैं। यह गठजोड़ समाज के वंचित तबकों के जीवन को भट्ठी में जला कर अपने लिए 56 पकवानों की थाली पकाता है।

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