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- पहले ही घोषणा कर दूं कि यह लेख मेरे प्रिय पाठकों के लिये सिर्फ़ "एक खबर" मानी जाये, "माननीय" न्यायालय के खिलाफ़ टिप्पणी नहीं…
- उल्लेखनीय है कि सोहराबुद्दीन उज्जैन के पास उन्हेल का रहने वाला एक ट्रक चालक था, जिसे इन्दौर से कांडला बन्दरगाह माल लाने-ले जाने के दौरान अपराधियों का सम्पर्क मिला और वह बाद में दाऊद की गैंग के लिये काम करने लगा। मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान सरकारों के लिये वह एक समय सिरदर्द बन गया था और दाऊद के अपहरण रैकेट में उसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही। सोहराबुद्दीन को गुजरात पुलिस द्वारा मार गिराये जाने के बाद जब उसका शव उसके पैतृक गाँव लाया गया तब उसकी शवयात्रा का स्वागत एक गुट द्वारा हवा में गोलियां दाग कर किया गया था। इस व्यक्ति के परिजनों को जनता के टैक्स की गाढ़ी कमाई का 10 लाख रुपया देने के पीछे "माननीय" न्यायालय का क्या उद्देश्य है, यह समझ से परे है।
- सवाल यह भी है कि "माननीय" न्यायालय ने अब तक कितने पुलिसवालों और छत्तीसगढ़ में रोजाना शहीद होने वाले पुलिसवालों को दस-दस लाख रुपये दिलवाये हैं?
- "माननीय" न्यायालय को यह समझना चाहिये कि मुआवज़ा अवश्य दिया जाये, लेकिन सिर्फ़ उन्हीं को जो गलत पहचान के शिकार होकर पुलिस के हाथों मारे गये हैं (जैसे कनॉट प्लेस दिल्ली की घटना में वे दोनो व्यापारी)। एक अपराधी के परिजनों को मुआवज़ा देने से निश्चित रूप से गलत संदेश गया है। लेकिन यह बात हमारे सेकुलरों, लाल बन्दरों और झोला-ब्रिगेड वाले कथित मानवाधिकारवादियों को समझ नहीं आयेगी।
- ताज़ा समाचार के अनुसार कसाब को अण्डाकार जेल में रोज़े रखने/खोलने के लिये रोज़ाना समय बताया जायेगा ताकि उसकी धार्मिक भावनायें(?) आहत न हों, जबकि साध्वी प्रज्ञा को एक बार अंडा खिलाने की घृणित कोशिश की जा चुकी है, "सेकुलर देशद्रोहियों" के पास इस बात का भी कोई जवाब नहीं है कि यदि साध्वी प्रज्ञा जेल में गणेश मूर्ति स्थापित करने की मांग करें, तो क्या अनुमति दी जायेगी?
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Friday, September 4, 2009
महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar): माननीय सुप्रीम कोर्ट जी,
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Comments by IntenseDebate
महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar): माननीय सुप्रीम कोर्ट जी,
2009-09-04T21:35:00+05:30
Common Hindu